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छत्तीसगढ़

कलश स्थापना के साथ हुई फागुन मंडई की शुरुआत

दंतेवाड़ा । दंतेवाड़ा की ऐतिहासिक फागुन मंडई की शुरूआत आज कलश स्थापना के साथ ही हो गई । परंपरानुसार आज संध्या पहर माईजी की पहली पालकी निकाली जाएगी। बड़ा मेला 12 मार्च दिन बुधवार को भरेगा। वहीं मंडई का समापन 15 मार्च को देवी देवताओं की विदाई कार्यक्रम के साथ होगा। आज से मेला में शामिल होने विभिन्न ग्रामों से देवी देवताओं के छत्र व लाठ के पहुंचने का सिलसिला भी शुरू हो चुका है।दक्षिण बस्तर की ऐतिहासिक फागुन मंडई की बहुरंगी छठा बिखरनी आज से शुरू हो गई है। कलश स्थापना रस्म अदायगी के लिए आज सुबह माई दंतेश्वरी मंदिर में पुजारी और सेवादार मंदिर परिसर में भक्तिभाव से जूटे रहे। परंपरागत ढंग से मां दंतेश्वरी की छत्र व लाठ को आज सुबह पूजा अर्चना पश्चात 10 बजे मंदिर के पुजारी परमेश्वर नाथ जिया, सेवादार व 12 लंकवार की उपस्थित में मंदिर से निकाली गई। छत्र व छड़ी को मंदिर के प्रवेश द्वार पर 5 पुलिस के जवानों द्वारा तीन राउण्ड हर्षफायर कर सलामी दी गई। जिसके बाद माइजी की छत्र को मेंडका डोबरा स्थित मावली माता देवी स्थल पर लाया गया जहां पुन: जवानों द्वारा हर्ष फायर कर मां दंतेश्वरी देवी की छत्र व लाठ को सलामी दी गई। तदेपरांत पुजारी परमेश्वरनाथ जिया द्वारा माईजी की छत्र व छड़ी को देवी मंदिर के अंदर पहुंचाया गया जहां विधिवत पूजा अर्चना कर कलश प्रज्जवलित किया गया। कलश स्थापना के साथ ही दस दिनों तक चलने वाला दक्षिण बस्तर का प्रसिद्ध फागुन मंडई की शुरूआत आज से हो गई । परंपरागत ढंग से आज शाम आमंत्रित देवी देवताओं के साथ मां दंतेश्वरी मंदिर से बाजा मोहरी की गूंज के बीच व सेवादारों द्वारा जयघोष के साथ मांईजी की पहली डोली निकाली जाएगी। डोली मंदिर से निकलकर परिक्रमा करते हुए नगर के ऐतिहासिक दंतेश्वरी सरोवर के किनारे स्थित नारायण मंदिर पहुंचेगी जहां परंपरानुसार डोली को जवानों द्वारा हर्ष फायर कर सलामी दी जाएगी। जिसके उपरांत डोली की पूजा अर्चना होगी। तत्पश्चात डोली को पूरे विधिविधान के साथ वापस मंदिर में लाकर रखा जाएगा फागुन मंडई के आज पहले दिन ताडफलंगा धोनी रस्म की अदायगी होगी। आदिवासियों की आस्था, परंपरा और श्रद्धा से जुड़ा यह ऐतिहासिक पर्व आज से दस दिनों तक चलेगा। हर दिन शाम को डोली निकाली जाएगी और आखेट परंपरा का निवर्हन किया जाएगा। कलश स्थापना पूजा के दौरान, मंदिर के पुजारी , सेवादार, मांझी, चालकी, कतियार, तुडपा, समरथ, पटवारी नतून नाग, मंदिर समिति के कई सदस्यगण, समेत सेवादार व गांवों से आए ग्रामीण भी मौजूद थे।

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