नन्हें तैराकों को न्याय दिलाने कौन आएगा सामने ?
तैराकी : छत्तीसगढ़ के बच्चों के साथ हुई नाइंसाफी,कौन है इसका जिम्मेदार
– जसवंत क्लाडियस,तरुण छत्तीसगढ़ संवाददाता
1 नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद यहां के खिलाडिय़ों, प्रशिक्षकों, खेल संघ के पदाधिकारियों के कार्य क्षेत्र में मानो पंख लग गये। राज्य स्तर का खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर का खिलाड़ी हो गया। इसी तरह खेल संघ रातों रात राष्ट्रीय खेल संघ हो गया। छत्तीसगढ़ शासन के खेल विभाग अधिकारी/कर्मचारी राष्ट्रीय स्तर पर परिचय देने लगे। छत्तीसगढ़ के खेल प्रतिभागियों को जिनका चयन इंदौर, भोपाल, जबलपुर आदि जिलों के कारण नहीं हो पाता था अब उनका चयन राष्ट्रीय स्पर्धा में होने लगा। इसका सबसे बड़ा फायदा खिलाडिय़ों को मिला। छत्तीसगढ़ के प्रतिभा संपन्न खिलाडिय़ों के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में भाग लेने का द्वार खुल गया। सबसे बड़ी बात ओलंपिक कोर गेम का महत्व हमारे प्रदेश के राजनेताओं, खेल प्रशासकों, खेल संघों, खिलाडिय़ों, प्रशिक्षकों, खेल सपोर्ट स्टाफ को समझ में आया। इस कड़ी में छत्तीसगढ़ राज्य के खेलों को महत्व मिलना आरंभ हुआ। भारतीय ओलंपिक संघ द्वारा स्थायी ओलंपिक खेलों के 28 संघ, शीतकालीन ओलंपिक खेलों के तीन संघ, अन्य 6 संघों को मान्यता दी गई है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद कई खेलों को गंभीरता से लिया जाने लगा। उनमें तैराकी भी एक है। हमारे प्रदेश में रायपुर, बिलासपुर में अंतर्राष्ट्रीय मानक के कम से कम दो तरणताल (स्वीमिंग पूल) हैं। वैसे भी तैराकी एक ऐसा खेल है जिसमें 2024 में पेरिस ओलंपिक खेलों में जल क्रीड़ा के नाम से पांच इवेंट में 49 स्वर्ण, 49 रजत, 49 कांस्य सहित 147 पदकों पर दांव लगने हैं। इसके तैराकी इवेंट में 35 स्वर्ण, 35 रजत, 35 कांस्य पदक के लिए तैराकों को मुकाबला करना होता है। कुछ एक अंतर को छोड़ दिया जाए तो करीब-करीब इतने ही पदकों के लिए विश्व तैराकी चैंपियनशिप, एशियाई खेलों, राष्ट्रमंडल खेलों तथा एशियन तैराकी प्रतियोगिता में तैराकों के बीच संघर्ष होता है। इधर छत्तीसगढ़ में तैराकी के प्रतिभागियों के साथ पक्षपात, अन्याय की खबर आ रही है। कहा जा रहा है कि दुर्ग जिले के जिन बच्चों को कोरोनाकाल से पहले भारतीय खेल प्राधिकरण व छत्तीसगढ़ तैराकी संघ, छत्तीसगढ़ राज्य खेल एवं युवक कलयाण विभाग के सहयोग से चयन करके तैराकी के उच्च प्रशिक्षण के लिए अहमदाबाद (गुजरात) भेजा गया था उन्हें कोरोना काल के आसपास वापस लाकर उनके घरों में छोड़ दिया गया है और कोरोना काल के पश्चात अब तक कोई सुध लेने वाला नहीं आया है। एक तो तैराकी ऐसा खेल जिसमें प्रत्येक वर्ष कम से कम 147 अंतर्राष्ट्रीय स्तर का पदक जीता जा सकता है दुर्भाग्य की बात दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ के प्रतिभावान तैराक जिनका चयन राष्ट्रीय स्तर के चयन समिति के सदस्यों द्वारा किया गया था अब उनका कोई पूछने वाला नहीं है। तैराकी मं एक तरफ अंतर्राष्ट्रीय पदकों का अंबार है तो छत्तीसगढ़ के उदयीमान तैराकों की उपेक्षा के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है? छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ के अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री हैं महासचिव देवेन्द्र यादव विधायक जो कि दुर्ग जिले के ही रहने वाले हैं। स्पष्ट है राज्य के खेल विभाग तथा भारतीय ओलंपिक संघ के पदाधिकारी अपनी-अपनी जिम्मेदारी को पूरी निष्ठा से नहीं निभा पा रहे हैं। इस तरह की परिस्थिति में छत्तीसगढ़ में खेलकूद को कैसे बढ़ावा दिया जा सकता है। दुर्ग जिले के तैराकों के साथ अब तक जो कुछ भी हुआ उसके लिए किसी पूर्व खिलाड़ी, राजनेताओं, खेल संघ के पदाधिकारियों, खेल विभाग के अधिकारियों ने कोई ठोस आवाज नहीं उठाई है। इस तरह के खेल वातावरण से छत्तीसगढ़ में किसी भी खेल के प्रतिभावान खिलाड़ी किस तरह सामने आयेगा। अभिभावक भी अपने बच्चों को प्रोत्साहित नहीं करेंगे तो भविष्य में हमारे प्रदेश के खिलाड़ी राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना तथा प्रदेश का नाम कैसे रौशन कर सकेंगे। अत: दुर्ग के उदयीमान नन्हें तैराकों की समस्या पर तुरंत ध्यान देकर उसका हल निकालना जरूरी है तभी अन्य खेलों में भी खिलाड़ी उभरकर आ पायेंगे।