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छत्तीसगढ़

शहीद नांगूल दोरला के नाम से होगा शासकीय कॉलेज आवापल्ली, बविप्र की बैठक में लिया निर्णय

बीजापुर । बीजापुर जि़ले के आदिवासी बहुल क्षेत्र आवापल्ली में संचालित शासकीय महाविद्यालय अब “शहीद नांगूल दोरला” के नाम से होगा, जिसका निर्णय विगत 10 दिसम्बर को बीजापुर में हुए बस्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण की बैठक में लिया गया है। इसके साथ ही विकास खण्ड मुख्यालय आवापल्ली में दस लाख रुपए की लागत से “शहीद नांगूल दोरला” की विशाल प्रतिमा और भोपालपटनम के ग्राम गोरला में दस लाख रुपए की लागत से “शहीद वीर नारायण सिंह” की विशाल प्रतिमा स्थापित होगी, जिसकी भी स्वीकृति बविप्र के उपाध्यक्ष विधायक विक्रम मंडावी ने दी है। इस दौरान विधायक विक्रम मंडावी ने कहा कि “शासकीय महाविद्यालय आवापल्ली का नाम “शहीद नांगूल दोरला” के नाम से रखे जाने और विकास खंड मुख्यालय आवापल्ली में शहीद नांगूल दोरला और विकास खंड भोपालपटनम के ग्राम गोरला में शहीद वीर नारायण सिंह की प्रतिमायें स्थापना किए जाने की माँग क्षेत्र के लोग लम्बे समय से कर रहे थे जिसकी स्वीकृति दे दी गई है जल्द ही इन दोनों स्थानों पर विशाल प्रतिमाएँ स्थापित होंगी, इससे आदिवासियों के विरासत एवं संस्कृति की संरक्षण, संवर्धन एवं परिरक्षण होगी।कौन थे शहीद नांगूल दोरला वर्ष 1859 में अंग्रेज़ी शासन के समय बीजापुर जि़ले के पोतकेल, भेज्जी और कटपल्ली क्षेत्र में साल वनों की कटाई के विरुद्ध एक आदिवासी आंदोलन शुरू किया गया था, जो कि “कोई विद्रोह” के नाम से पूरे देश में जाना जाता है। “कोई विद्रोह” भारत का पहला ज्ञात सफल पर्यावरण तथा जल, जंगल और ज़मीन को बचाने का आंदोलन है। जंगल की कटाई के काम ने जैसे ही गति पकड़ी आदिवासी ज़मींदारों ने मिलकर यह तय किया कि अब जंगल और काटने नही जाएँगे। माँझियों ने एकराय होकर फ़ैसला किया कि एक पेड़ के पीछे एक सिर होगा। इस आंदोलन में एक वृक्ष एक सिर” नारा दिया गया। आंदोलन के नेतृत्वकर्ता नांगूल दोरला की अगुवाई में आदिवासी ज़मीदारों के इस विद्रोह के सामने अंग्रेज सेना को भी अपने पैर खिंचने पड़े। साथ ही निज़ाम के आदमियों को दिए गए ठेके निरस्त किए गए। कोई आंदोलन ने अपनी सफलता का इतिहास रच दिया।

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