छत्तीसगढ़

यंगटी इंटरप्राइजेस के लीज एरिया की जांच के लिए कलेक्टर ने बनाई कमेटी

रायगढ़, । किसानों को टीपाखोल डैम से सिंचाई के लिए पानी मिले या नहीं, इससे कोई मतलब नहीं है। बाजू में क्वाट्र्जाइट खदान बंद नहीं होनी चाहिए। सरकारी जमीन पर 50 साल के लिए खनन लीज दे दी गई। जल संसाधन ईई ने आपत्ति जताई थी लेकिन तत्कालीन खनिज अधिकारी ने खेल कर दिया। अब इसकी जांच के लिए कलेक्टर ने छह सदस्यीय कमेटी बनाई है। बिना किसी प्रतिस्पर्धा के यंगटी इंटरप्राइजेस को करीब 15 एकड़ सरकारी जमीन इसलिए आवंटित कर दी गई ताकि कंपनी संचालक की जेब भरे। सरकार को नाममात्र की रॉयल्टी मिल रही है। क्वाट्र्जाइट किस रेट पर बिक रहा है, किसी को पता नहीं। यंगटी इंटरप्राइजेस को जमीन पर खनन अनुज्ञा देने के लिए एक सिंडीकेट ने काम किया था जिसमें अफसर और शहर के कुछ लोग भी शामिल थे।
तत्कालीन कलेक्टर ने जमीन लीज पर नहीं देने की टिप्पणी नोटशीट में लिखी थी। इसे छिपाकर रायगढ़ तहसील के टीपाखोल में यंगटी इंटरप्राइजेस को 50 साल के लिए खनिपट्टा स्वीकृत किया गया है। खसरा नंबर 108/1 रकबा 6.175 हे. भूमि पर लीज स्वीकृत की गई है। वर्ष 2003 में माइनिंग लीज की मंजूरी सत्यनारायण दिनोदिया के नाम पर दी गई थी। तब केवल 30 साल के लिए 2033 तक स्वीकृति मिली थी। 30 जून 2006 में यह माइनिंग लीज दुर्गा दिनोदिया के नाम पर ट्रांसफर की गई। इन्वायरमेंट क्लीयरेंस में बड़ी गड़बड़ी की गई।
2009 में जब खदान की कैपेसिटी 14175 टन प्रतिवर्ष बढ़ाई गई तो ईसी मंजूर किया गया। सरकार ने इसे बी-2 कैटेगरी का माना और ईआईए व जनसुनवाई के बिना ही इन्वायरमेंट क्लीयरेंस देने की सिफारिश की। खदान क्षेत्र के आसपास की पूरी जानकारी मांगी गई थी। प्रतिवेदन में टीपाखोल डैम को ही गायब कर दिया गया। आवेदन में बताया गया कि माइनिंग लीज क्षेत्र के दस किमी रेडियस में कोई अभ्यारण्य, नेशनल पार्क या ऐतिहासिक स्थल नहीं हैं। टीपाखोल गांव की दूरी 600 मीटर बताई गई। उर्दना रिजर्व फॉरेस्ट करीब 100 मीटर दूर दिखाया गया। जल स्रोतों के रूप में केवल बरसाती नाले होने की जानकारी दी गई।इस आधार पर ईसी भी मिल गई, जबकि 50 मीटर में ही टीपाखोल डैम है। मामला फिर से उठा तो खनिज विभाग ने ईई जल संसाधन से जांच प्रतिवेदन मांगा। ईई ने 24 फरवरी को माइनिंग विभाग को रिपोर्ट भेज दी है जिसमें कहा गया है कि बांध के समीप क्वाट्र्जाइट खनन किया जाना, बांध की सुरक्षा के लिहाज से उचित प्रतीत नहीं होता। इसके बाद अब खनिज विभाग ने खनिपट्टाधारक दुर्गा दिनोदिया को लीज निरस्ती का नोटिस भेजा था। कलेक्टर ने रायगढ़ बचाओ, लड़ेंगे रायगढ़ समिति की शिकायत पर जांच के आदेश दिए हैं। समिति टीपाखोल के बंड एरिया को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया है। अतिवृष्टि की स्थिति में जलभराव अधिक हुआ तो जलाशय को नुकसान होना तय है।
50 मीटर दूर है लीज एरिया-इधर यंगटी इंटरप्राइजेस के हिडन प्रोप्राइटरों ने खदान को हाथ से नहीं निकलने देने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया है। जवाब में कहा गया है कि बांध के मेड़ से 50 मीटर दूरी छोड़ी गई है। प्लांटेशन भी किया है। वार्षिक भाटक भी चुका दिया गया है। बांध से किसी प्रकार का लीकेज होने की संभावना नहीं है। नोटिस में कहा गया था कि उत्खनिपट्टा क्षेत्र में सीमा स्तंभ नहीं लगाया गया है। वृक्षारोपण नहीं किया गया है। बांध के डुबान क्षेत्र के समीप तक खनन किया गया है। इधर कलेक्टर ने इस मामले में एसडीएम रायगढ़, ईई जल संसाधन विभाग, एसडीओ फॉरेस्ट, क्षेत्रीय पर्यावरण अधिकारी, खनिज अधिकारी और खनि निरीक्षक की कमेटी बनाई है। अफसरों ने तीन दिन पहले निरीक्षण भी किया है। इस दौरान पाया गया है कि खनन लीज की सीमा का ही पता नहीं चल रहा है क्योंकि कोई भी सीमा सूचक नहीं लगा है। खदान संचालक को पिलर लगाने का आदेश दिया गया है ताकि नापजोख की जा सके।
तीन तरह के दस्तखत-खनिज विभाग से आरटीआई के तहत मिले दस्तावेजों को देखने पर पता चलता है कि दुर्गा दिनोदिया के नाम पर तीन तरह के हस्ताक्षर हैं। विक्रय विलेख के जरिए शासन और लीजधारक के बीच एग्रीमेंट हुआ था। इस एग्रीमेंट में दुर्गा दिनोदिया के जो साइन हैं, वह अन्य कागजात में दस्तखत से मेल नहीं खाते। मतलब कोई लंबे समय से दुर्गा दिनोदिया के नाम से फर्जी साइन करके रॉयल्टी भी निकाल रहा है और खनिज का कारोबार भी कर रहा है। कमेटी ने दुर्गा दिनोदिया को भी सामने लेकर आने को कहा है। संदेह है कि उनके नाम पर कोई और ही खनन कर रहा है। विक्रय विलेख में किसी मनीष अजमेरिया और सविता अजमेरिया के भी साइन हैं। डमरुधर नामक व्यक्ति के भी साइन दिखते हैं। खनिपट्टा के पश्चिम में बांध का ऊपरी क्षेत्र, दक्षिण में बांध की मेंड़ और पूर्व में जंगल है।
क्या कहते हैं रमाकांत
यंगटी इंटरप्राइजेस के लीज एरिया की जांच की जा रही है। खदान की सीमा चिह्नित करने को कहा गया है। अभी किसी ने एनओसी नहीं दी है।
– रमाकांत सोनी, खनिज अधिकारी

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