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छत्तीसगढ़

सालों से प्रशासन से ग्रामीण मायूस, खुद ही संवार रहे सड़क

मोहला। जिले के मानपुर ब्लॉक अंतर्गत माहाराष्ट्र की सीमा में बसे धुर नक्सल प्रभावित पिट्टेमेटा गाँव का हर एक ग्रामीण इन दिनों माउंटेन मैन मांझी के तर्ज पर पहाड़ व बीहड़ रास्ते को तराशकर सड़क बनाने में जुटा हुआ है। प्रसासनिक उदासीनता की पराकाष्ठा ही कहें कि एक ओर सरकारे गांव गांव को सड़क से जोड़कर ग्रामीण विकास के दावे कर रही हैं लेकिन दूसरी ओर ग्रामीण सड़क से अनजान होकर बीहड़ों में कैद रह जाने को मजबूर हैं। दरअसल ग्राम पिट्टेमेटा तक पहुंचने के लिए आज आजादी के 75 साल बाद भी सड़क नही बन पाया ऐसे में हालात व सिस्टम से मारे यहां के ग्रामीण इन दिनों खुद अपने आवागमन के लिए बीहड़ो के बीच पहाड़ी रास्ते को काटकर माकूल सड़क बनाने में जुटे हुए हैं। ग्रामीणों की माने तो हर साल उन्हें बारिश के बाद पहाड़ी मार्ग को काट-छील कर आवागमन योग्य बनाना पड़ता है ताकि मुख्य मार्ग से ग्राम पंचायत मुख्यालय अस्पताल,राशन समेत बाहरी दुनिया से जुड़ने के लिए मीलों दूर मुख्य सड़क तक पहुंच सकें। सड़क बिना ग्रामीणों का जीवन इस कदर त्रासदी पूर्ण हो गया है कि एक ओर नदी व दूसरी ओर पहाड़ से घिरे यहाँ के ग्रामीण सड़क के अभाव मे इलाज तक के लिए तरसने को मजबूर हैं।
ग्राम पटेल दयाराम तुलावी, ग्रामीण धरम सिंह उसेंडी व अन्य ग्रामीणों के मुताबिक सड़क बनाने के लिए गाँव का हर बाशिंदे यहाँ अपना निजी काम-धाम कर जुटते हैं। वहीं खुद पसीना बहाकर अपने लिए सड़क बनाते हैं। पंचायत व प्रसासन से के लिए कोई मदद नहीं मिलती इस बात का इन आदिवासी ग्रामीणों को खासा अफसोस है। स्थानीय जनपद पंचायत के सीईओ जो लंबे समय से इस इलाके में पदस्थ हैं उनका आज तलक भी गांव तक न पहुंचना और गांव के लोगो का कभी सुध न लेना ग्रामीणों में अभी भी टीस व आक्रोश का कारण बना हुआ है। ग्रामीणों के मुताबिक कई बार अर्जी प्रस्तुत करने के बाद भी सीईओ ने उनकी सुध नहीं ली।
बता दें हाल ही मे पिट्टेमेटा के इन ग्रामीणों द्वारा चुनाव बहिष्कार के ऐलान के बाद गाँव की ओर शासन प्रसासन का ध्यान आया था। जिसका असर भी रहा कि कलेक्टर और एसपी को बीहड़ों में सफर कर पिट्टेमेटा गांव पहुंचना पड़ा था। इससे पहले आजादी के बाद से कोई भी स्थानीय प्रसासनिक अफसर तक इस गांव तक नही पहुंचे थे। कलेक्टर के पहुंचने से गांव के विकास की एक उम्मीद जरूर जगी है। लेकिन कलेक्टर एस पी का दौरा तभी सार्थक हो पाएगा जब बीहड़ों के बीच गुमनाम हो रहा पिट्टेमेटा गांव और यहाँ के बाशिंदे भी आम लोगों की तरह विकास की मुख्य धारा से जुड़ पाएंगे।

बहरहाल ग्रामीण चुनाव बहिष्कार के ऐलान में कायम रहते हुए सुविधाओं की राह ताक रहे हैं।

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