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छत्तीसगढ़

सूर्योदय पर नदी घाट पर स्नान करने उमड़ी लोगों की भीड़

दंतेवाड़ा । मकर सक्रांति का पर्व अंचल में आज धुमधाम व श्रद्धाभाव के साथ मनाया जा रहा है। पर्व के मद्देनजर आज ब्रम्हमुहूर्त में श्रद्धालुओं ने डंकनी नद में आस्था की डुबकी लगाकर पुण्य की प्राप्ति किया। स्नान उपरांत भक्तों ने मंदिरों में पहुंच देवी देवताओं की पूजा अर्चना पूरे आस्था भाव से की। ब्राहमणों को तिल, अन्न वस्त्र का दान किया तो वहीं भक्तों ने भिक्षुओं को भी दिल खोलकर अनाज, वस्त्र, व रूपए दान किए गए। मकर सक्रांति को लेकर बाजारों में भी रौनक देखी गई। तिल व गुड से बने लडडू व पपड़ी की जमकर बिक्री रही।
सूर्य उपासना एवं दान का महापर्व मकर सक्रांति का पर्व हिंदुओं के लिए विशेष महत्व रखता है। यह पर्व सामाजिक समरसता का संदेश भी लेकर आता है। यह सूर्य की दिशा बदलने और ऋतु परिवर्तन का भी पैगाम लेकर आता है। जब सूर्य धनु से मकर राशि में प्रवेश करता है तब मकर सक्रांति का पर्व मनाया जाता है। ज्योतिषचार्यो के अनुसार इस साल मकर सक्रांति 14 जनवरी शनिवार की रात 8 बजकर 43 मिनट से शुरू होगा। मकर सक्रांति का पुण्य काल मुहूर्त 15 जनवरी को सुबह 6 बजकर 47 मिनट पर शुरू होगा और इसका समापन शाम 5 बजकर 40 मिनट पर होगा वहीं महापुण्यकाल सुबह 7 बजकर 15 मिनट से सुबह 9 बजकर 6 तिनट तक रहेगा। ज्यादातर लोग आज ही मकर सक्रांति का पर्व मना रहे हैं। प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में इसे अपने रीति रिवाज से लोगों के द्वारा मनाया जाता है। पंजाब में जहां उसे लोहडी के रूप में नए फसल आने की खुशी में मनाई जाती है वहीं उत्तर प्रदेश में इसे खीचड़ी पर्व का नाम दिया गया है। इस दिन सूर्यदेव उत्तरायण होकर विशेष फलदायक हो जाते हैं। शास्त्रों में उत्तरायण की अवधि को देवताओं का दिन बताया गया है। मकर सक्रांति के पुण्यकाल में स्नान दान, जप होम आदि को अत्यंत शुभ माना गया है। ऐसी मान्यता है कि संक्रांति के पुण्यकाल में किया गया दान दाता को सौ गुना ज्यादा प्राप्त होता है। इस कारण लोग तिल, गुड, चावल-दाल ब्राहम्णों को दान करते हैं। मकर सक्रांति के पावन अवसर पर ब्रम्ह-मुहुर्त से ही स्नान करने वाले श्रद्धालु नदी तट पर पहूंच कर स्नान कर भगवान सूर्यदेवता की आराधना की। सक्रांति के विशेष अवसर पर शक्तिपीठ माई दंतेश्वरी मंदिर में भी लोगों की काफी भीड़ लगी थी। वैसे तो यहां की यह परंपरा रही है कि किसी भी पर्व या विशेष पूजन पाठन के शुभअवसर पर नगरवासी सर्वप्रथम माता दंतेश्वरी के मंदिर पहूंच माई का आर्शीवाद प्राप्त करते हैं तत्पश्चात ही अपने दिनचर्या की शुरूआत करते हैं। त्यौहार के कारण आज सुबह से ही दंतेश्वरी मंदिर, शनि मंदिर, हनुमानजी के मंदिरों में भक्तों का तांता लगा रहा। ब्रम्हमूहूर्त स्नान पश्चात सबसे पहले तिल का स्पर्श करने की परंपरा है। मकर सक्रांति को तिल सक्रांति भी कहा जाता है क्योंकि इसमें तिल से बने पदार्थो का भी दान किया जाता है। सक्रांति के दिन तिल व गुड से बने पकवान खाए जाते हैं साथ ही दही व दुध को चूडा में शक्कर व गुड का मिश्रण कर दुध-चूड़ा खाने का विधान भी है। तिल, गुड व चीनी महंगी होने के वजह से इस वर्ष बाजरों में इसकी बिक्री काफी कम रही। अधिकांश लोग होटलों से तिल की बनी मिठाईयां लेना ज्यादा श्रेयस्कर समझे। सक्रांति के दिन रात में दाल-चावल मिलाकर खिचड़ी बनाई जाती है। और सर्वप्रथम गाय को खिचडी खिलाई जाती है उसके पश्चात सभी खिचडी का लुत्फ उठाते हैं। इसके पीछे मान्यता यह है कि चावल की तासीर ठंडी होती है और दाल की गरम। जिस तरह इस समय ऋतुओं में गरम और ठंडे का समायोजन होता है, ठीक उसी तरह का समायोजन आहार में भी किया जाता है ताकि बदलते मौसम का सेहत पर दुष्प्रभाव न पड़े।

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