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छत्तीसगढ़

भाजपा को मोदी मैजिक पर भरोसा तो जातीय फार्मूले के भरोसे है कांग्रेस

भिलाई । दुर्ग लोकसभा चुनाव के लिए बिसात बिछ चुकी है और भाजपा-कांग्रेस ने अपने मोहरे भी फिट कर दिए हैं। अब विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच विनिंग फैक्टर्स की तलाश की जा रही है और आंतरिक समीकरण सेट किये जा रहे हैं कि चुनाव को लेकर किस प्रकार की रूपरेखा खींची जाये। इन सबके बीच बीजेपी ने वोटों के ध्रुवीकरण के लिए अपने प्रयास तेज कर दिये हैं। दुर्ग निर्वाचन क्षेत्र से सीटिंग एमपी विजय बघेल पर बीजेपी फिर से दांव लगाया है। वहीं कांग्रेस ने नए चेहरे के रूप में राजेंद्र साहू को मैदान मारने के लिए चुनावी समर में भेजा है। दुर्ग लोकसभा में जातीय समीकरण साधने वाले प्रत्याशियों की जीत तय मानी जाती रही है इस लिहाज से देखें तो विजय बघेल और राजेंद्र साहू दोनों दो प्रमुख जातियों का रिप्रजेंटेशन करते हैं, बघेल जहाँ कुर्मी जाति को बिलॉन्ग करते हैं वहीं राजेंद्र साहू, साहू समाज से आते हैं ; इसलिए अपने साथ ही एक दूसरे की जातियों को इम्प्रेस करना और साधना राजनीतिक दृष्टि से दोनों के लिए बेहद डिफिकल्ट होगा। अग्नि-परीक्षा विजय बघेल की भी है क्योंकि कुछ माह पूर्व ही हुए विधानसभा चुनाव में वे अपने गृह क्षेत्र पाटन विधानसभा में पार्टी की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे और चुनाव हार गए थे। इस लिहाज से उन पर दोहरी जिम्मेदारी होगी कि साबित करें कि पाटन के साथ-साथ लोकसभा की अन्य विधानसभा सीटों से जनता का विश्वास उनसे टूटा नहीं है। वैसे मोदी मैजिक ऐसा है कि माना जा रहा है कि बीजेपी के लिए यही जिताने वाला सबसे बड़ा कारक बनके उभरेगा। अब यह प्रत्याशी पर निर्भर है कि वह इसे कैसे भुनाता है। वैसे विजय बघेल का इतिहास देखें तो राजनीति में उनकी अपनी अलग स्टाइल है। वे सीधे आम लोगों से जुड़ते हैं। यही वजह है कि शुरुआत में स्थानीय निकाय के चुनाव में उन्होंने दोनों ही प्रमुख दलों के लाख प्रयासों के बाद भी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीत कर अपनी काबीलियत सिद्ध की थी। उनके पास सभी को साध लेने की कला है। चुनाव को लेकर उन्होंने तैयारियां भी शुरू कर दी हैं और लगातार दौरे भी कर रहे हैं। दूसरी ओर देखें तो कांग्रेस ने राजेंद्र साहू पर जो दांव खेला है उसके नेपथ्य में साहू वोटों का पोलराइजेशन भी है क्योंकि साहू समाज को बीजेपी से काफी नजदीकी माना जाता है। दिवंगत सांसद ताराचंद साहू और पूर्व साडा उपाध्यक्ष रहे डॉ. मनराखन लाल साहू ने इसकी मजबूत नींव रखी थी। कांग्रेस चाहती है कि राजेंद्र साहू के बहाने वह बीजेपी के साहू वोट बैंक में सेंध मार दे। इसके लिए गांव-गांव में बैठकों का दौर भी शुरू हो गया। इसीलिये भारतीय जनता पार्टी फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। भाजपा के इनसाइडर्स बताते हैं कि पाटन विधानसभा चुनाव के ट्रेलर से सबक लेकर बीजेपी ने अपनी रणनीति में काफी बदलाव कर दिया है। जिसके तहत साहू समाज के प्रमुख लोगों को लामबंद किया जा रहा है। बताया जाता है कि मोदी मैजिक के साथ ही पार्टी जातीय समीकरण को भी फिट बैठाने के फार्मूले पर काम कर रही है। राजेंद्र साहू की दिक्कत यह है कि कांग्रेस के अनेक क्षेत्रीय नेता करप्शन के आरोपों से घिरे हैं और बीजेपी लगातार हमलावर बनी हुयी है। दूसरे, कार्यकर्ता भी बड़ी संख्या में असंतुष्ट दिखाई दे रहे हैं फिर फाइनेंसियल कंडीशन भी बहुत अच्छी नहीं है ऊपर से नेताओं की उठापटक भी अंदरखाने से अच्छे संकेत नहीं देती, ऐसे में वोटरों को साधना और पोलिंग बूथों तक लाकर मतदान करने तक बड़ी चुनौती होगी।

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