मनुष्य और सृष्टि को खेल भावना से बचाना संभव
6 अप्रैल: विकास और शांति के लिए खेलकूद का अंतर्राष्ट्रीय दिवस
– जसवंत क्लाडियस,तरुण छत्तीसगढ़ संवाददाता
आज के युग में खेलों को शारीरिक रूप से चुस्त-दुरुस्त रहने का सबसे प्रभावी माध्यम माना जाता है। उछलना, कूदना, दौडऩा, फेंकना यह सबकुछ किसी न किसी खेल का अंग है। संसार में मनुष्य की दूसरों को पराजित करने की इच्छा या उनके भू-भाग पर नियंत्रण की चाहत ने उसे अपने आप एक खिलाड़ी बना दिया है। मानव सभ्यता के विकास के दौर में कई तरह के खेलकूद का जन्म जाने अनजाने में हो गया। शांति दौर में सैनिक स्वयं को परिस्थिति के अनुकूल ढालने में न जाने कितने तरह के कसरत तथा समय गुजारने के लिए खेलों को खोज निकाला। वही खेल व्यवस्थित नियम-कानून के साथ आज पूरी दुनिया में कहीं न कहीं स्पर्धा के रूप में खेला जा रहा है। प्रतियोगिता के आयोजन की शुरुआत 776 ईसा पूर्व से माना जाता है जब यूनान के ओलंपिया में पहला खेल मेला सम्पन्न हुआ। यह क्रम ईस्वी सन् 393 तक चला। फिर विवादों के कारण यह टूर्नामेंट करीब 1170 वर्षों तक चलने के बाद भले ही बंद हो गया परंतु मनुष्य को खेलकूद का महत्व समझ में आ गया। 16वीं सदी से फिर से यूरोप/एशिया में खेल हलचल बढऩे लगी। आखिरकार पियरे डी कोबार्टिन और उनके साथियों ने 1896 में आधुनिक ओलंपिक खेलों को फिर से आरंभ करने में सफलता पाई। उनका यह प्रयास बेकार नहीं गया और आज भी ग्रीष्मकालीन के साथ बाद में शीतकालीन आलंपिक स्पर्धा खेली जा रही है। अंतर्राष्ट्रीय आलंपिक संघ में 210 देशों को मान्यता दी गई है। इसके साथ ही लगभग 70-80 खेलों की अलग-अलग विश्व/अंतर्राष्ट्रीय स्तरीय की चैंपियनशिप हो रही है। इस तरह आज मानव समाज में खेलकूद की विशिष्ट भूमिका है। खिलाडिय़ों को अपने-अपने देशों का खेल राजदूत के रूप में सम्मान दिया जाता है। इधर खेलों के माध्यम से विभिन्न देशों में सांस्कृतिक, सामाजिक रीति-रिवाजों के आदान-प्रदान की महत्ता को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने सामान्य सभा अध्यादेश क्रमांक ए/आरईएस/67/296 को पारित किया जिसके अनुसार 6 अप्रैल को प्रतिवर्ष विकास तथा शांति के लिए खेलकूद को अंतर्राष्ट्रीय दिवस घोषित किया है। इसी तारतम्य में 6 अप्रैल 2014 से नियमित रूप से इस दिवस को पूरे विश्व में मनाया जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रतिनिधियों ने यह माना है कि खेल और शारीरिक क्रियाकलाप समाज के शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक समावेश,युवा वर्ग के विकास, लैंगिक समानता, शांति-निर्माण और सतत् विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है। वैसे 1894 से अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक संघ का उद्देश्य भी खेल के माध्यम से विकास व शांति को बढ़ावा देना ही है। हमारे देश में इस तरह के अंतर्राष्ट्रीय दिवस के आयोजन के संबंध में राष्ट्रीय स्तर पर नई दिल्ली सहित कुछ बड़े शहरों से जानकारी प्राप्त होती है। छत्तीसगढ़ में ऐसे आयोजन के शासकीय तौर पर या खेलों के फेडरेशन द्वारा आयोजन की जाने की जानकारी नहीं है। जबकि इस दिशा में छत्तीसगढ़ के साथ ही पूरे देशभर के जिला मुख्यालयों में विकास और शांति के महत्व को दर्शाते हुए आज के बालक-बालिकाओं, किशोरों, युवाओं के साथ इस अंतर्राष्ट्रीय दिवस को धूमधाम से मनाए जाने की आवश्यकता है। खेलकूद जीवन का आधार है अत: उसे आज सिर्फ मनोरंजन या समय निकालने तक ही सीमित नहीं किया जाना चाहिए। छत्तीसगढ़ में खेल विभाग और राज्य ओलंपिक संघ के पदाधिकारियों के लिए इस दिवस के महत्व को गंभीरता से लेते हुए भव्य एवं विशाल कार्यक्रम आयोजित करना ही श्रेयस्कर है। 2023 के लिए इस अंतर्राष्ट्रीय दिवस का विषय ‘खेलकूद के माध्यम से विकास और शांति के लिए मनुष्यों और ब्रह्मांड को जीत लेनाÓ है। आज के युग में अहंकार, प्रतिस्पर्धा, ईष्र्या की भावना ने मनुष्यों के बीच आपस में तनाव, मतभेद उत्पन्न कर दिया है जिसको खेलकूद की भावना के माध्यम से विकास व शांति के द्वारा समाप्त कर देना याने जीत लेना अत्यंत आवश्यक है। तभी संसार के मानव जाति और सृष्टि का बचाव संभव है।