https://tarunchhattisgarh.in/wp-content/uploads/2024/03/1-2.jpg
छत्तीसगढ़

अंचल में पोरा पर्व की रही धूम,बच्चों ने दौड़ाए मिट्टी के नांदिया बैल

भखारा । छत्तीसगढ़ की लोक परंपरा व आस्था का महापर्व पोला अंवरी सहित अंचल के गाँव अंवरी,भैसबोड़,जोरातराई, कुम्हारी,सेमरा,सुपेला,सिलतरा, बंगोली,बंजारी,सिंगदेही,भेड़सर, सिरवे,पुरेना,कोलियारी,नवागांव, थूहा,भखारा,भठेली,कोसमर्रा, सिहाद,भेंडरवानी,देवरी में बहुत ही धूमधाम से मनाया गया।लोक संस्कृति के इस महाउत्सव में दिन-भर हर्सोल्लास का वातावरण बना रहा। घरों में विधिवत मिट्टी के बैलों व खिलौनों को सजाकर उसकी पूरी सादगी के साथ पूजा अर्चना कर चीला रोटी व प्रसाद का भोग लगाया गया।तदुपरांत छोटे-छोटे बच्चों ने मिट्टी के नांदिया बैल की जोड़ियों को दौड़ाते हुए पर्व का उल्लास बिखेरा।इसी तरह पशुधनो की पूजा अर्चना की गई व उन्हे आस्था व भक्ति के साथ जनकल्याण की कामना की अर्जी लगाई गई।बैलों को आकर्षक ढंग से सजाकर पर्व की रौनकता में चार-चांद लगाया गया।थानेश्वर साहू अंवरी एवं दिग्विजय साहू सुपेला निवासी ने बताया की पोला मूलत: खेती-किसानी से जुड़ा त्योहार है। भाद्रपद कृष्ण अमावस्या को यह पर्व विशेषकर छत्तीसगढ़ में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। पोला त्योहार मनाने के पीछे यह कहावत है कि अगस्त माह में खेती-किसान?ी काम समाप्त होने के बाद इसी दिन अन्नमाता गर्भ धारण करती है यानी धान के पौधों में इस दिन दूध भरता है इसीलिए यह त्योहार मनाया जाता है। यह त्योहार पुरुषों,स्त्रियों एवं बच्चों के लिए अलग-अलग महत्व रखता है, इस दिन पशुधन (बैलों) को सजाकर उनकी पूजा करते हैं। स्त्रियां इस त्योहार के वक्त अपने मायके जाती हैं। छोटे बच्चे मिट्टी के बैलों की पूजा करते हैं। पिठोरी अमावस्या पर पोला पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन अपने पुत्रों की दीर्घायु के लिए चौसष्ठ योगिनी और पशुधन का पूजन किया जाता है। इस अवसर पर जहां घरों में बैलों की पूजा होती है, वहीं लोग पकवानों का लुत्फ भी उठाते हैं। इसके साथ ही इस दिन ‘बैल सजाओ प्रतियोगिता’ का आयोजन किया जाता है। पोला पर्व पर शहर से लेकर गांव तक धूम रहती है। जगह-जगह बैलों की पूजा-अर्चना होती है। गांव के किसान भाई सुबह से ही बैलों को नहला-धुलाकर सजाते हैं, फिर हर घर में उनकी विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। इसके बाद घरों में बने पकवान भी बैलों को खिलाए जाते हैं।बैल किसानों के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। किसान बैलों को देवतुल्य मानकर उसकी पूजा-अर्चना करते हैं।

Related Articles

Back to top button