छत्तीसगढ़

सुहागिनों ने की वट-वृक्ष तले वट सावित्री की पूजा

दंतेवाड़ा । वट सावित्री पर्व के मौके पर आज सुहागिनों ने वट वृक्ष की पूजा कर अपने पतिदेव की दीर्घायु की कामना की। इस वर्ष वट सावित्री पर शुक्र अमावस्या का शुभ संयोग बन रहा है, इसलिए यह व्रतियों के लिए और भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। वट सावित्रि पूजा के उपलक्ष्य में आज नगर की सुहागिन महिलाओं ने वट वृक्ष पर सामूहिक रूप से पूजा अर्चना की तथा वृक्ष की परिक्रमा करते हुए 108 बार सूत लपेटा। वट वृक्ष को देव वृक्ष माना गया है। वट वृक्षों की पूजा अर्चना करने आज सुबह से ही वट वृक्ष के नीचे सुहागिन महिलाओं की भीड़ रही। व्रत रखकर फल और फूलों की थाल सजाए महिलाएं इकटठी होकर पूजा करने पहुंची थी जहां उन्होने वटवृक्ष पर चंदन सिंदूर लगाकर वटवृक्ष को धागे से लपेटा। जल, फूल, मोली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया चना, गूड तथा धूप दीप दिखाकर वट वृक्ष की पूजा की तथा बड़े ही मनोयोग से सावित्री सत्यवान की कथा सुनी। पूजन पश्चात महिलाओं ने घर पहूंच अपने अपने अपने पतिदेव के चरण स्पर्श किए और उन्हें वट पूजा का प्रसाद देने के बाद फलाहार से अपना उपवास तोड़ा। अंचल में अनेक स्थानों में सुहागिन महिलाओं ने वटसावित्री पूजन में भाग लिया। दंतेवाड़ा समेत गीदम, नकुलनार, बचेली, बारसूर, किरंदुल में भी वट सावित्री पर्व पर महिलाओं ने पूरे विधि विधान से बरगद वृक्ष की पूजा अर्चना कर व्रत रखा और अपने अपने पतियों की दीर्घायु व अच्छी सेहत के लिये ईश्वर से कामना की। पौराणिक मान्यता के अनुसार सती सावित्री ने आज ही के दिन वट वृक्ष की पूजा कर अपने पति को मौत के मुंह में जाने से बचा लिया था। कहा जाता है कि सती सावित्री ने वटवृक्ष की पूजा कर अपने पति की दीर्घायु होने का वरदान मांगा था और वरदान के चलते ही यमराज ने सावित्री के कहने पर वरदान दिया था कि आज के दिन जो सुहागिन महिलाएं व्रत रखकर वटवृक्षों की पूजा-अर्चना करेंगी उनके पति आकस्मिक मौत का शिकार नहीं होंगे तथा दीर्घायु होंगे। इसी मान्यता के अनुसार प्रतिवर्ष ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या तिथि के दिन सुहागिन महिलाएं व्रत रखकर वटवृक्षों की पूजा करतीं हैं।

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