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शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल हो जीवनगाथा

फुटबाल के जादूगर याने एडसन अरांतेस डो नासिमेंटों 'पेलेÓ ने ली इस सृष्टि से विदाई

– जसवंत क्लाडियस,तरुण छत्तीसगढ़ संवाददाता
1923-24 में प्रोविजनल भारतीय ओलंपिक संघ का गठन हुआ फिर खेल गतिविधियों ने जोर पकड़ा। खेलकूद स्पर्धा के नियम देश में बनने लगे। भारत में 1927 में पूर्णकालिक भारतीय ओलंपिक संघ का गठन हुआ। उसके पहले अध्यक्ष सर डोराबजी टाटा और सचिव डॉ. ए.जी. नोहरेन बने। हालांकि ब्रिटिश भारत ने 1900 के पेरिस ओलंपिक में भाग लेना शुरू किया था। तब नार्मल प्रिचर्ड ने एथलेटिक्स में दो रजत पदक जीते थे। आईओए के 1927 में गठन के पश्चात भारत में खेल परिदृश्य बदलने लगा।
हमारे देश के गांव-गांव में एथलेटिक्स, फुटबाल, हाकी, कैरम, व्हालीबाल और पारंपरिक लोक खेलों की प्रतियोगिताएं होती थी। फुटबाल और हाकी सबसे अधिक लोकप्रिय खेल हुआ करता था। 1928 में एम्सटर्डम के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों में भारतीय हाकी टीम ने स्वर्ण पदक पहली बार जीता फिर 1956 तक लगातार छ: बार जीतते चले गये। तब भारत के महान हाकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद को हाकी का जादूगर कहा जाता था। ठीक इसी दौरान दक्षिण अमेरिका महाद्वीप के देश ब्राजील में भी फुटबाल के एक सितारे का उदय हुआ। जिसके सहयोग से ब्राजील 1958, 1962, 1970 में तीन बार फुटबाल विश्वकप का विजेता बना। उनका नाम एडसन अरांतेस डो नासिमेंटो था परंतु वे ‘पेेलेÓ प्रसिद्ध नाम से कही अधिक जाने जाते थे। उन्हें भी फुटबाल का जादूगर कहा जाता था। चूंकि बचपन से ही समाचार पत्र के खेल पन्ने को पढ़ने और खेलों के संसार की नवीनतम जानकारी रखने की जिज्ञासा रही है अत: 10-12 वर्ष की उम्र में खेलों की दुनिया के दो बादशाह एक हाकी में मेजर ध्यानचंद दूसरे फुटबाल में पेले के खेल ने मेरे मन मस्तिष्क में खास जगह बना ली। एक जादूगर हाकी के मेजर ध्यानचंद ने 3 दिसम्बर 1979 को इस जगत को अलविदा कहा तो दूसरे जादूगर फुटबाल के पेले 29 दिसम्बर 2022 को संसार से विदा हो गये। साधारण परिवार के होते हुए प्रतिभा के धनी पेले ने अपने प्रदर्शन की वजह से खुद का व अपने देश ब्राजील का नाम रौशन किया। खेल मैदान में जब भी गेंद पेले के पास आती विपक्षी टीम में कोराहम मच जाता था। मिड फिल्डर, डिफेंडर और गोलकीपर के लिए वे आफत बनकर आते थे। गेंद पर उनका नियंत्रण, बचाव करने वालों को झांसा देने की उनकी कला अद्भुत थी। अपने साथी खिलाड़ियों से एक लय के साथ गेंद को पास देते हुए आक्रमण की रूपरेखा तैयार करने में वे माहिर थे। पेले के पास 90 मिनट या अधिक समय वाले मेच में जब भी गेंद आती थी उनसे गेंद छिन लेना टेडी खीर के समान थी। ऐसे महान खिलाड़ी का हमारे बीच से सदा के लिए चले जाना अत्यंत पीड़ादायक है।
उल्लेखनीय बात यह है कि वे ‘ब्लेक पर्लÓ, ‘ब्लेक डायमंडÓ, ‘किंग आफ फुटबालÓ के उप नाम से भी जाने पहचाने जाते थे। उल्लेखनीय बात यह है कि तब विज्ञापन से धन कमाने का युग नहीं था अत: जब तक वे खेलते रहे सामान्य जीवन व्यतीत किया पंरतु समय निकलने के साथ-साथ उन्होंने काफी धन कमाया। देह अवसान के समय वे करीब 07 अरब रुपए की संपत्ति छोड़ गये। फुटबाल के पिच/मैदान पर प्रतिदिन आठ-आठ घंटे अभ्यास करके जो पसीना उन्होंने बहाया वह हीरो के मुकुट के रूप में उनके सिर पर पहनाया गया। एक सफाई कर्मी के बेटे पेले ने गरीबी को करीब से देखा था और बचपन में आर्थिक तंगी के कारण दुकान में काम करके चाय जीवनयापन किया। 36 वर्ष की उम्र में उन्होंने फुटबाल से संन्यास ले लिया परंतु तब तक 1279 गोल दाग चुके थे। फीफा ने उन्हें शताब्दी (1901 से 1999) का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी चुना। टाइम्स के शताब्दी सूची में 100 महान लोगों में उनका नाम सम्मिलित हुआ। 1995 में वे ब्राजील के खेल मंत्री नियुक्त किए गए। भारत में ऐसे महान खिलाड़ी की जीवनी को विद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए इससे भारत के बच्चों, किशोरों, युवाओं में खेल के प्रति रुचि बढ़ेगी। पेले को शत-शत नमन।

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