छत्तीसगढ़

पारंपरिक छेरता त्यौहार की अंचल में रही धूम

पत्थलगांव । अंचल का पारंपरिक छेरता त्यौहार आज ग्रामीण अंचल मे हर्षोउल्लास के साथ मनाया गया। सुबह से ही बच्चों द्वारा टोली बनाकर छेर-छेरा रे छेर छेरा कोठी के धान ला हेर हेरा की पंक्तियां गाकर धान मांगने की प्रथा निभायी जा रही थी,उसके अलावा गांव देहात के बच्चे अपने पैरो मे लकडी की कांठ बनाकर उसपे चलकर इस त्यौहार की रित को पूरी कर रहे थे। छेरता पुष पुन्नी का त्यौहार अंचल का प्रसिद्ध धार्मिक त्यौहार है,इस दिन के बाद आदिवासी अंचल में शुभ मुहुर्तो पर लगा विराम हटकर सभी मांगलिक कार्य शुरू कर दिये जाते है। छेरछेरा का त्यौहार आदिवासियों का प्रमुख त्यौहार है आदिकाल से चले आ रहे आदिवासीयो की पारंपरिक त्यौहार छेर छेरता पुनी आज भी गांव गांव में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है यह त्यौहार पौष महिने के पूर्णिमा के दिन से शुरू होता है और लगभग सप्ताह भर तक चलता है इसलिये इस त्यौहान को पौष पुनी के नाम से भी जाना जाता है आदिवासीयो के साथ गैर आदिवासी लोग भी इस त्यौहार को मनाने में पीछे नही रहते है यह त्यौहार गौंड, कंवर,नागवंशी,नगेसिया, भुईंया, खैरवार,खडिया, संवरा,चिक,चिकवा, रौतिया, मुंडा,डोम अगरिया आदि जनजाति के लोगों का प्रमुख त्यौहार है,इस दिन जगह-जगह आदिवासी युवक-युवतियों द्वारा विशाल समूह में पिकनिक मनाया जाता है। त्यौहार की परंपरा शिव-पार्वती की आस्था से जुड़ा हुआ है,इस पर्व के दौरान भगवान शिव एवं माता पार्वती की अराधना की जाती है,कहा जाता है कि पहाड़ पर या वन में शिव एवं पार्वती की पूजा करने से उस क्षेत्र में कभी भी आकाल या अज्ञात भय की आशंका नही बनती। यही कारण है कि अंचल में आज भी भगवान शिव एवं पार्वती की पूजा उंचे पहाड़ या घने जंगलो में पारंपरिक रूप से की जाती है। आज के दिन का विशेष महत्व यह है कि छेरता मांगने आने वाले किसी भी वर्ग के लोगों को घर के दरवाजे से खाली हाथ लौटाया नही जाता है। आज के दिन से ही आदिवासी समाज के शुभ कार्यों में लगा ब्रेक भी समाप्त हो जाता है।

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