छत्तीसगढ़

43 सालों से पिता का फर्ज निभा रहे श्याम

– रवि तिवारी
देवभोग । पितृ दिवस पर आज हम आपको एक ऐसे पिता की कहानी बताने जा रहे है, जिनके कंधे पर एक, दो नहीं बल्कि सैकड़ो बच्चों के भविष्य सवारने की जिम्मेदारी है। आज हम आपको एक पिताजी की संघर्ष से भरी कहानी बताने जा रहे है। जिन्होंने अब तक 2 हजार से ज्यादा अनाथ बच्चों की जिंदगी सवारने का काम किया है।
पिछले 42 सालों से श्याम सुंदर धर्मगढ़ ब्लॉक के घमारीगुड़ा गॉव में अपनी स्वर्गीय माँ जसोदा जाल के नाम पर अनाथ आश्रम चला रहे है, और आज तक 2 हजार से ज्यादा अनाथ बच्चों को नई जिंदगी दे चुके हैं। पिछले 42 सालों में श्यामसुंदर ने एक हजार से ज्यादा अनाथ बच्चों को पढ़ा-लिखाकर अपने पैरों पर खड़ा कर दिया है, और 37 अनाथ लड़कियों की शादी भी करा चुके हैं, जबकि 17 अनाथ लड़कों की शादी करवाकर बहु भी ला चुके है।
धर्मगढ़ की गलियों से अनाथ आश्रम का सफर
श्यामसुंदर जाल ने तरुण छत्तीसगढ़ के प्रतिनिधि से चर्चा करते हुए अपने संघर्षो की कहानी को बया किया। श्यामसुंदर के मुताबिक बचपन में ही उनके सर से पिता का साया उठ गया। इसके बाद माँ ने उन्हें संभाला। घर की माली हालत इतनी खऱाब थी कि श्यामसुंदर को देवभोग ब्लॉक के कुम्हड़ई खुर्द गॉव में एक व्यक्ति के घर में काम करना पड़ा। यहां कुछ दिन काम करने के बाद श्यामसुंदर ओडि़सा के आमपानी चले गए। वहां जाकर दजऱ्ी का दुकान खोला। दजऱ्ी का काम करने के बाद भी उनका मन सेवा भाव में ही लगा रहता था। ऐसे में आमपानी छोड़कर धर्मगढ़ आकर फिर से दजऱ्ी का काम शुरू किया। आज से 42 साल पहले श्यामसुंदर को सड़क किनारे एक बच्चा रोता हुआ मिला। बच्चे को लाकर उन्होंने परवरिश शुरु की। इस दौरान कुछ ही सालों में तीन से चार अनाथ बच्चे श्यामसुंदर को मिल गए। दूधमुँहे बच्चों की संख्या देखकर आसपास के लोगों ने श्यामसुंदर को बच्चा चोर के रूप में देखना शुरू किया। तत्कालीन प्रशासकीय अधिकारियों के पास श्यामसुंदर की शिकायत पहुंची। तफ़्तीश में पहुँचे अधिकारियों ने श्यामसुंदर से कड़ाई से पूछताछ शुरू किया। थर्ड डिग्री भी इस्तेमाल हुआ। अंतत: जेल भेजने नौबत भी आ गई। श्यामसुंदर बताते है कि उस दौरान कुछ पत्रकारों ने उनकी मदद की और अधिकारियों को उनके सेवा भाव से अवगत करवाया। इस दौरान अधिकारियों ने जाँच पड़ताल करने के बाद संतुष्टि जाहिर की और उन्हें अनाथ आश्रम चलाने का लायसंस भी प्रदान किया। आज जसोदा अनाथ आश्रम में 43 बच्चों के लालन और पालन का खर्च 18 वर्ष तक शासन उठा रही है। जबकि अभी वर्तमान में 4 दूध मुँहे बच्चे है, वहीं 3 से चार वर्ष के सात बच्चे है। वहीं आश्रम में कुल 73 बच्चे है, जिनमें 19 लडके है और 54 लड़की है। श्यामसुंदर कहते है कि मैंने बचपन में ही पिता को खो दिया। माँ ने भी 18 वर्ष की उम्र में साथ छोड़ दिया। मैं जानता हूँ कि माँ बाप नहीं होना कितना तकलीफदायक है, ऐसे में यहां रहने वाले सभी बच्चों को प्यार और स्नेह देकर लालन पालन कर मैं और मेरी पत्नी कस्तूरीजाल माँ और बाप का प्यार देते है।
खुद के पैसे से बनवाया बच्चों के लिए अनाथ आश्रम
बेचैन मन के साथ श्यामसुंदर ने एक अनाथ आश्रम शुरू करने का संकल्प ले लिया। मन की बेचैनी और दिमाग का जुनून अनाथ आश्रम की नींव का पत्थर बना और आज से 38 साल पहले घमारीगुड़ा में श्यामसुंदर ने अनाथ आश्रम शुरू कर दिया। श्यामसुंदर के जज्बे को देखते हुए आसपास के लोगों ने भी अपने स्तर पर आर्थिक मदद देकर उनका भरपुर सहयोग किया। जनसहयोग ऐसा रहा कि श्यामसुंदर ने एक बड़ा आश्रम तैयार कर लिया। आज उस आश्रम में श्यामसुंदर अपनी पत्नी के साथ रहकर अनाथ बच्चों की सेवा करते है। श्याम सुंदर बताते है कि शुरुवाती दिनों में दजऱ्ी का दुकान चलाकर उसी पैसे से वे अनाथ आश्रम चलाते थे।
बच्चे कहते है माँ और पिता
आश्रम में रहने वाले छोटे बच्चों से लेकर बड़े बच्चे श्यामसुंदर को पिताजी और उनकी पत्नी कस्तूरबा जाल को माँ कहकर सम्बोधित करती है। वहीं श्यामसुंदर और कस्तूरी भी बच्चों को भरपूर स्नेह देते है। आश्रम में रहने वाले बच्चे भी अपने जरूरत के हर छोटे मोटे सामान के लिए अपने पिता को कहते है। उनके पिता श्यामसुंदर भी बच्चों की हर जरूरत को पूरा करते है। बच्चे कहते है कि हम अनाथ नहीं है। हमें भगवान ने इतने अच्छे माता पिता दिया है। जो हमें पढ़ाने लिखाने से लेकर हमारी हर खुशी को पूरा करने में तत्पर रहते है।

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