छत्तीसगढ़

गौरवशाली परम्परा की जनक भक्त शिरोमणि माता राजिम

राजिम । छत्तीसगढ़ राज्य का राजिम क्षेत्र गरियाबंद जिले में महानदी के तट पर स्थित है यहां राजीवलोचन भगवान विष्णु का प्राचीन मंदिर है राजिम का प्राचीन नाम पद्मावती क्षेत्र था। पद्मापुराण के पातालखण्ड़ कै अनुसार भगवान राम का संबंध इस स्थान से बताया गया है।राजिम में महानदी पैरी सोंढूर नामक तीन नदियां का संगम है। कहते हैं कि छत्तीसगढ़ राज्य के राजिम क्षेत्र राजिम माता के त्याग की कथा प्रचलित है। इसी कारण राजिम भक्तिन माता जयंती 7 जनवरी को राजिम भक्तिन माता की याद में मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ के लाखों श्रद्धालु यहां एकत्र होकर माता की पूजा करते हैं राजीवलोचन मंदिर में लगे शिलालेख के अनुसार कल्चुरी राजा जगपाल देव का उल्लेख मिलता है। 3 जनवरी 1145 को शिलालेख लगाया गया था। 
इस स्थान का नाम राजिम तेलिन के नाम पर इसलिए पड़ा क्योंकि यहां के तैलिय वंश लोग तिलहन की खेती करते थे इन्हीं तैलिन लोगों में एक धर्मदास भी था जिसकी पत्नी का नाम शांतिदेवी था दोनों भगवान विष्णु के भक्त थे और उनकी बेटी का नाम राजिम था। राजिम का विवाह अमरदास नामक व्यक्ति से हुआ। वह विष्णु की भक्त थी राजिम की भक्ति, त्याग और तपस्या के चलते ही वह संपूर्ण क्षेत्र में माता की तरह प्रसिद्ध हो गई। भगवान के प्रति अपार सेवा भाव व पुण्य प्रताप के कारण ही आज पुरे देश में राजिम भक्तिन माता की अलग पहचान है और संपूर्ण क्षेत्र को राजिम के नाम से जाना जाता है
राजिम गौरवशाली परम्परा की जनक है छत्तीसगढ़ की चित्रोत्पला गंगा (महानदी) की गोद में जन्म लेने वाली भक्त शिरोमणी माता राजिम और उनके श्रम, साधना, भक्ति और सेवा का फल है।वैसे तो राजिम नामकरण के पीछे कई मान्यताएं एवं धारणाएं है, परन्तु उनमें से एक यह भी है कि राजिम नामक एक तेलिन के नाम पर इस स्थान का नाम पड़ा। कहा जाता है कि एक समय जब राजिम तेलिन तेल बेचने जा रही थी तो रास्ते में पड़े पत्थर से ठोकर खाकर गिर पड़ी और सारा तेल लुढ़ककर बहने लगा।राजिम बहुत दुखी हुई। सास एवं पति द्वारा दिए जाने वाली संभावित दण्ड से आशंकित होकर मन ही मन अपने ईष्ट से रक्षा करने की प्रार्थना करने लगे । बहुत देर तक रोते रहने एवं हृदय की व्यथा कुछ कम होने पर बोझिल मन से घर जाने के लिए खाली पात्र को जब वह उठाने लगी तो उसे यह देख आश्चर्य हुआ कि तेल पात्र भरा हुआ है, वह दिन भर घूम-घूम कर तेल बेचती रही पर वह खाली होना तो दूर रहा एक बूंद भी कम नहीं हुआ। राजिम के पति को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि पात्र तेल से भरा हुआ है और अन्य दिनों की अपेक्षा आज वह अधिक धन लेकर आई है पति एवं सास सोचने लगे कि इतना धन कैसे आया?किन्तु राजिम के मुख से घटना का विवरण सुनकर अचरज का ठिकाना न रहा। प्रमाण के लिए दूसरे दिन निश्चित स्थान पर जाकर राजिम ने प्रस्तर खण्ड दिखाया, सास ने अपने खाली पात्र को उस प्रस्तर पर रख दिया। पूर्व दिन की भांति वह भी तेल से लबालब भर गया। उस दिन ग्राहकों को तेल बेचने के बाद भी वह पात्र पूर्व की भांति एक बूंद भी रिक्त नहीं हुआ।संध्या घर आकर उसने पुत्र को सूचना दी और योजना बनाई गई कि उस प्रस्तर खण्ड को खोदकर निकाला जाए। आश्चर्य तब हुआ जब उस साधारण शिलाखण्ड के स्थान पर चतुर्भुजी भगवान विष्णु सदृश्य श्यामवर्णी मूर्ति निकली। उस मूर्ति को घर लाकर श्रद्घापूर्वक नित्यप्रति उसकी पूजा की जाने लगी। भगवान विष्णु उसी कमरे में स्थापित किए गये जहां तेल पेरने का कार्य संचालित होता था तथा व्यवसाय प्रारंभ करने से पहले प्रतिमा में प्रतिदिन तेल अर्पित कर पूजा अर्चना किया जाने लगा।बात 12 वीं सदी की है राजा जगतपाल का राज्य दक्षिण कोसल में था। उन्हें स्वप्न में आदेश हुआ कि लोक कल्याण के लिए एक मंदिर का निर्माण करे तथा प्रतिमा स्थापित करें। स्वप्न के आदेशानुसार राजा जगतपाल ने मंदिर का निर्माण किया और प्राण प्रतिष्ठा के लिए एक सिद्घ मूर्ति की खोज में लगा रहा।अब तक राजिम तेलिन के जीवन में घटी चमत्कार की कहानी सर्वत्र फैल चुकी थी । राजा ने मन में इसी मूर्ति को नवनिर्मित मंदिर में स्थापित करने का संकल्प लिया। राजा जगतपाल राजिम तेलिन से मूर्ति की मांग करने लगा और उसके बदले में उचित इनाम देने की बात कही। चुंकि बात राजा की थी, जिसका उल्लंघन संभव नहीं था और स्वयं राजिम तेलिन चाहती थी कि उसके इस अराध्य के अनेक भक्त बन जावें और कृपा से लाभांवित हो। अत: माता राजिम नें राजा से कुछ मोहलत की मांगी की।तब कहा जाता है कि उसी रात्रि को भगवान ने माता राजिम को दर्शन देकर वरदान मांगने को कहा, राजिम तेलीन ने एक ही वरदान मांगा था कि अब से भगवान तो राजा के हाथ में सुरक्षित हो जायेगा उन्हें यह वरदान दिया जाये कि भगवान के नाम साथ ही उनका नाम भी जुड़ा रहे। इस शर्त पर राजिम तेलीन से वह मूर्तिं राजा जगतपाल को सौंप दी गई और उसी दिन से भगवान राजीव लोचन अब राजिम लोचन के नाम से पुकारे जाने लगे।इस प्रकार से 12 वीं सदी में ही राजिम भक्तिन ने ईश्वर दर्शन सभी जाति धर्म के लिए सुलभ कराने का गौरव प्राप्त किया। कालांतर में श्रद्धालुओं द्वारा प्रतिवर्ष 7 जनवरी को भक्त शिरोमणी माता राजिम की जयंती मनाना निश्चित किया गया तथा राजिम में माता तेलीन भक्तिन की जयन्ती मनाई जाने लगी।

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