पैरी नदी में बने साढ़े 25 करोड़ के नवागांव एनीकेट में पानी नहीं होने की खूब है चर्चा
राजिम । त्रिवेणी संगम में विश्व प्रसिद्ध पंचमुखी कुलेश्वर नाथ महादेव मंदिर से महज कुछ ही दूरी पर पैरी नदी में सन् 2015-16 में नवागांव एनीकेट का निर्माण किया गया है। साढ़े 25 करोड़ की लागत से छत्तीसगढ़ जल संसाधन विभाग ने बनाया है। वर्षा ऋतु हाल ही में विदा हुई है और एनीकेट में पानी नहीं है इस बात को लेकर धमतरी, रायपुर, गरियाबंद तीनों जिला में खूब चर्चा हो रही है। लोग तो यहां तक कह रहे हैं यदि एनीकट में पानी नहीं रोकना है तो फिर करोड़ों रुपया खर्च क्यों किया गया। यह हाले दिल इसी वर्ष का नहीं है बल्कि हर साल यह माजरा देखने को मिलता है। इस मिनी जलाशय का निर्माण हुआ तो आसपास के हजारों लोगों में खुशी थी कि अब पानी का लेवल कभी कम नहीं होगा। भूजल स्तर हमेशा बना रहेगा परंतु अब तो उल्टा हो रहा है। बताया जाता है कि यह धमतरी जल संसाधन विभाग की देखरेख में है। इनके लगभग सारे गेट खुले हुए हैं। कुछ मात्रा में धार चल रहा है वह पानी भी खुला गेट से निकल रहे हैं। नतीजा यह है कि अभी से लोगों को चिंता सता रही है कि अब क्या होगा। अभी तो बरसात का मौसम भी ठीक से नहीं गया है, कहीं जल स्तर बैठ गया तो हजारों लाखों लोगों को पानी की समस्या से जूझना पड़ सकता है।
इस चित्र को देखने के बाद शायद कहने की जरूरत नहीं होगी कि नदी में रेत कण दिख रहे हैं या फिर मिट्टी की परत जमी हुई है जिसे हरी घास ने जकड़ लिया है और तो और उसमें बड़े-बड़े पौधे भी बाहर निकले हुए दिखाई दे रहे हैं। यह दृश्य सिर्फ एनीकेट के पास का ही नहीं है बल्कि चौबेबांधा पुल से आगे तक ऐसा ही दिखाई दे रहा है। तो अब उजला रेतीले नदी कहां छिप गई है या फिर कोई छिपा दिया है। समझने वाले के लिए इशारा काफी होता है कुछ भी हो नदी का अस्तित्व दिन-ब-दिन विकराल रूप ले रही है। हमने कुछ लोगों से चर्चा किया तो उन्होंने साफ कहा कि शासन और सरकार को रेत के धंधा से फुर्सत मिले तब नदी की सुरक्षा करें। उम्र दराज बिसाहू राम, चैन सिंह,परऊ राम नदी के पास ही मिल गए, इसे जब पूछा गया तो अपने जमाने की बात को याद करके मदमस्त हो गए और कहा कि नदी की रेत में चलने से ही पांव साफ हो जाता था। अब तो चलने की बात तो दूर एक कदम भी रखो तो और गंदा हो जाता है।
नवीन कुम्भ कल्प मेला ग्राउंड यहीं पर
जानकारी के मुताबिक नवीन कुंभ कल्प मेला ग्राउंड इसी के ऊपर बनना है। छत्तीसगढ़ सरकार ने लगभग 64 एकड़ जमीन आरक्षित किया है जिस पर हर साल मेला लगाने की बात कहते हैं और अंतत: पुराने मैदान पर ही लगता है। जो भी हो भविष्य में इसी मैदान में मेला लगना है। दूर देश से आए हुए साधु संत इसी नदी में डुबकी लगाकर शाही स्नान करेंगे। इसके लिए तीन स्नान कुंड भी बनाया गया है। जब वह नदी में पांव रखेंगे तब उन्हें रेत नहीं बल्कि मिट्टी का आभास होगा। ऐसे में उनकी सोच कैसे बनेगी यह प्रश्न दिलचस्प होता जा रहा है। बावजूद इसके बड़े-बड़े घास फूस को यदि साफ किया जाता है तो लाखों करोड़ों रुपए ऐसे ही बर्बाद हो जाएंगे। मिट्टी को हटाने में न जाने कितने दिन लगेंगे कह पाना मुश्किल है।
माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक 15 से 20 दिन ही लबालब रहता है एनीकट
बताया जाता है कि माघ पूर्णिमा से लेकर महाशिवरात्रि तक 15 दिनों के लिए नवागांव एनीकट में पानी भरकर लबालब किया जाता है और इसी से त्रिवेणी संगम में पुण्य स्नान के लिए पानी सप्लाई होता है। जैसे ही मेला खत्म होती है उसके बाद फिर से गेट खुला कर देते हैं। सारा पानी बह जाता है। वैसे भी गर्मी के दिनों में पानी के एक-एक बूंद बहुत कीमती होता है लेकिन जिम्मेदारों की उदासीनता के चलते यह हश्र होता है। अब पानी का महत्व बताने वाले विभाग को कौन बताएं की पानी बहुत कीमती है इन्हें व्यर्थ ना बहाएं।