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खेल – मनोरंजन

कौन कर रहा है खेल वातावरण को दूषित?

छत्तीसगढ़ में खिलाडिय़ों ने अपने हक के लिए लगाई गुहार

– जसवंत क्लाडियस,तरुण छत्तीसगढ़ संवाददाता
हमारे लोकतांत्रिक देश की खूबी है कि अपने अधिकारों के लिए अपनी बात आप खुलकर कह सकते हैं। केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारियों-अधिकारियों से लेकर सामान्य नागरिक, मजदूर, महिला, विभिन्न जातियों के लोगों को अपनी-अपनी मांग सरकार या संबंधित पक्ष के पास रखने का अधिकार भारत के संविधान में दिया गया है। वस्तुत: उपेक्षा के शिकार होने या फिर पीडि़त, प्रताडि़त होने पर आपसी एकता बनती है जिसकी वजह से कोई आंदोलन आकार लेता है। सबसे उल्लेखनीय तथ्य यह है कि समाज का कोई न कोई पक्ष शासक की रीति-नीति से प्रसन्न नहीं होता। अन्याय को कभी दबाया नहीं जा सकता और नियोक्ता अगर एक गलती को बार-बार करता है तो असंतोष सड़क पर उतर आता है। छत्तीसगढ़ सरकार के द्वारा भी खिलाडिय़ों के साथ निरंतर किए जा रहे पक्षपात, अन्याय की वजह से युवा खिलाडिय़ों को हड़ताल की राह पर चलना पड़ रहा है। बताया जा रहा है कि 2019 के बाद से राज्य सरकार के खेल विभाग द्वारा न तो खेल पुरस्कार अलंकरण समारोह का आयोजन किया गया। न ही उत्कृष्ट खिलाडिय़ों की घोषणा की जा रही है। इस तरह की जानकारी पिछले दिनों सड़क में उतरकर प्रदेश के खेल मैदान में पहुंच गया है। अगर ऐसा हुआ है तो फिर कोई न कोई तो दोषी होगा? सबसे उल्लेखनीय तथ्य यह है कि दिसम्बर 2018 के राज्य में सत्ता परिवर्तन के पश्चात पिछले चार वर्षों से न तो खेल मंत्री और न ही खेल संचालक बदले हैं। फिर इस तरह की लापरवाही क्यों हो रही है? क्या जानबूझकर खिलाडिय़ों के हौसले को पस्त किया जा रहा है या फिर खेल माफिया छत्तीसगढ़ की खेल प्रतिभाओं का काम तमाम करना चाहती है? यह प्रश्न इसलिए उभरकर आया है कि बड़ी संख्या में पदाधिकारी प्रतिभाशाली खिलाडिय़ों ने खेल विभाग के सामने अपने दर्द का बयां किया है। अनुशासन में रहने वाले खिलाड़ी अगर इस तरह का कदम उठाते हैं तो फिर आंच मुख्यमंत्री कार्यालय के कामकाज की ओर भी जाती है। एक तरफ खिलाडिय़ों से छत्तीसगढ़ के लिए पदक की उम्मीद दूसरी तरफ उनके हित का अनदेखा करना अत्यंत दुर्भाग्यजनक है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री प्रदेश ओलंपिक संघ के अध्यक्ष हैं वे अपनी तरफ से इस राज्य में खेल व खिलाडिय़ों को प्रोत्साहन के लिए प्रयासरत हैं। विभिन्न खेल अकादमी का गठन, नये आधुनिक सर्वसुविधायुक्त खेल परिसरों का निर्माण और मलखंब जैसे खेल के विजेताओं को सबसे ज्यादा नकद राशि का वितरण मुख्यमंत्री की उपलब्धि है। इन सबके बावजूद जब खिलाडिय़ों को आंदोलन जैसा अप्रत्याशित निर्णय लेना पड़े तो स्पष्ट है कि इसके लिए खेल विभाग के माननीय मंत्री से लेकर मंत्रालय स्तर के अधिकारियों के साथ ही खेल विभाग के अधिकारियों की निष्क्रियता से इंकार नहीं किया जा सकता। स्पष्ट है कि छत्तीसगढ़ में खेल संस्कृति को मजबूत करना है तो लंबे समय से एक ही पद पर जमे हुए खेल प्रशासकों, अधिकारियों को तुरंत हटाया जाना चाहिए। केंद्र सरकार की खेलो इंडिया नीति की वजह से हमारे प्रदेश में खेल गतिविधियों की रफ्तार बढ़ी है। राज्य-केंद्र सरकार की योजनाओं को लागू करने में स्पष्ट कमी नजर आ रही है। खिलाडिय़ों में असंतोष होना स्वाभाविक है क्योंकि उन्हें भविष्य की चिंता है। एक खिलाड़ी का खेल जीवन 10 से 15 वर्षों से अधिक नहीं होता। इसी अवधि में उनके प्रदर्शन के आधार पर जीवनयापन की सुविधा सरकार या अन्य संस्था से मिल जाता है तो फिर उनके लिए खिलाड़ी बनना सार्थक हो जाता है। कुछ खेल को छोड़ दे तो खिलाडिय़ों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होती है। माता-पिता, अभिभावक, खेल प्रेमी, समर्थक उनको पदक प्राप्त होते तक बड़ी धनराशि खर्च करते हैं ताकि उनका भविष्य सुरक्षित हो जाए। छत्तीसगढ़ खेल विभाग की कार्यशैली उभरते हुए खिलाडिय़ों, अभिभावकों के लिए निराशा का माहौल बना रहा है। इसके लिए खेल प्रेमी राजनेताओं, खेल स्पर्धा आयोजकों, खेलप्रेमियों, प्रशिक्षकों, पूर्व खिलाडिय़ों को भी छत्तीसगढ़ सरकार के सामने इन आंदोलनरत युवाओं के पक्ष में आना होगा तभी हमारे राज्य में खेलकूद को लोकप्रियता मिल सकेगी।

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