कार्तिक पूर्णिमा पर पुण्य स्नान कर किया दीपदान
दंतेवाड़ा । कार्तिक पुर्णिमा के पावन अवसर पर माईजी की धर्मनगरी दंतेवाड़ा में आज सुबह बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने डंकनी नदी के तट पर पहुुंच आस्था की डुबकी लगाकर पुण्य स्नान कर दीपदान किया। कार्तिक स्नान व दीपदान पश्चात माई दंतेश्वरी के मंदिर पहुंच श्रद्धालुओं ने श्रद्धाभाव के साथ माता के दर्शन पूजन कर गरीबों में अन्न एवं वस्त्र का दान पुण्य किया और माईजी से सुख शांति व समृद्धि की कामना की।
कार्तिक पूर्णिमा जिसे गुरू पूर्णिमा एवं देव दीवाली के नाम से भी जाना जाता है। आज के दिन नदी, सरोवर में जाकर दीपदान, स्नान, दान, होम, यज्ञ, उपासना करना फलदायी माना गया है। कार्तिक पूर्णिमा के पुण्य अवसर पर सोमवार 27 नवंबर को ब्रम्हमूहूर्त में उठकर श्रद्धालुओं ने डंकनी नदी घाट व संगम तट पर पहुंच पवित्र स्नान कर कटहल एवं केले के पत्ते के नाव बनाकर दीपदान किया और घाट पर ही भगवान कार्तिकेय व श्री हरि विष्णु जी की पूजा की। डंकनी नदी घाट एवं संगम तट पर दीपदान एवं स्नान के लिये अल सुबह लोगों की अपार भीड़ उमड़ी थी जिसमें महिलाओं की संख्या काफी ज्यादा थी। सर्द मौसम के बावजूद बड़ी संख्या में महिला, पुरूष एवं बच्चे नदी घाट में पहुंच स्नान करते रहे। पुण्य स्नान पश्चात श्रद्धालु माई दंतेश्वरी के मंदिर पहुंचे, जहां गरीबों को रूपए, वस्त्र व अन्न दान किया। तत्पश्चात माता के दर्शन पूजन कर आर्शीवाद लिया। महिलाएं कार्तिक पुर्णिमा के अवसर पर व्रत भी रखती हैं। कार्तिक पुर्णिमा के अवसर पर आज सुबह माई दंतेश्वरी मंदिर, शनि मंदिर, शिव मंदिर व हनुमानजी के मंदिर में भी श्रद्धालुओं की भीड़ देखी गई। देवी देवताओं के दर्शन कर लोगों ने परिवार में सुख शांति व आरोग्य का आर्शीवाद मांगा। गुमरगुंडा स्थित शिव मंदिर, टेकनार शिव मंदिर, समलूर मंदिर, एवं बारसूर स्थित अनेक मंदिरों व शिवालयों में भी कार्तिक पुर्णिमा पर विशेष पूजा संपन्न हुआ जिसमें दूर दराज क्षेत्रों से भारी तादात में श्रद्धालु शामिल होने पहुंचे थे।
कार्तिक स्नान से कटते हैं सारे पाप, मिलता है पुण्य फलदायी-
ऐसी मान्यता है कि कार्तिक पुर्णिमा के दिन गंगा स्नान, दीपदान, हवन, यज्ञ दान आदि करने से सांसारिक पाप और ताप का शमन होता है साथ ही विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। आज ही के दिन सायंकाल भगवान विष्णु का मत्स्यावतार हुआ था। भगवान कार्तिकेय ने आज ही के दिन तारकासुर नामक राक्षस का वध किया था। भगवान शिव ने भी एक विशेष रथ पर सवार होकर त्रिपुरासुर नामक दैत्य का अंत किया था, इसलिए इसे त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहते हैं। इसी दिन ब्रम्हाजी का ब्रम्हसरोवर पुष्कर में अवतरण भी हुआ था। कार्तिक स्नान को शास्त्रों में काफी शुभ माना गया है। ऐसी मान्यता है कि आज के दिन सूर्योदय से पूर्व नदी, सरोवर व कुण्ड में स्नान करने से मनुष्य के पिछले सारे पाप कट जाते हैं। सिक्ख समुदाय में कार्तिक पूर्णिमा को प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है क्योंकि इस दिन सिख सम्प्रदाय के संस्थापक गुरू नानक देव का जन्म हुआ था। आज के दिन सिख अनुयायी सुबह स्नान कर गुरूद्वारों में जाकर गुरूवाणी सुनते हैं और नानक जी के बताये मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं।