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छत्तीसगढ़

आर्थिक संकट से जूझ रहा नगर निगम

रायपुर। केंद्र प्रवर्तित योजनाओं के माध्यम से चल रहा नगर निगम रायपुर अब आर्थिक संकट से जूझ रहा है। आयुक्त राजस्व कलेक्शन पर जोर दे रहे हैं। बढ़ते स्थापना व्यय के कारण जहां वेतन के लाले पड़ रहे हैं वहीं आम लोगों को टैक्स के रूप में खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।
मिली जानकारी के अनुसार आयुक्त नगर निगम ने सभी जोन कमिश्नरों की बैठक लेकर राजस्व वसूली बढ़ाने का निर्देश दिया है। आयुक्त ने पिछले एवं बड़े बकायादारों को भी नोटिस देकर राजस्व बढ़ाने का निर्देश दिया है। नियमानुसार दिसम्बर माह में छूट का लाभ लेकर सम्पत्तिकर पटाया जा सकता है। केंद्र शासन द्वारा नगर निगम के मध्यम से आजीविका मिशन, जेएनआरयूएम तथा भागीरथी मिशन सहित कई महत्वाकांक्षी योजनाएं संचालित की जा रही है। शहरी विकास मंत्रालय द्वारा गरीबों के लिए मकान भी बनाकर दिया जाता है। स्मार्ट सिटी प्राइवेट लिमिटेड राशि का भी अलग-अलग जगह उपयोग किया जाता है। कोरोना संकटकाल में रेमडेसिविर, इमर्जेंसी अस्पताल एवं बूढ़ातालाब के सौंदर्यीकरण में खर्च कर दिया गया था। वर्तमान में स्मार्ट सिटी प्राइवेट लिमिटेड की राशि केंद्र सरकार से अनुमति के बाद ही खर्च की जाती है लेकिन नगर निगम में ऐसा नहीं हो रहा है। पर्याप्त आय नहीं होने के कारण दीपावली के पहले कर्मचारियों को एडवांस दिया गया। विभिन्न जोन कमिश्नरों के अनुसार इस समय नगर निगम में वेतन के लाले पड़े हुए हैं जिसके चलते कर्मचारियों की छंटनी प्रस्तावित है। सफाई कर्मियों को भी वेतन समय से नहीं मिलता जिसके कारण वे भी हड़ताल पर चले जाते हैं।
जनता पर टैक्स का बढ़ता बोझ: नगरीय निकाय विभाग के अधिकारियों के अनुसार जब से चुंगीकर समाप्त किया गया है तब से नगर निगम की आर्थिक स्थिति दयनीय होती जा रही है। वहीं नगर निगम का भी स्थापना व्यय 60 प्रतिशत से ज्यादा हो गया है। नगरीय निकायों का संचालन करने के लिए संपत्तिकर, जल-मल कर बढ़ाने के अलावा कोई चारा नहीं रह जाता है। पिछले कई वर्षों में यह टैक्स 60 प्रतिशत से अधिक बढ़ाया गया है जिससे जनता परेशान हैं। जिनके घर में एटीएम तथा कोई व्यवसायिक प्रतिष्ठान है उनसे भी कामर्शियल टैक्स वसूला जा रहा है। निगम के अधिकारियों के अनुसार मुख्य नगर पालिका स्तर के कर्मचारियों को जोन कमिश्नर बनाया जाता है। वहीं इनको वाहन सहित अन्य सुविधाएं दी जा रही है। लेकिन छोटे कर्मचारी परेशान हैं। वहीं नियमित एवं आकस्मिक निधि कर्मचारी भी परेशान हैं।

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