छत्तीसगढ़

अंत्यावसायी सहकारी विकास समिति की दुकानों पर है अपात्रों का कब्जा

दंतेवाड़ा । अंत्यावसायी सहकारी विकास समिति दंतेवाड़ा द्वारा मध्यप्रदेश शासन ने स्वाबलंबन योजना अंतर्गत 1992 में आंवराभाटा रेलवे क्रॉसिंग के पास एक काम्पलेक्स का निर्माण करवाया था जिसमें 9 दुकानें बनाई गई थी। मध्यप्रदेश के जमाने में बनी दुकानें आज भी चल रही है। 9 दुकानें दंतेवाड़ा में, 12 दुकान गीदम एवं 16 दुकान बचेली में बनाए गए थे जो वर्तमान में भी अस्तित्व में है और इनका संचालन देखरेख अंत्यावसायी सहकारी विकास समिति मर्या0 दंतेवाड़ा के जिम्मे है। दुकानों का किराया उस समय 400 रूपए प्रति माह निर्धारित किया गया था तीन दशक से ज्यादा समय गुजर जाने के बाद भी दुकानों का रेंट 400 रूपए ही है जिसे आज तक नहीं बढ़ाया गया है। जो दुकानें चल रही है उनका भी किराया सालों से अंत्यावसायी सह0वि0समि0 दंतेवाड़ा के कार्यालय में जमा नहीं किया जा रहा है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि जिम्मेदार अंत्यावसायी सह0समिति इस मामले में आंखें मूंदे बैठी है। विभागीय अधिकारियों के अकर्मण्यता के चलते हितग्राहियों से किराया भी वसूल नहीं कर पा रहा अंत्यावसायी सहकारी समिति। विभाग की कमजोरी एवं सुस्त कार्यप्रणाली के चलते समिति की दुकानों पर सालों से अपात्र लोगों का कब्जा है।
जिला अंत्यावसायी सहकारी विकास समिति मर्या0 दंतेवाड़ा से सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी से यह मालुम हुआ है कि अंत्यावसायी सहकारी समिति की 9 दुकानें आंवराभाटा रेल्वे क्रासिंग के पास मध्यप्रदेश शासन के दौरान बनी थी ये सभी दुकानें वर्तमान में भी अस्तित्व में है इनमें से 2 दुकानो की नीलामी पहले ही कर दी गई थी वहीं 7 दुकानें अभी भी अंत्यावसायी सहकारी विकास समिति के पास है। अंत्यावसायी सहकारी समिति के कार्यपालन अधिकारी जीतेंद्र बघेल ने बताया कि 7 दुकानें अभी समिति के अधीन है। इनमें 4 पात्र हितग्राही शिवप्रसाद, प्रमोद एक्का, सुनील लकड़ा एवं रामेश्वर को वर्ष 2005 में दुकान आबंटित की गई थी वहीं तीन हितग्राही में फूलमाबाई को 2008 में, बृजभूषण को 2009 में एवं लक्ष्मी कर्मा को वर्ष 2000 मे स्वाबलंबन योजना के तहत स्वरोजगार हेतु दुकान आबंटित की गई है। श्री बघेल ने बताया कि हितग्राही कई सालों से दुकानों का किराया जो प्रतिमाह 400 रूपए निर्धारित है वो भी जमा नहीं कर रहे हैं। कई बार किराया राशि जमा करने कहा भी गया है लेकिन किराया जमा नहीं किया जा रहा है जिसकी जानकारी उच्च स्तर पर पत्र लिखकर दी जा चुकी है। एक ओर दुकान का मामुली किराया भी जमा नहीं किया जा रहा है तो वहीं दुसरी ओर पात्र हितग्राही स्वयं बिजनेस न कर किसी अन्य व्यक्ति को 3 से 5 हजार रूपए प्रतिमाह वसूल रहे हंै जो समिति के नियत-शर्तो का पुरी तरह से उल्लंघन है। दुकान के सामने की रिक्त जगह को भी अतिक्रमण कर कब्जा किया गया है। आज आलम यह है कि बेरोजगार युवाओं को रोजगार के लिए शहर में कहीं भी सड़क किनारे एक अदद दुकान ढुुंढे नहीं मिल रही वहीं दुसरी ओर समिति की दुकान लेकर पात्र हितग्राही दुसरे को किराये पर देकर उससे मुनाफा कमाने में लगे हैं। ऐसे लोगों को चिहिन्त कर उनके खिलाफ सख्त कारवाई किए जाने की जरूरत है। दशकों पुराने आबंटन को निरस्त कर आज के मार्केट रेट से नया किराया राशि निर्धारित कर नये सिरे से दुकान आबंटन किया जाना चाहिए ताकि जरूरतमंद बेरोजगार युवाओं को स्वरोजगार के लिए दुकान आबंटन सुनिश्चित किया जा सके।

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