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खेल – मनोरंजन

क्यों पड़ रही है डी.डी. स्पोट्र्स की चमक फीकी?

आंखों देखा हाल : खेल मुकाबले को घर-घर पहुंचाने की कला

जसवंत क्लाडियस,तरुण छत्तीसगढ़ संवाददाता
आदि से समाज में खेलकूद गतिविधि का विशेष महत्व है। इतिहास में प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार खेलकूद की स्पर्धा के बारे में लिखित तौर पर प्राचीन ओलंपिक खेलों की जानकारी ईसा पूर्व 776 से उपलब्ध है। अत: स्पष्ट है कि खेलकूद के संबंध में लेखन की शुरुआत ईसा पूर्व 776 के आसपास हुई। इसके पश्चात सोलहवीं सदी तक चीन, जापान, यूरोप, भारत आदि देशों में क्षेत्रों में खेलकूद संबंधी जानकारी साहित्य में बहुत कम प्राप्त होता है। उल्लेखनीय है कि 17वीं, 18वीं सदी में नये-नये खेलों का उदय हुआ अर्थात् उसकी महत्ता मानव समाज में बढ़ती चली गई। 19वीं सदी के अंतिम वर्षों में खेल प्रतियोगिता को नई दिशा मिली जब व्यक्ति अपनी आवाज को ध्वनि तरंगों द्वारा मैच देख रहे लोगों तक मैदान में पहुंचाने लगे फिर रेडियो तरंगों के माध्यम से रेडियो के द्वारा मुकाबला स्थल के आसपास मैच का विवरण किसी भी खेल प्रेमी या श्रोता के पास बिना मैदान में पहुंचे आने लगा। 1898 से 1917 के दौरान रेडियो के माध्यम से मैच के विवरण को दूसरे स्थानों पर सुना जाने लगा। फिर आवाज के साथ-साथ चित्र को देखने की परंपरा शुरू हुई। 1936 के बर्लिन ओलंपिक में पहली बार दृश्य-श्रव्य पद्धति से प्रतियोगिता के अंतर्गत खेले जा रहे मैच का सीधा प्रसारण हुआ। भारत में 1923 से 1927 तक रेडियो से कार्यक्रम प्रसारण का दौर चला। भारत में 1959 में टेलीविजन से प्रसारण की शुरुवात हुई। धीरे-धीरे रेडियो से फिर टेलीविजन से टूर्नामेंट की जानकारी संबंधी खेल समाचार, रेडियो में आंखों देखा हाल फिर दूरदर्शन के द्वारा मैच का सीधा प्रसारण शुरू हुआ। खेलकूद को लोकप्रिय बनाने के लिए समय व परिस्थिति अनुसार उपलब्ध संचार माध्यमों का इस्तेमाल करके कई बदलाव किए गए। एक समय भारत में निजी या विदेशी प्रसारण/संचार माध्यमों को खेल हो या अन्य कुछ भी स्थानीय घटनाओं की जानकारी देने की छूट नहीं थी। परंतु समय परिवर्तन से सब कुछ बदलता चला गया। दूरदर्शन में भारत में खेलों को लोकप्रिय बनाने के लिए पहले भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत प्रसार भारती का गठन किया गया। जिसके अंतर्गत 18 मार्च 1998 को डी.डी. स्पोर्ट्स चैनल की शुरुवात हुई। आरंभिक दौर में यह चैनल भारत के गांव-गांव तक लोकप्रिय रहा लेकिन तकनीक, अनुबंध प्रक्रिया, स्टाफ आदि की कमी से परेशानी आई और अब तो प्रमुखत: जियो, सोनी, स्पोर्ट्स स्टार आदि चैनल आगे बढ़कर विभिन्न स्पर्धाओं के प्रसारण अधिकार को प्राप्त कर रहे हैं। यह ठीक है कि प्रसार भारती इस दौड़ में खड़ा नहीं रह सका परंतु 2014 के पश्चात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आते ही 2017-18 से खेलो इंडिया यूथ गेम्स, बीच गेम्स, यूनिवर्सिटी गेम्स, विंटर गेम्स और नेशनल गेम्स का नियमित आयोजन किया जा रहा है। उपरोक्त लगभग सभी स्पर्धाओं का लुप्त प्राय तथा ओलंपिक खेलों को बढ़ावा देने की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नीति के तहत सीधा प्रसारण डीडी स्पोर्ट्स द्वारा किया जा रहा है। दुर्भाग्य की बात है कि अन्य निजी व विदेशी खेल चैनल की अपेक्षा डीडी स्पोर्ट्स से मैच के सीधे प्रसारण में कई खामियां है जिससे डीडी स्पोर्ट्स चैनल की लोकप्रियता बहुत कम है। विभिन्न प्रतियोगिताओं के लिए नियुक्त किए जा रहे डीडी स्पोर्ट्स के प्रभारी अधिकारी, प्रोग्राम प्रोड्यूसर स्वयं टेलीविजन कामेंट्री की विधा से परिचित नहीं है। टेलीविजन के प्रसारण का सीधा सिद्धांत कमेंटेटर को खेल व दर्शकों के बीच नहीं आना चाहिए। इस बात की उन्हें जानकारी नहीं है प्रोड्यूसर तो कमेंटेटर से कहते हैं अरे चुप क्यों हो गये बोलो ना? जो ना बोले वह अच्छा कमेंटेटर नहीं है। एक समय था जब गोवर्धन शर्मा, दीक्षित, आइजक, अजय, अविनाश, संजीव सोनी डीडी स्पोर्ट््स के कर्ताधर्ता थे तब अनेक कमेंटेटर को अवसर दिया जाता था। यहां तक रिजर्व कमेंटेटर रखे जाते थे। आज तो प्रधानमंत्री की इच्छा के अनुरूप खेलों को भारत के गांव-गांव में पहुंचाने की नीति से खेल विभाग, भारतीय खेल प्राधिकरण के माध्यम से खेलो इंडिया से सीधे प्रसारण के लिए करोड़ों रुपये आबंटित किया जा रहा है तो डीडी स्पोर्ट्स के वर्तमान प्रभारी अधिकारियों ने बंदर के हाथों में उस्तुरा कहावत को चरितार्थ करते हुए कम से कम कमेंटेटर बुक करने की नीति बनाई है और यह जांच का विषय है कि नेशनल गेम्स, खेलो इंडिया में किस तरह एक ही स्पर्धा के दौरान एक-एक कमेंटेटर को तीन-चार मैचों में कामेंट्री करने का अवसर दिया जा रहा है जैसे कि कमेंटेटर पर खर्च उनकी जेब से किया जा रहा है। चर्चा तो यहां तक है कि मौका दिये जा रहे वर्तमान कमेंटेटर में से कुछ तो अपनी इच्छा के अनुसार मैचों की कामेंट्री प्राप्त करते हैं। इस तरह बेरोजगार, प्रतिभाशाली कमेंटेटर की उपेक्षा की जा रही है। यह सब बंद होना चाहिए तभी डीडी स्पोटर््स चैनल का कल्याण होगा।

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