https://tarunchhattisgarh.in/wp-content/uploads/2024/03/1-2.jpg
खेल – मनोरंजन

भारतीय खिलाडिय़ों के सामने है बड़ी चुनौती

एशियाई खेल 2023, अब पहलवानों की प्रतिष्ठा दांव पर

– जसवंत क्लाडियस,तरुण छत्तीसगढ़ संवाददाता
भारत के खेल इतिहास में जनवरी से जून 2023 तक का समय किसी राष्ट्रीय खेल संघ के अध्यक्ष और खिलाडिय़ों के बीच विवाद को लेकर एक शर्मनाक काला अध्याय माना जाएगा। भारतीय कुश्ती संघ के अथक प्रयास से भारत के पहलवानों ने स्वतंत्रता के बाद से भारत का नाम अंतर्राष्ट्रीय मंच पर सदैव रौशन किया है। इसका नतीजा यह रहा कि भारत के पहलवान केडी जाधव ने ओलंपिक 1952 में कांस्य, सुशील कुमार ने ओलंपिक 2008 में कांस्य 2012 में रजत, योगेश्वर दत्त ने 2012 ओलंपिक खेलों में कांस्य पदक, 2016 के ओलंपिक खेलों में पहली महिला पहलवान साक्षी मलिक ने कांस्य पदक जीता था। इसके अलावा 2020 टोक्यो ओलंपिक में रवि कुमार दहिया ने रजत तथा बजरंग पूनिया ने कांस्य पदक पर कब्जा जमाया। इस प्रकार ग्रीष्मकालीन आधुनिक ओलंपिक खेलों में भारत के पहलवानों ने शानदार प्रदर्शन किया। इसी तरह भारतीय पहलवानों का गौरवशाली इतिहास एशियाई खेलों में भी रचा है। 1954 से लेकर 2018 तक एशियाई खेलों में हमारे जांबाज पहलवानों ने विपक्षियों को पटकनी देते हुए फ्री स्टाईल व ग्रीको रोमन वर्ग में 8 स्वर्ण, 12 रजत, 23 कांस्य पदक जीते हैं जबकि महिलाओं ने फ्री स्टाईल वर्ग में 1 स्वर्ण, एक रजत और दो कांस्य पदक जीते हैं।
भारत के महान पहलवानों में चंदगीराम, सतपाल महाराज, करतार सिंह, योगेश्वर दत्त, सुशील कुमार, बजरंग पूनिया प्रमुख हैं जबकि महिला वर्ग में फ्री स्टाईल इवेंट में विनेश फोगट, साक्षी मलिक सबसे प्रसिद्ध पहलवान है। इस तरह भारतीय पहलवानों ने विश्व खेल मंच पर अपनी छाप छोड़ी है। एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप हो या बहुखेल वाली एशियाड टूर्नामेंट दोनों में भारत के लिए कुछ देश बड़ी चुनौती बनकर आते हैं जिनमें चीन, दक्षिण कोरिया, जापान, कजाकिस्तान, मंगोलिया आदि प्रमुख हैं। इन देशों में कुश्ती का खेल सदियों पहले से खेला जा रहा है जहां पर अत्याधुनिक प्रशिक्षण की सुविधा उपलब्ध है। अत: अब जबकि सिर्फ दो माह के करीब एशियाड खेल होने वाले हैं तब हार-जीत की तुलना नहीं करके अपनी-अपनी तैयारी में ध्यान लगाना चाहिए। दुर्भाग्य की बात है कि 6 माह में जो कुछ भी भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष और महिला पहलवानों के बीच विवाद खड़ा हुआ है हम उम्मीद करते हैं कि उसका असर एशियाड में पहलवानों के प्रदर्शन पर नहीं पड़ेगा। भारत के पहलवानों ने 2018 के एशियाड खेलों के पश्चात टोक्यो ओलंपिक खेलों में योग्यता हासिल करने के लिए जोर आजमाईश की थी और अब 2023 के एशियाड के लिए भी तैयारी में जुटे हैं। इसके लिए भारत सरकार, केंद्र का खेल विभाग तथा भारतीय खेल प्राधिकरण द्वारा बिना किसी विलंब, व्यवधान के पहलवानों के प्रशिक्षण, भोजन, परिवहन अन्य विदेशी प्रतियोगिता में भाग के लिए बड़ी राशि, प्रशिक्षण आदि उपलब्ध कराये गये हैं। हालांकि अभी भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष और तथाकथित पीडि़त प्रताडि़त महिला पहलवानों के बीच आपसी समझ नहीं बन पाई है। सच्चे भारतीय और खेल प्रेमी होने के नाते हमारे देश के कई लोग यही प्रार्थना कर रहे हैं कि हमारे पहलवानों ने पिछले चार वर्षों में जो मेहनत की है उसका सुखद परिणाम एशियाड में निकलकर आ सके। खेल संघ व पहलवानों के इस आपसी प्रतिष्ठा के प्रश्न का असर अन्य दूसरे खेल के प्रतिभागियों पर न पड़े तो बेहतर होगा। इस सत्य के इंकार नहीं किया जा सकता कि 2014 के बाद जो माहौल खेलकूद का हमारे देश के गांव-गांव तक बना है उसके सकारात्मक परिणाम आने का समय हो चुका है।

Related Articles

Back to top button