खेल – मनोरंजन

भारतीय खेल जगत का स्वर्णिम अध्याय शुरू

इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन में आमूलचूल परिवर्तन, महान धाविका सांसद पी टी उषा बनीं अध्यक्ष

– जसवंत क्लाडियस,तरुण छत्तीसगढ़ संवाददाता
भारत में नारी शक्ति को बढ़ावा देने वालों के लिए 10 दिसम्बर 2022 यादगार दिन साबित हुआ है। परिवार, समाज, प्रदेश, राष्ट्र में महिलाओं को बराबरी का सम्मान दिए जाने की मांग चारों तरफ से उठती रही है। विशेषकर राजनीतिक, सामाजिक, बौद्धिक सभी वर्गों की तरफ से 15 अगस्त 1947 को भारत की स्वतंत्रता के बाद अक्सर सुनी गई। शिक्षा, विज्ञान, कला, आदि क्षेत्र में इस दिशा में बहुत प्रयास किए गए परंतु खेलकूद के क्षेत्र में महिलाओं को वास्तविक सम्मान नहीं दिया जा सका था। 20वीं सदी में उड़नपरी पीटी उषा ने चार एशियाई खेलों 1982, 1986, 1990, 1994 में चार स्वर्ण, सात रजत पदक साथ ही एशियाई चैंपियनशिप में 14 स्वर्ण, छह रजत तथा तीन कांस्य पदक जीता था। 21वीं सदी के आरंभ से ही कई भारतीय महिला खिलाड़ियों ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ी है। बहु खेल स्पर्धाओं में ओलंपिक खेलों, विश्व चैंपियनशिप, एशियाई खेलों, राष्ट्रमंडल खेलों में प्राप्त उपलब्धि की मान्यता सबसे ज्यादा है। भारोत्तोलन में कर्णम मल्लेश्वरी, शटलर सायना नेहवाल, मुक्केबाज एमसी मेरीकाम, शटलर पीवी सिंधु, पहलवान साक्षी मलिक ने कांस्य जीता। भारोत्तोलक एस. मीराबाई चानू, शटलर पीवी सिंधु ने रजत पदक जबकि मुक्केबाज लवलीना बोरगोहेन ने भारत के लिए कांस्य पदक जीता। इस तरह भारत की महिला एथलीटों ने सुविधाओं के पर्याप्त नहीं होने के बावजूद अपनी इच्छाशक्ति के दम पर भारत का नाम रोशन किया। खेल जगत में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की उपलब्धि को जनसंख्या के आधार पर तुलना करने वालों के कारण हमें अपनी कमजोरी स्पष्ट दिखाई देती है। इसके कई कारण हैं जिसमें सबसे प्रमुख देश का नेतृत्व करने वालों की खेलकूद के प्रति लगाव व नीति निर्धारण तथा खेलकूद के सर्वांगीण विकास के लिए जिम्मेदार भारतीय ओलंपिक संघ के पदाधिकारीगणों का लचीलापन प्रमुख है। 15 अगस्त 1947 से 25 मई 2014 तक खेलकूद को भारत में बढ़ावा देने के लिए बड़ी-बड़ी बातें हुई परंतु परिणाम निराशाजनक रहा। यह सत्य है कि विश्व स्तरीय टूर्नामेंट में सफलता पाने के लिए एक प्रतिभागी को कड़ी मेहनत, समर्पण, त्याग की जरूरत होती है जिसके लिए अत्याधुनिक संसाधन, अधोसंरचना, प्रशिक्षक, धनराशि की जरूरत होती है। विजेता बनने के लिए सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि खेल की प्रतिभा चयन बचपन में, कम उम्र में कर लिया जाए फिर उसे अनुभवी प्रशिक्षकों की देखरेख में गहन प्रशिक्षण दिया जाए। इस दिशा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ठोस कदम उठाया है। भारत को खेलकूद का विश्व गुरु बनाने के लिए उन्होंने इसी सूत्र को प्राथमिकता दी है और भारतीय खेल विकास प्राधिकरण के सहयोग से सर्च टेलेंट, खेलों इंडिया, टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम, एक्सीलेंस सेंटर आदि की शुरुआत की। उन्होंने 2004 एथेंस ओलंपिक खेलों के निशानेबाजी में रजत पदक विजेता कर्नल राज्यवर्द्धन सिंह राठौर को भारत का खेलमंत्री नियुक्त किया। इसके परिणाम अब सामने आ रहे हैं। टोक्यो 2020 ओलंपिक खेलों में भारतीय प्रतिभागियों ने एक साथ सात पदक जीते जो कि कीर्तिमान है। भारत में खेल गतिविधियों के लिए इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है। चूंकि एक खिलाड़ी को चयन, प्रशिक्षण, प्रतियोगिता का महत्व पता होता है अत: उसमें किसी खिलाड़ी को पदाधिकारी होना अत्यंत आवश्यक है। ऐसी बातें आमतौर पर खेल प्रेमियों, मीडिया, आलोचकों, खेल प्रशासकों, राजनीतिज्ञों मनोवैज्ञानिक, समाजसेवियों द्वारा कही जाती हैं परंतु 1938 से 1960 की अवधि (जिसमें एक मात्र खिलाड़ी महाराजा यादविंदर सिंह अध्यक्ष रहे थे) उसको छोड़कर आम तौर पर गैर पुरुष खिलाड़ी आईओए के पदाधिकारी बनते आ रहे थे। अब यह परंपरा टूट चुकी है और भारत की महान महिला खिलाड़ी पी टी उषा आगामी चार वर्षों के लिए आईओए की निर्विरोध अध्यक्ष चुन ली गई हैं और उनके साथ अन्य खेलों के महिला/पुरुष खिलाड़ी पदाधिकारी चुने गए हैं। भारतीय खेल जगत का इसे हम स्वर्णिम अध्याय कह सकते हैं क्योंकि जैसा कि गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 2036 के ओलंपिक खेलों को गुजरात में कराने का संकल्प लिया है जिसका प्रस्ताव पी टी उषा के नेतृत्व वाले इसी आई ओ ए को आई ओ सी 2025 के पूर्व देना होगा. दूसरी तरफ नीता अंबानी अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी की सदस्या हैं। अब पीटी उषा के नेतृत्व में नई टीम से बड़ी उम्मीद है कि वह प्रतिभाओं की खोज, टीम के चयन, प्रशिक्षण आदि में निष्पक्षता बरतते हुए ऐसे एथलीट तैयार करेंगे जो खेलकूद में भारत का नाम विश्व स्तर पर स्थापित करेंगे।

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