सर्व आदिवासी समाज के बंद का जिले में दिखा व्यापक असर
सुकमा । गुरुवार को सर्व आदिवासी समाज के द्वारा सात सूत्री मांगों को लेकर एक दिवसीय बंद का आह्वान किया गया था एवं जिला मुख्यालय में सात सूत्री मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन किया। धरना प्रदर्शन के बाद अपनी मांगों को लेकर राज्यपाल के नाम तहसीलदार को ज्ञापन सौंपा। इस दौरान बारसे धनीराम, रामा सोड़ी, वेको हूंगा, हूँगाराम मरकाम, संजय सोड़ी, सोमा मड़कम, गणेश माड़वी, लच्छु नाग, उमेश सुंडाम, जानकी कवासी, मंजू कवासी, कुसुमलता कवासी समेत अन्य बड़ी समाज के लोग मौजूद थे।
गिरजाघर की सुरक्षा में तैनात थी पुलिस-स्थानीय प्रशासन के द्वारा इस बंद के दौरान सुरक्षा व्यवस्था की चाक-चौबंद तैयारी की गई थी जिसके चलते इस बंद के दौरान किसी प्रकार की कोई अनहोनी ना हो इसको लेकर पुलिस पूरी तरह से मुस्तैद थी, जगह-जगह पर सुरक्षा के लिए जवान तैनात किए गए थे साथ ही नारायणपुर की घटना को देखते हुए गिरजाघर की सुरक्षा में भी जवान तैनात किए गए थे।
ये है प्रमुख मांग-सर्व आदिवासी समाज बस्तर संभाग द्वारा राज्यपाल के नाम ज्ञापन के माध्यम से अनुसूचित क्षेत्र बस्तर संभाग की लत समस्याओं पर ध्यान आकर्षित कराते हुए तत्काल निराकरण करने का मांग किया गया। जिसमे से मुख्य मांग अनुसूचित क्षेत्रों में तृतीय एवं चतुर्थ वर्ग के पदों पर स्थानीय आरक्षण लागू किया जाना। सार्वजनिक हित प्रायोजित नगरनार स्टील प्लांट का निजीकरण के लिये दिसंबर 22 में इसका निजीकरण करने हेतु रूचि की अभिव्यक्ति भी आमंत्रित कर ली गई है। जिस पर तत्काल रोक लगाया जाना। बस्तर संभाग के सभी जिलों के अन्दरूनी क्षेत्रों में निवासरत आदिवासियों पर पुलिस प्रशासन द्वारा बेगुनाह लोगों को जांच के नाम पर लगातार प्रताडऩा और अन्याय किया जा रहा है। इस पर तत्काल रोक लगाया जायें। साथ ही पेसा नियम 2 के बिंदु 42.1 एवं 42.2 के अनुसार पुलिस अपनी कार्यवाही करें और ग्राम सभाओं को जानकारी देना सुनिश्चित करना। 01 जनवरी 1902 के मिसल रिकॉर्ड, खतियान रिकॉर्ड के आधार पर
छत्तीसगढ़ राज्य की स्थाई बोनिसाइल नीति को कानूनी रूप देते हुए छत्तीसगढ़ विधानसभा में अधिनियम के रूप में पारित किया जाना। एनएनडीसी में स्थानीय रोस्टर के आधार पर मुलनिवासियों को भर्ती में प्राथमिकता के साथ नियुक्ति किया जाए। पेसा नियम 2022 में तत्काल आवश्यक संशोधन मूल पेसा एक्ट 1990 के प्रावधान अनुसार अगस्त 2023 के पहले संशोधन किया जाना।और सामुदायिक वन संशाधन का अधिकार के दावों परप्राथमिकता के साथ एक्ट में जो प्रावधान है के अनुसार प्रत्येक ग्रामसभा को सामुदायिक वन संशाधन का हक मान्यता पत्रक जारी किया जाना जैसे उपरोक्त सात सूत्रीय मांगों सरकार के समक्ष रखा गया हैं। अपने मांग को लेकर आदिवासी समाज ने मांगों पर तत्काल कार्यवाही करते हुए राज्य सरकार निराकरण करेने का मांग किया गया निराकरण नहीं करने की स्थिति मे स्थानीय विधायक सांसदों व जनप्रतिनिधियों का विरोध दर्ज करते हुए आंदोलन को चरणबद्ध रूप से उग्र किया जाने को लेकर अपना रुख स्पष्ट कर दिया गया हैं। जिसका जिम्मेदार राज्य सरकार को ठहराया गया हैं।