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छत्तीसगढ़

दुनिया की अनोखी प्रतिमा है भगवान राजीवलोचन की

राजिम । साक्षात भगवान विष्णु का स्वरूप राजीवलोचन मंदिर में श्रद्धालुगण दिन प्रतिदिन चमत्कार से रूबरू होते रहते है। जानकारी के मुताबिक पुरी दुनिया में ऐसी प्रतिमा नहीं मिलती जो राजिम शहर के प्राचीन मंदिर में स्थापित है। त्रिवेणी संगम तट पर राजीवलोचन मंदिर दो भागों में विभक्त है। पहले परिसर का प्रवेश द्वार पूर्व दिशा की ओर है। द्वार पर दो गज सूड उठाकर स्वागतारत है। ललाट पर सिंह बैठे हुए है। आयताकार क्षेत्र के मध्य भगवान राजीवलोचन का विशाल मंदिर 7वी, 8वीं शताब्दी में बनाया गया है। राजा जगपाल देव ने विष्णु आज्ञा से विशाल मंदिर का निर्माण छने हुए कारीगर से करवाया और चतुर्भुजी श्यामवर्णी प्रतिमा स्थापित की। मंदिर के उत्तर, दक्षिण दिशा में आगमन एवं निर्गमन द्वार है। महामंडप खम्भों पर टिका हुआ है। प्रत्येक स्तंभ पर देवी-देवताओं की प्रतिमा प्रस्थापित है। द्वार पर ही गरूड़ देव दोनों हाथ जोड़कर बैठे हुए है। महामंडप में दो शीलालेख उत्कीर्ण है जिससे छश्रसगढ़ की इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है। मंदिर में परिक्रमा पथ है।
दिन में तीन बार बदलता भवगान राजीव लोचन का स्वरूप
गर्भगृह में भगवान विष्णु का स्वरूप राजीवलोचन विराजमान है। बतातें है कि इनका स्वरूप दिन में तीन बार बदलता है। सुबह बाल्यावस्था, दोपहर युवा तथा रात्रिकाल में प्रौढ़ा अवस्था को प्राप्त करते है। कुछ महिने पहले प्राईवेट टीवी चैनल ने रूककर चमत्कार पर सर्वे किया। उन्होने पाया कि राजीवलोचन भगवान भोजन ग्रहण करने के लिए उपस्थित होते है। पात्र मेंं परोसा गया भोजन को रखकर गर्भगृह का द्वार बंद कर दिया। कुछ देर बाद खोला तो अन्न के दाने बिखरे हुए थे। इसी तरह रात्रिकाल में शयन करने से पहले भगवान को तेल लगाने की परम्परा है। उनके लिए खाट बिछाया गया, बिस्तर भी लगा। द्वार बंद कर दिया गया। सुबह पट खुला तब बिस्तर बिखरा हुआ मिला तथा कपड़े पर तेल देखा गया। ।
शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण
विष्णु सहस्त्रनाम में एक नाम राजीवलोचन अंकित है। भगवान राजीवलोचन अपने चारों हाथ में शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए हुए है पर्व-त्योहार तथा महत्वपूर्ण तिथियों में भगवान का विशेष रूप से श्रृंगार किया जाता है। बारह महीने में 24 रूप अलग-अलग रूप का जिक्र होता है।
राजिम में अनेक विष्णु मंदिर
राजिम में भगवान राजीवलोचन मंदिर के अलावा अनेक विष्णु मंदिर है जिनमें प्रमुख रूप से आयताकार वर्ग क्षेत्र के चारों कोण में चारोधाम स्थित है। जिनमें वराह अवतार, वामन अवतार, बद्रीनारायण अवतार, नृसिंह अवतार हैं। मंदिर के नीचे मे शाक्षी गोपाल मौजूद है। भगवान का विराट स्वरूप दीवाल पर अंकित है। द्वितीय परिसर में सूर्यनाराण भगवान, चतुर्भुजी भगवान विष्णु के लगभग 5 फिट ऊंची प्रतिमा, मंदिर समूह से बाहर सौ साल प्राचीन लक्ष्मीनारायण मंदिर 6वीं-7वीं शताब्दी में स्थापित रामचन्द्र देवल, छोटे राजीवलोचन मंदिर, गरियाबंद मार्ग में दत्तात्रेय मंदिर इत्यादि है।
राजीवलोचन के साथ जुड़ी राजिम भक्तिन तेलिन माता की कथा
प्रचलित कथा के अनुसार राजिम भक्तिन तेलिन माता अत्यंत सरल एवं सहज स्वभाव की थी। तेल बेचकर वह परिवार का पालन-पोषण करती थी। एक दिन तेल बेचने के लिए नदी से होकर दूसरे किनारे जा रही थी। अचानक एक पत्थर से ठोकर खाकर गिर गई। इससे पात्र में रखा सारा तेल बिखर गया। संभावित डांट फटकार के डर से रोने लगी। कुछ समय बाद आंसू पोंछकर घर आने के लिए बर्तन उठाकर देखा तो आवाक रह गई। उस पात्र में तेल लबालब भर गया था। खुशी-खुशी वह तेल बिक्री किया। वापस आकर पुरी जानकारी परिवार जनों को दी। दूसरे दिन तेली परिवार ने उस शीला को उठा कर घर ले आया। पूजा-पाठ से घर का माहौल भावभक्ति से ओतप्रोत हो गया। नरेश वीरवल जयपाल को पता चला और राजिम माता के पास प्रतिमा के लिए याचना किया। उन्होने कहा प्रतिमा को ले जाईये। उनकी बात को सुनकर नरेश बहुंत प्रसन्न हुआ और राजिम के मंशानुरूप प्रतिमा के साथ राजिम शब्द जोड़ दिया गया और उसी दिन से राजीवलोचन को राजिमलोचन कहा जाने लगा।
समय-समय पर राजिम का नाम बदला
राजिम नगरी को अत्यंत प्राचीन बताया जाता है। किंवदंती के अनुसार पहले इन्हें कमलक्षेत्र कहा जाता था। उसके बाद पद्मक्षेत्र फिर देवपुरी, राजीवनगर, छोटाकांशी, पंचकोशी धाम, हरिहर की नगरी, राजिम प्रमुख है। राजिम का प्राचीन नाम कमलक्षेत्र पद्मावती पुरी राजीवलोचन मंदिर के नदी जाने के रास्ते के द्वार पर आज भी अंकित है।

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