सम्मान मिला पर नहीं किया दूसरों का सम्मान
हाकी टीम के पूर्व कप्तान, हरियाणा के खेल एवं युवा कल्याण मामलों के राज्यमंत्री का इस्तीफा
– जसवंत क्लाडियस,तरुण छत्तीसगढ़ संवाददाता
खेल खिलाड़ी की दुनिया भी अजीब है। जब खिलाड़ी को उम्मीद के अनुसार अवसर नहीं मिलता फिर भी प्रयास जारी रखता है लेकिन आगे बढ़ने का मार्ग खुलता है तो वह बेकाबू हो जाता है। यह स्थिति भारतीय हाकी टीम के पूर्व कप्तान और हरियाणा के खेल एवं युवा कल्याण मंत्री संदीप सिंह पर लागू होती है। सिर्फ 17 वर्ष की उम्र में हाकी जगत के सबसे कम उम्र के ओलंपिक खिलाड़ी 2004 एथेंस में बनते हैं। 2009 में भारतीय टीम के कप्तान चुने जाते हैं। 2017 के शुरू में उन्होंने हाकी से संन्यास ले लिया। 2019 में भारतीय जनता पार्टी की टिकिट से हरियाणा के पिओहा (कुरूक्षेत्र) विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और हरियाणा के खेल एवं युवा कल्याण मामलों के मंत्री बने। शून्य से शिखर का सफर तय करने वाले संदीप सिंह के विरुद्ध एक महिला कोच की शिकायत के आधार पर हरियाणा पुलिस ने एफआईआर दर्ज किया और संदीप को अपना पद त्यागना पड़ा। भारत में खेल को लोकप्रिय बनाने के लिए कई तरह के प्रयास किए जा रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों को जीवनयापन के लिए अच्छी नौकरी, सुविधा भी दी जा रही है। अब तो नया दौर आया है। भारत के राजनीतिक दल सुप्रसिद्ध खिलाड़ियों को लोकसभा, विधानसभा, राज्यसभा के चुनाव, मनोनयन के लिए अपने-अपने पार्टी का टिकिट भी देने लगे हैं। इसी तारतम्य में एमसी मेरीकाम, चेतन चौहान, पीटी ऊषा, सचिन तेंदुलकर, राज्यवर्द्धन सिंह राठौर, नवजोत सिंह सिद्धू, गौतम गंभीर आदि खिलाड़ी राजनेता बने। इस क्रम को आगे बढ़ाते हुए हरियाणा से संदीप सिंह न सिर्फ विधायक चुने गए बल्कि सरकार में मंत्री भी नियुक्त हुए। संदीप सिंह पर एक जूनियर महिला कोच ने अभद्रता का आरोप लगाया। इस पर कार्यवाही शुरू होते ही संदीप सिंह ने अपने पद को छोड़ दिया। भारतीय खेल के इतिहास में यह एक काला दिन लिखा जायेगा। हालांकि अभी जांच जारी है परंतु इस तरह की घटना प्रकाश में आते ही संदीप का त्यागपत्र सब कुछ बयां कर जाता है। भारत के ख्याति प्राप्त हाकी खिलाड़ी से एक महिला के प्रति इस तरह के व्यवहार की उम्मीद नहीं थी। खुद एक शानदार विश्व के प्रमुख ड्रेग फ्लिकर रहे संदीप आज युवाओं के प्रेरणास्रोत बन सकते थे। जिस ढंग से कम उम्र में उन्होंने हाकी के प्रति अपना समर्पण, त्याग दिखलाया और एक राष्ट्रमंडल व दो ओलंपिक खेलों मे ंभारत का प्रतिनिधित्व किया वह किसी भी खिलाड़ी के लिए गौरव की बात है। उसके बाद हरियाणा राज्य सरकार में उन्हें खेल एवं युवा कल्याण मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई। धरती से आकाश तक का सफर तय करने वाले संदीप सिंह आखिरकार अपने आप पर काबू नहीं पा सके। खेल जगत में आदर्श बनकर युवाओं, किशोरों के प्रणेता बनने के बदले उन्होंने अपने आपको खलनायक बना लिया। 27 फरवरी 1986 को जन्में संदीप मात्र 36 वर्ष की उम्र में जिस गौरव को पाया उसका सम्मान करना भूल गये। 2010 में भारत सरकार से उन्हें अर्जुन पुरस्कार मिला जिसकी वजह से हरियाणा सरकार ने उन्हें पुलिस विभाग में डीएसपी भी बनाया था। संदीप पर लगे आरोप का परिणाम आना बाकी है लेकिन अन्य प्रसिद्धि प्राप्त व्यक्तियों को उनका व्यवहार सबक सिखा गया है।