पितृ ऋ ण की मुक्ति होने से देवताओं और ऋ षियों की प्राप्त होती है कृपा:इन्दुभवानन्द
भिलाई । एमपी हॉल जुनवानी गहोई समाज के तत्वाधान में चल रही भागवत की दिव्य अमृतमयी कथा के रास रहस्य के सारगर्भित अंश की व्याख्या करते हुए ज्योतिष पीठाधीश्वर एवं द्वारका शारदा पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज के अनन्य कृपा पात्र शिष्य शंकराचार्य रायपुर के प्रमुख डॉ इंदुभवानंद महाराज ने बताया कि सत्य वस्तु भाव की अपेक्षा नहीं रखती। भगवान श्री कृष्ण से किसी भी तरह से,किसी भी तरह का संबंध जुड़ जाने से निश्चित ही भक्तों का कल्याण होता है अग्नि को जानकर स्पर्श करें या बिना जाने स्पर्श करने अग्नि तो जलाएगी ही, जहर को जहर समझ कर खाएं या बिना जाने खाएं तब भी जहर अपना काम करेगा उसी प्रकार से परब्रह्म परमात्मा श्री कृष्ण को जिस किसी भाव से स्मरण किया जाएगा, संबंध बनाया जाएगा तो उनका स्मरण उनका साहचर्य सदा भक्तों के मंगल व कल्याण का ही हेतु होगा। गोपियों ने भगवान श्री कृष्ण की जार बुद्धि से ही सही, स्मरण किया, उपासना की तो उनको श्री कृष्ण की प्राप्ति हुई और कल्याण हो गया कल्याण हो गया। आगे कथा व्यास ने कथा को विस्तार देते हुए बताया कि विवाह धर्म प्राप्ति के लिए किया जाता है, भोग और विषय वासना की पूर्ति के लिए नहीं। भारतीय संस्कृति में विषय वासना का कोई स्थान नहीं है, विवाह से पितृ ऋण की मुक्ति होती है। भारतीय संस्कृति में तीन प्रकार के ऋणों का उल्लेख प्राप्त होता है। उत्तम संतान से पितृ ऋण की मुक्ति होती है और पितृ ऋण की मुक्ति होने से देवताओं और ऋषियों की कृपा प्राप्त होती है। देवता, ऋषि और पितरों के ऋण से मुक्त होने के बाद प्राणी को अपने स्वरूप का लाभ प्राप्त होता है। कथा के पूर्व गहोई समाज के मुखिया पवन ददरया ने पोथी का पूजन किया तथा आरती की। आचार्य महेंद्र नारायण शास्त्री अभिषेक कृष्णआनंद देवदत्त शास्त्री वीरेंद्र दुबे आदि वैदिक विद्वानों ने विधिवत पूजन कराया।