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छत्तीसगढ़

ज्यादा लालच दुख का कारण है:देवेंद्र तिवारी

राजिम । सहसपुर के शिव चौक में चल रहे श्रीमद्भागवत महापुराण ज्ञान यज्ञ सप्ताह के छठवें दिन बड़ी संख्या में श्रोतागण पहुंचकर कथा रस का पान किया। प्रवचनकर्ता भागवताचार्य पंडित देवेंद्र तिवारी ने 16108 रानियों के विवाह प्रसंग पर शानदार व्याख्यान प्रस्तुत किए। उन्होंने बताया कि रुकमणी, कालिंद्री, जामवंती, सत्यभामा, सत्या, भद्रा, सुलक्षणा, स्वीकृति के साथ विवाह होने के बाद उन्होंने बंदी गृह में कैद कुंवारी कन्याओं को छुड़ाने के लिए निकल गए। धरती पुत्र भौमासुर से भयंकर युद्ध किया लेकिन वह मृत्यु को प्राप्त नहीं हो पा रहा था क्योंकि उन्हें वरदान मिला था कि उनके मां जब तक नहीं कहेंगे कि तुम मर जा। तब तक नहीं मर सकता। चूंकि सत्यभामा उनकी मां थी। कृष्ण को मार खाते हुए वह देख नहीं पाई और अनायास उसके मुंह से भौमासुर के मर जाने की बात कह डाली।भौमासुर के मरने के बाद वह परमात्मा में विलीन हो गया और बंदी गृह में जाकर इन कन्याओं को छुड़ाया। उपस्थित 16100 कन्या कृष्ण को अपने पति रूप में प्राप्त करने की बात कही तब कृष्ण उन्हें अपने पत्नी बनाने के लिए राजी हो गया और इस तरह से 16108 रानी हो गया। ईश्वर को सच्चे मन से याद करने पर वह मुराद अवश्य पूरी करते हैं। अपने भक्तों की मनोकामना को कभी अधूरा नहीं छोड़ते। पंडित तिवारी ने आगे कहा कि दुख का कारण ज्यादा संपत्ति है ज्यादा लालच अपने साथ दुख को लाता है इसलिए जो भी मिले उसी से अपना गुजारा कर ले। संतोष परमसुख है। भूलकर भी किसी का अपमान नहीं करना चाहिए। दूसरों के अपमान करने से खुद के सम्मान खो जाते हैं। उन्होंने आगे कहा कि धर्म परिवर्तन करना ठीक नहीं है। हिंदू धर्म सनातन है। क्षणिक सुख, लोभ लालच के कारण दूसरे के धर्म को अपनाना ठीक नहीं है। धार्मिक ग्रंथ धर्म पर चलने की बात बताती है। यह अनुशासन के साथ ही जीवन जीने की कला भी सिखाती है। भगवान विष्णु ने 36000 श्लोक दिए। इनमें से 18 हजार देवी भागवत पुराण तथा 18 हजार श्रीमद्भागवत महापुराण में समावेश है। भक्ति मार्ग एवं ज्ञान मार्ग के द्वारा सरलता से ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। पंडित ने सुदामा प्रसंग पर बताया कि अभाव में भी कैसे जीवन जिया जाता है यह सुदामा से सीखें। उनके सामने खाने-पीने की दिक्कत आई बच्चे रोने लगे पत्नी चिल्लाने लगी लेकिन उन्होंने अपने धर्म को नहीं बिगाड़ा और दुख सहते हुए अपने कार्यों में निरंतर आगे बढ़ता रहा। नतीजा एक दिन भगवान खुद उन्हें सब कुछ प्रदान कर दिया। द्वारका जाने के लिए उन्हें रास्ते का ज्ञान नहीं था परंतु जैसे ही घर से निकले कृष्ण खुद वेश बदलकर रास्ता दिखाने के लिए चले आए और द्वारका तक पहुंचा दिए। कृष्ण से मिलकर सुदामा गदगद हो गया। इधर उनकी पत्नी सुशीला के द्वारा दिया हुआ तीन मु_ी चावल के दाने भगवान ने ग्रहण कर सुदामा को सब कुछ प्रदान कर दिया और उसके नगरी को सुदामापुरी कर दिया। ईश्वर के घर देर है अंधेर नहीं है। हमें अच्छे मार्ग को चुनना चाहिए छोटे बच्चों के सामने भूलकर भी लड़ाई झगड़ा ना करें क्योंकि बच्चे जो देखते हैं वही सीखते हैं। इस अवसर पर रुक्मणी विवाह की झांकी निकाली गई पश्चात सुदामा चरित्र प्रसंग पर चने की पोटली भगवत भगवान को समर्पित किए। गायक धर्मेंद्र एवं संतु साहू द्वारा शानदार भजन प्रस्तुत किया गया। भजनों की तान पर श्रोतागण झूमने के लिए मजबूर हो गए। इस अवसर पर बड़ी संख्या में ग्रामवासी के अलावा आसपास के गांव के लोग भी उपस्थित होकर भागवत कथा में ज्ञान प्राप्त किया।

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