कुर्सी बचाने के चक्कर में हुई खेल की अनदेखी
पिछले 5 वर्षों में छत्तीसगढ़ के खिलाडिय़ों की उपेक्षा होती रही
जसवंत क्लाडियस,तरुण छत्तीसगढ़ संवाददाता
एक नवम्बर 2000 को हमारे प्रदेश के गठन के साथ ही खेलों की दुनिया में छत्तीसगढ़ के बच्चों, किशोरों, युवाओं के लिए खेलकूद में अपनी प्रतिभा को दिखलाने की अपार संभावना थी। समय के आगे बढऩे के साथ ही साथ 2018 दिसम्बर तक प्रदेश के खिलाडिय़ों ने व्हालीबाल, बास्केटबाल, हैंडबाल, बैडमिंटन, शक्तितोलन, शतरंज, क्रिकेट, नेटबाल, भारोत्तोलन, कयाकिंग-कैनोइंग, टेनिस, रोलबाल, फुटबाल आदि कई खेल हैं जिसमें शानदार प्रदर्शन किया। वस्तुत: 2018 दिसम्बर तक खेलकूद के लिए अनुकूल वातावरण बन गया था परंतु दुर्भाग्य की बात है इसी समय छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार आ गई और खेल का भविष्य अंधकारमय हो गया। छत्तीसगढ़ राज्य में एक परंपरा मुख्यमंत्री को छत्तीसगढ़ राज्य ओलंपिक संघ के अध्यक्ष बनाने से शुरू हुई। वास्तव में यह सही हो सकती थी जब मुख्यमंत्री की सोच खेल को आगे बढ़ाने की हो। वह खेल के महत्व को समझने वाला हो। उनमें खेलकूद से जुड़े हुए लोगों को लेकर चलने की चाहत हो। सोचनीय तथ्य यह है कि छत्तीसगढ़ के कांग्रेसी मुख्यमंत्री इस वचार से भिन्नता रखने वाले निकले साथ ही साथ खेल विभाग में पदस्थ युवा मंत्री की बात ही निराली है। वे पांच वर्षों तक खेल विभाग के मंत्री रहे लेकिन खेलहित में ऐसा कुछ भी नहीं किया जिसका उल्लेख यहां पर किया जा सके। इसके अलावा जिन अधिकारियों की नियुक्ति खेल संचालनालय में हुई वे भी खेल के माध्यम से छत्तीसगढ़ को राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने के महत्व को नहीं समझ सके। खेल संचालनालय में राज्य सेवा स्तर के अधिकारी को खेल प्रमुख बनाकर करीब पांच वर्ष तक पदस्थ कर दिया गया जैसे कि उनके बिना छत्तीसगढ़ में खेल गतिविधियों को संचालित नहीं किया जा सकेगा। कांग्रेस सरकार के इसी कार्यकाल में संचालनालय में पदस्थ तेजतर्रार और खेल को बढ़ावा देने के लिए सकारात्मक सोच रखने वाले अधिकारियों को स्थानांतरित कर दिया गया। खेल संघ के पदाधिकारियों के साथ समान व्यवहार नहीं किया गया। कुछ पदाधिकारी खेल अधिकारियों को अपने भरोसे में लेकर मनमर्जी से आदेश निकलवाने लगे। खेल संघ के ऐसे पदाधिकारी जो अपने पक्ष को मजबूती से रखते थे न सिर्फ उनका अपमान किया गया बल्कि उनके खेल, खिलाडिय़ों, प्रशिक्षकों की उपेक्षा की गई। यहां तक बजट आबंटन में भी पक्षपात की बातें आती रही। कुल मिलाकर मुख्यमंत्री का खेल संघ का अध्यक्ष होना छत्तीसगढ़ के खेल, खिलाडिय़ों, प्रशिक्षकों, अभिभावकों के लिए भारी पड़ गया। खेल दिवस को दिये जाने वाले अलंकरण, पुरस्कार समारोह, उत्कृष्ठ खिलाड़ी की घोषणा जैसी मान्यता धरी की धरी रह गई। 2022, 2023 में दो राष्ट्रीय खेल हुए परंतु परंपरा अनुसार खेलों में भाग लेने से पहले स्वर्ण, रजत, कांस्य पदक जीतने वाले खिलाडिय़ों के लिए प्रोत्साहन राशि की घोषणा तक नहीं की गई हालांकि हमारे जाबाज खिलाडिय़ों ने अपने दम पर पदक जीते। 2023 में अब चुनकर आई नई सरकार के समक्ष खेल विभाग में आमूलचूल परिवर्तन की चुनौती है क्योंकि प्रदेश में खेल प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं सिर्फ उन्हें निखारने की आवश्यकता है।