खेल – मनोरंजन

युवा पीढ़ी के लिए खतरनाक है इसका सेवन

प्रतिबंधित दवा : भारत की धाविका दुतीचंद,धनलक्ष्मी और भारत्तोलक संजीता चानू फंसी जाल में

– जसवंत क्लाडियस,तरुण छत्तीसगढ़ संवाददाता
प्रतियोगिताओं में अपनी काबिलियत के दम पर पदक जीतना और प्रतिबंधित दवा खाकर सफलता प्राप्त करना दो अलग-अलग बातें हैं। ऐसी दवाओं का सेवन करना जिससे अधिक शारीरिक शक्ति प्राप्त होती है और किसी स्पर्धा में भाग लेेने वाले खिलाड़ी के लिए निर्धारित दिशा-निर्देश के विपरीत है। खेल व खिलाड़ी के लिए सर्वथा अनुचित है। फिर भी एथलीट यह गलती करने से नहीं चूकते हैं। अभी हाल में भारत की स्थापित महिला एथलीट दुतीचंद और उभरती हुई धाविका 24 वर्षीय धनलक्ष्मी के सैंपल में प्रतिबंधित दवा पाई गई। इसके साथ ही राष्ट्रमण्डल खेलों की स्वर्ण पदक विजेता संजीता चानू को एक बार फिर ड्रोस्टानोलोन के सेवन (जो कि प्रतिबंधित दवा एनाबोलिक स्टेराइड के अंतर्गत आता है) के लिए किसी चैंपियनशिप में सम्मिलित होने से रोक दिया गया है। संजीता चानू के साथ यह दोाबारा हो रहा है इसके पूर्व 2017 में उन पर ऐसी दवा के सेवन का आरोप लगा और प्रतिबंध भी लेकिन बाद में उन्हें क्लीन चिट मिल गई थी। संजीता चानू भारत की महान भारोत्तोलकों में से एक है। उन्होंने 2014, 2018 के राष्ट्रमण्डल खेलों में स्वर्ण, 2011 में कांस्य तथा 2012, 2015, 2017 के राष्ट्रमण्डल चैंपियनशिप में तीन स्वर्ण पदक जीते हैं। इस प्रकार भारत के खिलाड़ियों में प्रतिबंधित दवा लेने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। यह एक गलत परंपरा है खेल के साथ-साथ देश से भी गद्दारी है। पूरी दुनिया में इस तरह की प्रवृत्ति के बढ़ने को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी जिसे डब्ल्यूएडीए याने वाडा और भारत में राष्ट्रीय स्तर की नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी जिसे एनएडीए अर्थात् नाडा का गठन किया गया है। वर्तमान युग में खेलकूद के प्रति मनुष्य का लगाव बढ़ा है। जिससे प्रतिस्पर्धा काफी निकट की संघर्षपूर्ण हो गई है। प्रत्येक खिलाड़ी विजेता बनना चाहता है परंतु यह संभव नहीं है। अत: खिलाड़ी चोरी छिपे प्रतिबंधित दवा का सेवन कर लेते हैं। अनेक टूर्नामेंट में जब अंतिम परिणाम अपेक्षाकृत नहीं रहे तो प्रतिभागियों, उनके प्रशिक्षकों आदि के द्वारा प्रदर्शन पर शंका जाहिर की गई आखिर वाडा तथा नाडा का गठन हुआ। प्रतिबंधित दवा के सेवन पर तात्कालिक सफलता तो मिल जाती है लेकिन उसके उपरांत बदनामी तथा प्रतिबंध को झेलना बड़ी शर्मनाक स्थिति बन पड़ती है। अभी तीन माह के अंदर पकड़े गये दुतीचंद, धनलक्ष्मी, संजीता चानू यह भूल जाती है कि भारत देश ने उन्हें सब कुछ दिया बदले में उन्होंने मातृभूमि को नीचा दिखाने का काम किया। एथलीट स्वयं गलती करके यह भूल जाते हैं कि उनके घिनौने कृत्य की वजह से पूरे संसार में भारत की बदनामी हुई। प्रतिबंधित दवा सेवन को रोकने के लिए भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) को अधिक कड़ाई अपनानी होगी। भारत में उपलब्ध जांच उपकरण अत्याधुनिक होने चाहिए। ऐसी घटनाओं के लिए प्रशिक्षक के साथ ही साथ प्रशिक्षण केंद्र के आहार विशेषज्ञ और सपोर्ट स्टाफ को भी दंडित किया जाना चाहिए। सरकार द्वारा दिये जाने वाले सुविधा और नकद राशि को सब कुछ जांच हो जाने के बाद प्रदान किए जाने का प्रावधान आवश्यक है। साथ ही साथ ऐसे खेल फेडरेशन पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। प्रश्त तो यह उठता है कि आज की परिस्थिति में कोई एथलीट प्रतिबंधित दवा का सेवन न करे इसके लिए गंभीरतापूर्वक ध्यान दिया जाता है फिर भी ऐसी घटना हो ही जाती है। शोध की आवश्यकता है कि आखिर कौन खेल के, देश के दुश्मन हैं।

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