रामायण के शाश्वत मूल्य कभी नहीं बदलने वाले:काशीराम
भिलाई । समय चाहे कितना भी बदल जाये लेकिन रामायण के आदर्श शाश्वत मूल्य कभी नहीं बदलने वाले। आज भी रामायण के पात्र जीवन-मूल्यों के प्रति हमारा मार्गदर्शन करते हैं। यही वजह है कि रामलीला के प्रति आत्मीय लगाव और उसे देखने की ललक आज भी हमारे ह्रदय में बचपन की तरह ही बनी हुयी है। यह कहना है कभी मांदर की थाप से रामलीला को जीवंत बनाने वाले काशीराम देवांगन की। रामायण के पात्रों को अपने हृदय में संजोकर रखने वाले काशीराम देवांगन जीई रोड के किनारे नारियल पानी और फलों का जूस बेचकर अपनी जीविका का निर्वाह करते हैं। जीविकोपार्जन के इस कार्य में उनकी धर्मपत्नी श्रीमती पार्वती देवी बराबर का साथ देती हैं। इस व्यस्त समय में भी वे अपने पूर्वजों के दिए रामायण को संजो कर रखे हैं और उसमें से सुन्दरकाण्ड अपने ठेले पर रखे हैं जिसे ग्राहक न हों तो समय मिलते ही पढ़ने लगते हैं। काशीराम देवांगन बीते समय के रामलीला मंचन को शिद्दत से याद करते हैं और कहते हैं कि भिलाई में रामनगर से लेके सिविक सेंटर, बोरिया गेट, कैंप आदि क्षेत्रों में रामलीला का मंचन हुआ करता था और बड़ी संख्या में लोग देखने जाते थे। काशीराम बताते-बताते भावुक हो जाते हैं कि वे स्वयं रामलीला में मांदर बजाया करते थे और राम-लक्ष्मण, सीता आदि के कारुणिक और वीरोचित भाव-प्रदर्शन के दौरान मांदर की थाप के आरोह-अवरोह का खूब आनंद उठाकर बजाया करते थे। गांव थान खम्हरिया से लेकर रायपुर के लवन तक रामलीला की धूम रही लेकिन अब वह दौर कहाँ ? अब तो लोग अपने स्वार्थ के लिए क्या नहीं कर रहे हैं लेकिन वह दौर भी था जब उनके पिताश्री भूखनलाल देवांगन और माताश्री तीजनबाई देवांगन रामायण के आदर्शों को अपने बच्चों में उतारने के लिए जान लड़ा देते थे। हालाँकि उनके पिताश्री भूखनलाल देवांगन पढ़े-लिखे नहीं थे लेकिन अद्भुत बात थी कि तुलसीकृत रामायण रामचरित मानस उन्हें मुखाग्र था ! किसी भी कांड के दोहा-चौपाई, सोरठा को पूछ लीजिये वे कंठस्थ कर लिए थे। वे पूर्वजों ले मिले रामायण को संजो को रखते थे और संयोग देखिये की जिस तिथि को राम-लक्ष्मण, सीता जी को वनवास हुआ था उसी दिन वे भी सदा के लिए चले गए लेकिन जाते-जाते हमें भी रामायण रूपी वह धरोहर दे गए। वह दिन है और आज, हम सभी भाई-बहिन उसे दिल से लगा कर रखते हैं और घर से लेकर दूकान तक रामायण के प्रति अनुराग ऐसा है कि पढ़ते ही रहते हैं । बदलते दौर में आज की पीढ़ी को रामायण की सबसे ज्यादा जरूरत है। इस ओर सभी को ध्यान देना चाहिए।