छत्तीसगढ़

नगर की महिलाओं ने होली पर्व की परंपराओं को बदस्तूर निभाया

खरसिया। होली पूजन पर नगर की महिलाओं और बच्चों द्वारा नगर के टाउनहॉल में होली पूजन कर परम्परा को निभाया गया होलिका दहन के दिन लकडिय़ों के ढेर के साथ ही गोबर के उपले या कंडे जलाने की भी प्रथा है। हमारे शास्त्रों में या हमारी परंपराओं में हर चीज बड़ी ही सोच-समझकर बनायी गयी है इन सबसे हमें कहीं-न-कहीं फायदा जरूर होता है इसी तरह से आज के दिन गोबर के उपलों को जलाने के पीछे भी हमारी ही भलाई छिपी हुई है। इसके साथ ही होलिका दहन के दिन से होलाष्टक समाप्त हो जाएगे, जिसके चलते विवाह आदि सभी शुभ कार्य अब फिर से शुरू हो जायेंगे।
विदित हो कि प्रत्येक वर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन किया जाता है। इस बार फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि 7 मार्च को पड़ रही है। 6 मार्च की रात्रि 1 बजे अर्थात 7 मार्च को होली का दहन के अगले दिन आज 8 मार्च को धुलेंडी मनाई जाएगी। कुछ लोग अपने घरों में होलिका दहन करके पूजा अर्चना करते हैं तो वहीं कुछ स्थानों पर सामूहिक रूप से होलिका दहन किया जाता है। इस दिन लोग होलिका के चारों और फेरे लेते हुए पूजा अर्चना करते हैं। मान्यता है कि होलिका की अग्नि में सभी तरह की नकारात्मक शक्तियां भस्म हो जाती हैं। होलिका की अग्नि में मुख्य रूप से लोग परिक्रमा करते हुए गेंहू की बालियां अर्पित करते हैं। इसके साथ ही होली की अग्नि में तिल, उपले और गोबर की बनी हुई गुलरिया (छोटे-छोटे गोबर के गोले जिनमें बीच में सुराख किया जाता है) की माला अर्पित कर जीवन की समस्याओं से मुक्ति के लिए प्रार्थना करते है।

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