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छत्तीसगढ़

बैलों की पूजा कर किसानों ने मनाया पोरा तिहार

दंतेवाड़ा । छत्तीसगढ़ का पारंपरिक पोला (पोरा)तिहार आज दक्षिण बस्तर जिले के ग्रामीण अंचलों में पारंपरिक रूप से मनाया जा रहा है। किसान अपने बैलों का साज श्रृंगार कर नंदी की पूजा अर्चना कर रहे हैं। पर्व के मद्देनजर आज मिटटी से बने बैलों की खूब बिक्री हुई। वहीं दूसरी ओर महिलाओं का तीज के लिए मायके आने का सिलसिला भी शुरू हो गया है। पोला के तीन दिन बाद तीजा मनाया जाता है।
पोला जिसे स्थानीय बोली भाषा में पोरा ठिठोरा भी कहा जाता है छत्तीसगढ़ का महत्वपूर्ण त्यौहार है। हरेली आमूस पर्व के एक माह के बाद खरीफ फसल के द्वितीय चरण का कार्य (निंदाई कोड़ाई) पूरा होने तथा फसलों के बढ़ने की खुशी में किसानों द्वारा बैलों की पूजा कर कृतज्ञता दर्शाते हुए यह त्यौहार मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि आज के दिन अन्न माता गर्भधारण करती हैं अर्थात धान की बालियों में दुध भरता है इसी कारण आज के दिन किसानों को खेत में जाने की अनुमति नहीं होती। पर्व के एक दिन पूर्व रविवार शाम माईजी की मंदिर में परंपरानुसार कुम्हारों की ओर से बनाकर दिए गए मिट्टी की हांडी में नए धान रखकर पूजा अर्चना कर माता को पारंपरिक व्यंजनों का भोग लगाया गया। जिसके बाद पूरे बस्तर अंचल में नवाखानी पर्व गांव गांव में मनाया जाएगा। पोला तिहार के दिन किसान अपने बैलों को नहलाकर सुंदर ढंग से सजा संवारकर उनकी पूजा करते हैं। पूर्व काल में इस दिन बैलों की दौड़ भी आयोजित किए जाने की परंपरा थी। इस पर्व में भगवान शंकर की नंदी अर्थात बैल की पूजा का विशेष महत्व है। त्यौहार के चलते आज सुबह से बाजारों में चहल पहल है। पोला के मददेनजर आज बाजारों में मिट्टी के आकर्षक नांदिया बैला, कुंडी-बुची समेत तरह तरह के मिट्टी के खिलौने बनाकर बिक्री के लिए कुम्हारों द्वारा लाया गया है। पोला पर्व में भी महंगाई की मार देखी जा रही है। पहले जहां 30 से 50 रूपए में नांदिया बैल मिल जाया करते थे वही आज बाजार में बैल 100 रूपए में बेचे जा रहे हैं। महंगी होने के बावजूद भी बच्चों ने खूब नांदिया बैला खरीदा। मिटटी से बने बैल जिसमें चक्के लगे होते हैं रस्सी से बांधकर खींचते हैं और लड़कियां पोरा जाता खेलती हैं और जांता पिसती हैं। पोला पर्व के दिन अंचल में घर घर में ढेढरी, खुरमी, गुलगुला बड़ा भजिया बनाया जाता है। पोला की रात गांव की गुडी में बैगाओं द्वारा पूरा करने की परंपरा है। जिस प्रकार पुत्री के गर्भवती होने पर सठौरी खिलाई जाती है उसी प्रकार फसल माता के गर्भ परिपूर्ण होने पर उसे विशेष व्यंजनों का भोग लगाया जाता है।
तीज का बाजार सजा, बाजारों
में बढ़ी चहल पहल
पोला पर्व के तीन दिनों बाद ही पति की दीर्घायु और सुख समृद्धि के लिए पहचाना जाने वाला महिलाओं का प्रमुख पर्व हरितालिका तीज मनाया जाएगा। जिसके मददेनजर बाजारों में चहल पहन काफी बढ़ गई है। त्यौहार के पूर्व बाजारों में श्रृंगार की सामग्री खरीदने महिलाओं की खासी भीड़ जूट रही है। श्रृंगार वस्तुओं के साथ ही साड़ियों व ज्वेलरी की खरीददारी में सुहागिनें व्यस्त दिखी। तीज पर्व पर श्रृंगार सामग्री का खास महत्व है। नगर के अधिकांश फैंसी स्टोर्स में श्रृंगार सामग्रियों की अच्छी खासी बिक्री हो रही है। पर्व के दो दिन पूर्व ही बाजारों में रौनक काफी बढ़ चुकी थी। चुड़ी, कंगन, सिंदूर, मेहंदी, नेलपालिश, की बिक्री के साथ ही साडियों व ज्वेलरी दुकानों में भी अच्छी खासी भीड़ देखी गई। त्यौहारी सीजन होने के चलते फल मार्केट में भी तेजी देखी जा रही है। फल फ्रूट के दामों में भी खासा इजाफा देखा गया है।

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