तेज रफ्तार ने रोलबॉल में पैदा किया रोमांच
37वां राष्ट्रीय खेल गोवा 2023, 43 खेलों के लिए मुकाबले जारी
– जसवंत क्लाडियस,तरुण छत्तीसगढ़ संवाददाता
इस सदी में राष्ट्रीय खेलों के आयोजन की अवधि काफी कम ज्यादा रही है। 1924 में जब से राष्ट्रीय खेलों को आयोजित करने की परम्परा आरंभ हुई तब से इसे प्रति दो वर्ष में सम्पन्न कराया जाता था। 1924 से 1938 तक यह इंडियन ओलंपिक गेम्स फिर 1940 से 1946 तक नेशनल गेम्स के नाम से जाना जाता था। भारत को 15 अगस्त 1947 को मिली स्वतंत्रता के पश्चात 1948 से 1979 तक इसे स्वतंत्रता के बाद का राष्ट्रीय खेल फिर 1985 से ओलंपिक खेलों के प्रारूप में आयोजित राष्ट्रीय खेलों का नाम दिया गया। 1970 से यह स्पर्धा प्रत्येक दो वर्ष में ना होकर अनियमित हो गया। 21वीं सदी में 2001, 2002, 2007, 2011, 2015, 2022 के बाद अब 2023 में गोवा में सम्पन्न हो रहा हे। समय के अनुसार राष्ट्रीय स्पर्धा में खेलों की संख्या बदलती रही है। 2023 में 43 खेलों की स्पर्धा हो रही है जिसमें 10000 से अधिक खिलाड़ी भाग ले रहे हैं। इस बार स्काय, बीच फुटबाल, रोलबाल, कलारीपयट्टु, पेनकाक, सिलाट और मिनी गोल्फ जैसे खेलों को शामिल किया गया है। इनमें से रोलबाल सबसे तेजी से उभरता हुआ खेल है। रोलबाल की उत्पत्ति भारत में ही हुई जब पुणे के राजू दमाड़े ने रोलबाल का अविष्कार किया और खेल के नियम आदि तैयार किए 2003 से 2005 तक रोलबाल को लोकप्रिय बनाने के प्रयास शुरू हुए आज स्थिति यह है कि यह खेल आज विश्व के विभिन्न महाद्वीपों के 62 देशोंमें अधिकृत रूप से खेला जा रहा है। भारत में जन्म लिए खेल को जिस तेजी से संसार के कई देशों के द्वारा अपनाया जा रहा है वह किसी चमत्कार से कम नहीं। आज के युवा रफ्तार को पसंद करते हैं। रोलबाल के खिलाड़ी पैरों में रोलर स्केट पहनकर मैदान में गेंद को विपक्षी पाले में डालने के लिए तेजी से भागते हैं जिससे रोलबाल मैच के दौरान काफी तेज खेल हो जाता है। पलक झपकते ही गेंद कभी इस पाले में कभी उस पाले में चली जाती है। इस खेल में हर खिलाड़ी का चुस्त-दुरुस्त रहना, चौकन्ना रहना सबसे महत्वपूर्ण है। त्वरित निर्णय लेने से विपक्षी पर दबाव बनता है। 50 या 40 मिनट के रोलबाल के एक मुकाबले में गोलकीपर को छोड़कर बाकी प्रत्येक खिलाड़ी मैच समाप्ति तक कई किलोमीटर की दूरी तय कर लेते हैं। इस खेल को रोचक बनाने के लिए इसके जनक राजू दमाड़े नियमों में परिवर्तन करने से पीछे नहीं हटते हैं। मैच के दौरान दोनों टीम के 6-6 खिलाडिय़ों की भागमभाग/आपाधापी में कई बार देखने में आया कि मैच के निर्णायक उतनी तेजी के साथ दौड़ नहीं सकते हैं अत: अब निर्णायकों को भी रोलर स्केट पहनकर मैदान में आना पड़ता है और निर्णय से पहले खिलाडिय़ों के साथ-साथ दौडऩा पड़ता है। रोलबाल धीरे-धीरे आधुनिक युवाओं की पसंद बनता जा रहा है। भारत का ही खेल होने, कम समय में परिणाम देने वाला मुकाबला होने की वजह से अब जरूरी है कि इस खेल को मीडिया द्वारा भारत में अधिक से अधिक प्रचार प्रसार मिल सके। युवा स्वस्थ रहेंगे तो समाज भी शक्तिशाली बनेगा। रोलबाल अब बड़े शहरों से कस्बों की पसंद बनते जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के युवा भारत के सपनों को साकार करने के लिए केंद्र सरकार का खेल विभाग, भारतीय ओलंपिक संघ और भारतीय खेल प्राधिकरण रोलबाल को लगातार बढ़ावा दे रहा है जिसका परिणाम है कि 37वें राष्ट्रीय खेलों में पहली बार रोलबाल को सम्मिलित किया गया है। इसको गांव-गांव तक पहुंचाने के लिए सभी देशवासियों के सहभागिता की आवश्यकता है।