मलखंब से छत्तीसगढ़ अब विश्व पर्यटन नक्शे में भी
लुप्तप्राय खेलों को पूरी दुनिया में पहुंचाने वालों को मिलना चाहिए भरपूर सम्मान
जसवंत क्लाडियस,तरुण छत्तीसगढ़ संवाददाता
हमारे देश में 1986 से कंप्यूटर युग आने के बाद विज्ञान, कला, निर्माण, कृषि, खेलकूद आदि सभी क्षेत्रों में निरंतर परिवर्तन आया है। सूचना के क्षेत्र में इलेक्ट्रानिक मीडिया में सबसे अधिक प्रगति हुई है। दृश्य-श्रव्य माध्यम अर्थात् टेलीविजन, मोबाइल ने तो समाज में तहलका मचा रखा है। पुष्टि के साथ आविष्कार, घटना की जानकारी को रखने से उस समाचार की विश्वनीयता बढ़ती है। 2014 के बाद से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भारत सरकार ने हमारे देश के लुप्तप्राय, लोक और स्थानीय खेलों को फिर से लोकप्रिय बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाया है। इसके लिए विभिन्न राज्यों के खेलों का चयन करके उसे प्रोत्साहित करने की योजना बनाई है जिसके लिए एक निश्चित राशि का प्रावधान किया गया है। इन खेलों में प्राचीन भारत के निवासियों की पसंद और खेल के माध्यम से आत्मरक्षा की कला आदि का पता चलता है। इसकी वजह से 20वीं सदी में कबड्डी, खो-खो जबकि 21वीं सदी में प्रमुखत: मलखंब, गटका, कलारीपयन्तु, पेनकाक सिलाट, लागोरी, योगासन, रोलरस्केटिंग जैसे खेलों को गोवा के 37वें राष्ट्रीय खेलों में शामिल किया गया है। छत्तीसगढ़ के सबसे पिछड़े क्षेत्रों में से एक है नारायणपुर जिला जो आज भी अबूझमाड़ क्षेत्र के नाम से विख्यात है। इस क्षेत्र के युवाओं में नक्सली गतिविधियों के कारण बड़ी निराशा थी लेकिन उनमें खेलकूद के प्रति विशेष लगाव खेल प्रशिक्षकों द्वारा पैदा किया गया। यहां पर संचालित वनवासी कल्याण आश्रम और शासकीय संस्थाओं के माध्यम से अंचल के मूल निवासी अनुसूचित जनजाति (आदिवासी) वर्ग के रहवासियों के बच्चों को शिक्षा, खेलकूद व अन्य क्षेत्रों में निरंतर आगे बढ़ाने का प्रयास जारी है। इसमें शामिल कई बच्चे अनाथ, कमजोर आर्थिक स्थिति वाले हैं। इतिहास गवाह है कि अलग-अलग प्रतिभा के धनी इन बच्चों, किशोरों ने भारत में अपनी छाप छोड़ी है। विशेषकर मलखंब जैसे भारत के पुरातन खेल को पुर्नजीवित करने की कोशिश पिछले पांच-छ: वर्षों से सुरक्षा बल के सिपाही पद पर पदस्थ मनोज प्रसाद द्वारा आरंभ की गई। वे जब बस्तर के एक बटालियन में पदस्थ थे तब उन्हें पुलिस प्रशासन द्वारा मलखंब के प्रशिक्षक के लिए मुंबई भेजा गया। मनोज ने इस हेतु अपने चयन को सही साबित किया और नारायणपुर में नियुक्ति के दौरान उन्होंने पाया कि भारत के प्राचीन खेल मलखंब को आगे बढ़ाने के लिए यह क्षेत्र एक विशेष स्थान रखता है अत: उन्होंने इस खेल को विश्व व्यापी बनाने की ठान लिया। दहशत में जी रहे बच्चे, किशोरों, जवानों का चयन मलखंब में करके उन्हें प्रशिक्षित करना आरंभ किया और गुजरात के 36वें तथा गोवा के 37वें राष्ट्रीय खेलों में छत्तीसगढ़ के लिए पदक हासिल किया। हालांकि छत्तीसगढ़ शासन और मलखंब के राष्ट्रीय व राज्य स्तरीय खेल संघ ने उन्हें भरपूर प्रोत्साहित किया। फिर सोनी टीवी में इंडिया गाट टेलेंट कार्यक्रम में नारायणपुर के इन्हीं प्रशिक्षित नौजवानों ने प्रतियोगिता में भाग लिया और पूरे देश में प्रथम स्थान प्राप्त किया। प्रशिक्षक मनोज प्रसाद के माध्यम से नये दृष्टिकोण के कारण न सिर्फ अबूझमाड़ बल्कि छत्तीसगढ़ राज्य विश्व के पर्यटन नक्शे में आ गया। एक साधारण सिपाही ने इन खिलाडिय़ों को विश्व स्तरीय बना दिया और छत्तीसगढ़ को पूरी दुनिया को जानने, समझने के लिए उत्सुक कर दिया। अत: हमारे प्रदेश के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय, उप मुख्यमंत्री अरुण साव तथा विजय शर्मा के समक्ष आरक्षक मनोज प्रसाद जैसी प्रतिभा को पुरस्कृत व सम्मानित करने का अवसर आ गया है। अन्य क्षेत्रों के खिलाडिय़ों को जब उनकी उपलब्धि के लिए राजपत्रित पद दिया जा सकता है तो फिर मनोज प्रसाद को पुलिस विभाग में पुलिस उप अधीक्षक (डीएसपी) जैसे पद पर नियुक्ति क्यों नहीं दी जा सकती। इससे अन्य खेलों के खिलाडिय़ों, प्रशिक्षकों को भी प्रेरणा मिलेगी।