पहले तालाब से उठती थी बदबू, अब लोग आते हैं घूमने
गरियाबंद । किसी गांव में अमृत सरोवर होने से उस गांव के अच्छे दिन लौट आना आखिर कैसे सम्भव है। कोई एक तालाब कैसे किसी की दशा और दिशा को बदल पाने में समर्थ हो सकता हैं यह अगर देखना है तो गरियाबंद विकासखंड के बिंद्रा नवागढ़ में आसानी से देखा जा सकता है। गांव के ग्रामीण इस तालाब की चर्चा ऐसे उत्साह से करते हैं कि जैसे गांव के किसी को कोई उपलब्धि हासिल हुई हो। तालाब दिखाते हुए वे कहते कि पहले डबरी सा रह गया था यह तालाब और इसका पानी। पानी इतना गंदा हो गया था कि हवा के चलने पर इसकी बदबू दूर तक महसूस होती थी। किंतु महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना ने इसकी कायाकल्प कर दी अब लोग यहां शाम को घूमने आते हैं पर अभी देखिए कितना सुंदर है यह तालाब और इसका पानी। तालाब के संबंध में विस्तार से बताते हुए यहां की सरपंच श्रीमती लक्ष्मीबाई ध्रुव कहती है कि हम सोच भी नही सकते थे कि एक तालाब गांव की दशा और दिशा को बदल सकता है। सरपंच के तौर पर मैं तालाब की दशा को लेकर काफी चिंतित थी। बस एक ही ख्याल रहता था कि किसी भी तरह से इस तालाब को फिर से पुनर्जीवित तो करना ही है। यहां के 646 पंजीकृत परिवार जिसकी जनसंख्या लगभग 1471 है। इस गांव में पानी की काफी समस्या भी थी। दूरस्थ अंचल एवं वन क्षेत्र में होने के कारण निस्तारी के लिए पानी की कमी की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। उन्होने आगे बताया कि तालाब को पुनर्जीवित करने के लिए ग्राम पंचायत ने ग्रामीणों की बैठक आयोजित की। यहां सभी के बीच काफी चर्चा हुई। धीरे-धीरे बात बनने और बढऩे लगी। आखिरकार यह तय हुआ कि पानी की समस्या को दूर करने के लिए तालाब का गहरीकरण किया जाए और इसके पाटों को बांधने के लिए पीचिंग का कार्य भी करवाया जाए। इसके लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से राशि की व्यवस्था की गई। ग्रामवासियों के निर्णय पर ग्राम पंचायत ने एक प्रस्ताव तैयार किया और विधिवत अनुमोदन प्राप्त कर, आठ लाख चवालिस हजार रुपये की लागत से तालाब गहरीकरण की प्रशासकीय स्वीकृति प्राप्त की। इसमें महात्मा गांधी नरेगा से सात लाख चवालिस हजार रूपये और 15 वें वित्त योजना से एक लाख रूपयें का अभिसरण शामिल है। इस तरह अमृत सरोवर के लिए संसाधनों की व्यवस्था के बाद 15 जून 2022 को तालाब गहरीकरण की शुरुआत हुई। ग्रामीणों, विशेषकर महिलाओं की भागीदारी और मेहनत से तालाब का आकार खुलने लगा एवं गहरीकरण भी हुआ। इस कार्य से जहां ग्रामीणों को सीधे रोजगार के अवसर प्राप्त हुए, वहीं गांव को जल संरक्षण का साधन भी उपलब्ध हो गया है।