छत्तीसगढ़

कुम्हाररास के वार्षिक मेले में विभिन्न ग्रामों से पहुंचे देवलाठ

दंतेवाड़ा । मंगलवार को कुम्हाररास पंचायत में वार्षिक मेला जात्रा का आयोजन किया गया। उक्त मेले में आसपास कई गांव के पुजारी, सिरहा-गुनिया अपने अपने ईष्ट देवी देवता को लेकर मेला स्थल पर स्थित लेले भैरम देव मंदिर पहुंचे जहां देव खिलाए गए तदोपरांत देवी देवताओं की विधिवत पूजा अर्चना कर उनसे मेला उत्सव प्रारंभ करने की अनुमति मांगी गई जिसके बाद उत्साह के साथ सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण मेले का आनंद उठाने दिन भर मेले में शिरकत करते रहे और अपनी जरूरत की चीजें मेले में खरीदते रहे।
गौरतलब है कि बस्तर में मेला (करसाड)उत्सव जनवरी माह से शुरू होता है जो मई के आखरी तक अंचल के किसी न किसी गांव में चलता ही रहता है। इसी क्रम में मंगलवार को कुम्हाररास का मेला भरा था। प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी मंगलवार को दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय से 6 किमी दूर दंतेवाड़ा-किरंदुल मार्ग पर स्थित ग्राम कुम्हाररास में वार्षिक मेले का आयोजन धुमधाम एवं पारंपरिक रीति रिवाजों के साथ किया गया। मेले की शुरूआत एक दिन पूर्व सोमवार को ही निऊता (रात्रि जागरण) के साथ हो गया था। अगली सुबह (मंगलवार को)गांव के प्रमुख देव डोंगर की अनुमति के बाद मेले की रस्म शुरू की गई। पेरमा शिबोराम नाग ने बताया कि सर्वप्रभम लेले भैरम मंदिर में तीन मुर्गो की बलि चढ़ाई जाती है उसके बाद लेले भैरम देव की पूजा की जाती है। उसके विशेष आमंत्रण पर पश्चात कुम्हारास रास, कामालूर, मसेनार, कुंदेली, चंदेनार, करंजेनार, मरकानार, गमावाड़ा के माटी पुजारी, सिरहा,आदि अपने अपने गांवों से देव लाठ को लेकर लेले भैरम देव के मंदिर स्थल जो मेला स्थल भी है वहां पहुंंचते हैं। जहां पुजारी व सिरहा लोगों पर देवी सवार होती है पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ झुमते नाचते देव खिलाया जाता है। देव खेलनी को देखने बड़ी संख्या में ग्रामीणजन मेले में जुटते हैं। देव खेलते वक्त सिरहा कोड़ों से अपने शरीर को चोट पहुंचाते हैं जिससे उनके शरीर से खून भी निकलता है मगर देव खेलने वाले सिरहा को दर्द जरा भी नहीं होता। ऐसी मान्यता है कि देवी की विशेष कृपा एवं उसकी शक्ति के चलते ही ऐसा संभव हो पाता है। मंदिर में देवी देवताओं की पूजा के बाद मेला भरता है जहां सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण घुम घुूमकर मेले का आनंद उठाते हैं। यह मेला एक दिन का ही होता र्है शाम 6 बजे देवी देवताओं को विधिवत विदाई दी जाती है जिसके बाद मेला संपन्न होता है। मेला समापन के दो दिनों बाद डेल कुकड़ी रस्म की अदायगी होती है। इस रस्म में कुम्हाररास के पेरमा के खेत से लेकर कुन्देली गांव तक बंदूक पकना (पत्थर)किया जाता है उसके बाद जून माह में धान बुआई का कार्य शुरू होता है।

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