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खेल – मनोरंजन

चिंगारी से बनी लौ को पहुंचाना है घर-घर तक

खेल मैदान के लिए देवपुरी रायपुर के नागरिकों की सराहनीय पहल

– जसवंत क्लाडियस,तरुण छत्तीसगढ़ संवाददाता
किसी देश की खेल शक्ति को किसी स्पर्धा में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्राप्त उपलब्धि के अधार पर माना जाता है। 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारतीय खिलाडिय़ों ने अब तक 75 वर्षों बाद जो उपलब्धि हासिल की है। वह निराशाजनक कही जा सकती है। इसके कई कारण हैं। स्वतंत्रता के पश्चात देश के उपर शांति व्यवस्था, खाद्यान्न व्यवस्थापन, पेयजल,स्वास्थ्य, सड़क, परिवहन, संचार, शिक्षा आदि जो समस्या मुंह फाड़ कर खड़ी थी वह खेलकूद को बढ़ावा देने से कही अधिक महत्वपूर्ण थी। इन परिस्थितियों में केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा खेलकूद के लिए बजट आबंटन पर विशेष ध्यान भी नहीं दिया जाता था। इन सबके बावजूद भारतीय खिलाडिय़ों ने अभाव के बावजूद अपनी प्रतिभा का भरपूर प्रदर्शन किया है। केंद्र व राज्य सरकारों के बाद औद्योगिक घरानों, सार्वजनिक उपक्रमों आदि द्वारा खेल से जुड़ी संस्थाओं के लिए सकारात्मक कदम उठाये हैं गये। वास्तव में हमारे देश में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरागांधी द्वारा 1982 में एशियाई खेलों के आयोजन की वजह से खेलकूद का वातावरण बदलने लगा। 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्तारुढ़ होते ही खेल गतिविधियों में क्रांतिकारी परिवर्तन आया। खेल बजट लगभग 700 करोड़ से तीन गुना 2100 करोड़ के पार हो गया। स्पोर्ट्स अथारिटी ऑफ इंडिया (सांई) और भारतीय ओलंपिक संघ की सक्रियता ने भारत में खेल संस्कृति को मजबूती प्रदान किया। भारत सरकार के खेलों इंडिया,फिट इंडिया,टारगेट ओलंपिक, पोडियम स्कीम, टेलेंट सर्च आदि अभिनव कार्यक्रमों ने खेलों की दुनिया में हमारे देश की दशा व दिशा को बदल दी है परंतु सोचनीय तथ्य यह है कि खेलों को खिलाडिय़ों को बढ़ावा देने के लिए क्या सिर्फ शासकीय प्रयास ही काफी है। इसके लिए देश की आम जनता को भी सक्रिय भूमिका निभानी होगी। इस दिशा में रायपुर नगर निगम के देवपुरी के बाबू जगजीवन राम वार्ड की आम जनता और राजनैतिक अगुवों ने जो कदम उठाया है वह अत्यंत प्रशासनीय है। इस वार्ड के जागरूक नागरिकों ने न सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि पूरे भारत की जनता को अपने निर्णय से स्पष्ट संदेश दे दिया है कि स्वार्थ या लालच की मंशा को छोड़कर खेल के माध्यम से सामाजिक बदलाव लाना अत्यंत आवश्यक है। देवपुरी कस्बे के उदारवादी जन समुदाय ने अपने ही वार्ड में खाली पड़े शासकीय भूमि (जो कि पटवारी हल्का नंबर 73, खसरा नं. 206/3 कुल रकबा 1.6190) है। उसको भू-माफिया से बचाने सरकार को खेल मैदान बनाने का प्रस्ताव दे दिया। यह निर्णय इस प्रदेश ही नहीं बल्कि भारत के खेल इतिहास का एक ऐतिहासिक निर्णय साबित होगा। वास्तव में खेलकूद के लिए आबंटित जगह में व्यावसायिक परिसर बनाने, अवैध कब्जा करने की प्रक्रिया लंबे समय से जारी है।
खेल मैदान के अभाव में नवोदित खिलाडि़ी अपनी प्रतिभा दिखाने से चूक जाते हैं। जब शुरुआत में ही खेल मैदानों के लिए आरक्षित जगह के साथ छेड़छाड़ करके उसे छोटा या समाप्त करने की पहल होती है। तो फिर खेल वातावरण अंधकारमय हो जाता है। रायपुर देवपुरी के निवासियों का निर्णय स्वागत योग्य है। इसके साथ ही उनके जनप्रतिनिधि विधायक सत्यनारायण शर्मा का आगे बढ़कर उनको साथ देना अत्यंत प्रशंसनीय है। इस दिशा में जिलाधीश रायपुर को उक्त भूमि को खेल मैदान के लिए तत्काल आबंटित कर देना चाहिए। आज हमारे देश में खेलों को खिलाडिय़ों को सम्मान देने के लिए इस प्रकार का कदम उठाना उचित है। विधायक सत्यनारायण शर्मा की दूरदर्शिता पूर्व निर्णय आगे चलकर डूमतराई, अमलीडीह, पुरैना, लालपुर, माना आदि के युवाओं के लिए अत्यंत लाभप्रद होगा। क्योंकि यहां अभी हाल ही में शासकीय महाविद्यालय खोले जाने का निर्णय लिया जा चुका है। यही खेल मैदान इस संस्थान में पढऩे वाले और अन्य शालाओं के विद्यार्थियों के लिए खिलाड़ी बनने में मील का पत्थर साबित होगा। दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ में खेल विकास प्राधिकरण का गठन किया गया है। जिसकी भूमिका खेलों को आगे बढ़ाने में प्रभावकारी दिखती नहीं है।
चार वर्ष में किसी एक आयोजन से इसका उदेश्य पूर्ण नहीं हो जाता है। आज देवपुरी की भांति पूरे प्रदेश में खेलकूद के लिए मैदान की उपलब्धता अत्यंत आवश्यक है। खेलकूद के माध्यम से छत्तीसगढ़ में कुछ कर गुजरना चाहते हैं तो प्रत्येक ग्राम पंचायत में 6 एकड़, प्रत्येक ब्लाक में 8 एकड़, प्रत्येक तहसील में 10 एकड़, प्रत्येक जिला मुख्यालय में 15 एकड़ भूमि को खेल मैदान के लिए तत्काल आरक्षित करने का निर्णय लेना होगा। जनप्रतिनिधियों और आम नागरिकों के लिए यह एक चुनौती है जिसके माध्यम से छत्तीसगढ़ में खेलकूद की फिजां बदल सकती है।

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