खेल – मनोरंजन

गौरवपूर्ण आयोजन के लिए हर सहयोगी को बधाई

हॉकी : 79 वीं राजा महंत सर्वेश्वरदास अखिल भारतीय प्रतियोगिता, पेट्रोलियम स्पोट्र्स बोर्ड विजेता

– जसवंत क्लाडियस,तरुण छत्तीसगढ़ संवाददाता
हाकी प्राचीन काल से खेला जा रहा है। इतिहास के पन्नों पर नजर डालने से स्पष्ट है कि करीब 4000 वर्ष पूर्व यह खेल (इजिप्त) मिस्र में खेला जाता था। आगे चलकर हाकी को नियमानुसार खेला जाने लगा। इसके पश्चात स्काटलैंड में 1527 में हाकी को फिर से प्रचलित पाया गया। इसमें एक गेंद को स्टिक से मारा जाता था। समय के बदलाव के साथ-साथ हाकी के खेल का मूल स्वरूप स्टिक और गेंद आज भी बना हुआ है। मुकाबले का नियम बदलता जा रहा है लेकिन हाकी निरंतर लोगों के दिलों में बसता जा रहा है। वैसे यह बात लगभग सभी शोधार्थी/इतिहासकार, खोजकर्ता इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि आधुनिक काल में हम जो हाकी का स्वरूप देख रहे हैं वह 18वीं सदी के पूर्वाद्र्ध तथा 19वीं सदी के प्रारंभ में ब्रिटेन के लोगों द्वारा दिया गया माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह खेल ब्रिटिश सैनिकों द्वारा भारत में 1850 के आसपास लाया गया। भारत के पहले हाकी क्लब को कोलकाता में स्थापित किए जाने की पुष्टि होती है। भारत में इस खेल की लोकप्रियता की वजह से कोलकाता में बेटनकप 1885 जबकि आगा खान टूर्नामेंट 1958 मुम्बई में शुरु हुए। इधर छत्तीसगढ़ के बिलासपुर और राजनांदगांव में हाकी की लोकप्रियता समय के अनुरूप बढऩे लगी। इसमें भारतीय रेलवे में काम करने वाले एंग्लो-इंडियन परिवार के सदस्य और हाकी में दिलचस्पी रखने वाले स्थानीय लोगों की प्रमुख भूमिका रही। बिलासपुर में भारतीय रेल में सेवा करने वाले एंग्लो इंडियन परिवार के सदस्य लेस्ली क्लाडियस भारत के महान हाकी खिलाड़ी बने। उधम सिंह के साथ वे सिर्फ दूसरे ऐसे हाकी खिलाड़ी हैं। जिन्होंने चार ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों 1948, 1952, 1956, 1960 में भाग लिया और तीन स्वर्ण, एक रजत पदक जीता जबकि उधम सिंह 1952, 1956, 1960, 1964 के ओलंपिक खेलों में भारतीय टीम के सदस्य रहे और तीन स्वर्ण, एक रजत पदक भारत को दिलाया। राजनांदगांव के इस ंअंतर्राष्ट्रीय हाकी स्टेडियम का स्व.लेस्ली क्लाडियस के नाम पर किया जा सकता है। राजनांदगांव में हाकी के प्रति स्थानीय निवासियों का उत्साह और राजघरानों के द्वारा इस खेल को प्रोत्साहित किए जाने का परिणाम यह है कि इस नगर को आज भी हाकी के नर्सरी के रूप में याद किया जाता है। सौभाग्य की बात है कि राजनांदगांव की महिला हाकी खिलाड़ी रेणुका यादव छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पश्चात ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों (रियो द जेनेरिया-ब्राजील-2016) में भाग लेने वाली प्रथम व एकमात्र एथलीट हैं। राजनांदगांव के खेलप्रेमियों, खेल प्रशासकों, राजनीतिज्ञों, हाकी विशेषज्ञों और सहयोगियों की बदौलत राजा महंत सर्वेश्वरदास अखिल भारतीय प्रतियोगिता का आयोजन पिछले 79 वर्षों से निरंतर जारी है। यह स्पर्धा आज भारत के सबसे पुरानी हाकी चैंपियनशिप के रूप में जानी जाता है। यह अत्यंत गर्व की बात है दो वर्ष व्यवधान के पश्चात 2023 में यह स्पर्धा बेहद यादगार ढंग से सम्पन्न हुई। इसमें देश के प्रतिष्ठित टीमों ने भाग लिया और फायनल मुकाबले में पेट्रोलियम स्पोर्ट्स बोर्ड नई दिल्ली की टीम ने सेल अकादमी राउरकेला को 7-1 से पछाड़कर विजेता बनने का गौरव हासिल किया। छत्तीसगढ़ के पहले अंतर्राष्ट्रीय हाकी स्टेडियम में 10 से 15 हजार दर्शकों की उपस्थिति में यह संघर्ष हुआ। राजनांदगांव की जनता को इस सफल आयोजन के लिए बधाई। इस टूर्नामेंट की एक बड़ी उपलब्धि यह भी रही है कि अब तक के 79 आयोजन में किसी भी प्रकार की अनियमितता, अन्याय, पक्षपात, विवाद भाग लेने वालों के साथ कभी नहीं हुआ। अत: यह नगरी अतिथियों के स्वागत, सम्मान का प्रतीक है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button