पितृपक्ष में भी देर रात तक चलता रहा गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन
दंतेवाड़ा । हर वर्ष की भांति इस बार भी अनंत चतुदर्शी के बाद पितृपक्ष के दौरान नगर में बड़ी संख्या में गणेश की प्रतिमाओं का विसर्जन कार्यक्रम चलता रहा। धर्म शास्त्रों के मुताबिक अनंत चतुदर्शी को ही गणेश जी का विसर्जन कार्य संपादित हो जाना चाहिए क्योंकि उसके दूसरे ही दिन से श्राद्धपक्ष की शुरूआत हो जाती है और श्राद्धपक्ष में विसर्जन कार्य करना धर्म सम्मत नहीं माना गया है। मगर इसके उलट गणेशोत्सव समितियां अपनी मर्जी से जब उनकी इच्छा हो रही है विसर्जन कर रहे हैं। यह सिलसिला कई वर्षो से चल रहा है।धर्म ग्रन्थों के हिसाब से अनंत चतुदर्शी को ही गणेश जी का विसर्जन कार्य संपन्न होना चाहिए। मगर ऐसा होता नहीं दिख रहा। नगर में कई गणेशोत्सव समितियां पितृपक्ष में भी गणेश ठंडा कर रहे हैं। गणेशोत्सव समिति के लोग इसके पीछे यह तर्क देते हैं कि उनके पंडित अनंत चतुदर्शी से एक दिन पूर्व हवन पुर्णाहुति कर भगवान की प्रतिमा को उनकी जगह से खिसका देते हैं। प्रतिमा खिसका देने या फिर हिला देने के बाद किसी भी दिन विसर्जन किया जा सकता है जबकि धर्म शास्त्र अथवा ग्रन्थों में स्पष्ट वर्णित है कि अनंत चतुदर्शी के दिन ही भगवान को विसर्जित कर देना चाहिए । 17 सितंबर 2024 को अनंत चतुदर्शी के दिन ज्यादातर गणेश विसर्जित किए गए हैं। दूसरे ही दिन 18 सितंबर से पितृपक्ष की शुरूआत हो चुकी है। पूर्णिमा से अमावस्या तक कुल 15 दिनों तक श्राद्धपक्ष होता है इस दौरान घर घर में मृत आत्माओं की शांति पाठ पूजा की जाती है उन्हेंं तर्पण दिया जाता है इसलिए पितृपक्ष में भगवान की प्रतिमा का विसर्जन करना पूरी तरह से पूजा परंपरा के विपरीत एवं वर्जित माना गया है। गर्त वर्ष देश भर के साधु संतों ने पितृपक्ष के दौरान गणेशजी की प्रतिमाओं का विसर्जन किए जाने को लेकर घोर आपत्ति दर्ज कराई थी और सरकारों से आग्रह किया था कि वे अपने अपने राज्यों में सकुर्लर जारी कर सभी गणेश समितियों को अनंत चतुदर्शी में ही प्रतिमाओं का विसर्जन करने का निर्देश जारी करें। उम्मीद की जा रही थी कि इसका कुछ असर पड़ेगा मगर ऐसा होता नहीं दिख रहा। दरअसल शहरों में या फिर छोटे कस्बों, नगरों में बैठाये गये गणेशोत्सव समिति के लोग विसर्जन झांकी धुमधाम एवं गाजा बाजा, डीजे के साथ निकालना चाहते हैं ताकि उनकी मेहनत एवं 11 दिन से भगवान की सेवा में जुटे समिति के सभी युवा विसर्जन कार्यक्रम का भरपुर आनंद उठा सकें। विसर्जन झांकी डीजे, ताशा, ढोल, गाजा बाजा के साथ निकालने पर झांकी में बड़ी संख्या में युवा वर्ग जुटता है और झांकी में खासी रौनक बढ़ती है लेकिन होता यह है कि समितियों को समय पर ढोल, ताशा, बाजा वाले मिल नहीं पाते वे किसी और जगह विसर्जन कार्य में व्यस्त होते हैं जब वहां से वे अपना कार्य निपटा कर खाली हो जाते हैं तब जाकर वे दूसरे जगह विसर्जन कार्य का ठेका लेते हैं बस इसी फेर में गणेशोत्सव समितियों के लोग विसर्जन कार्य में देरी कर बैठते हैं। जब तक उन्हें डीजे, व ढोल बाजा नहीं मिलता है वे तब तक विसर्जन नहीं करते हैं। ढोल, बाजा डीजे की व्यवस्था होने उपरांत ही विसर्जन झांकी निकालते हैं तब तक देर हो चुकी होती है जिसके परिणाम स्वरूप पितृपक्ष मे विसर्जन झांकी निकालने को लोग मजबूर होते हैं।