छत्तीसगढ़

आज भी आदिवासी वर्ग के 40 लोग अंधेरे में जीवन जीने को है मजबूर

देवभोग । हमें भी उजाले में रहने का अधिकार है, सूरज ढलते ही अँधेरे के बीच हम कैद हो जाते है। लकड़ी की लौ या मोबाइल टॉर्च के बीच भोजन बनाकर जीने को मजबूर है दरलीपारा के 40 आदिवासी वर्ग के लोग। आजाद भारत में देवभोग ब्लॉक के नक्शे में एक पारा ऐसा भी है जहाँ के लोग पिछले दस साल से अँधेरे में जीवन जीने को मजबूर है। सरकारें बदल गई लेकिन रात के अँधेरे को दूर करने में किसी ने रूचि नहीं दिखाई। हम बात कर रहे है कुम्हड़ई खुर्द पंचायत के आश्रित ग्राम दरलीपारा की। यहां के बाशिंदे आज 10 साल से बिजली के इंतज़ार में है। यहां रहने वाले आदिवासी वर्ग के 40 ग्रामीण अँधेरे में रात काटने को मजबूर है। दरलीपारा के गोविन्द सोरी, अकालू सोरी, खेमसिंग सोरी और सेवकराम सोरी ने बताया कि चार साल पहले बिजली विभाग ने सर्वें भी करवाया। ग्रामीणों को उम्मीद थी कि सर्वें के बाद उन्हें बिजली मिल जायेगी और रात के अँधेरे से भी उन्हें मुक्ति मिलेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सर्वें तो हुआ लेकिन नतीजा कहाँ तक पहुंचा इसकी जानकारी भी ग्रामीणों को आज तक नहीं मिल पाया। वहीं जिम्मेदारों की कार्यप्रणाली से नाराज ग्रामीणों ने अधिकारी वर्ग के कार्यप्रणाली को भी सवालों के घेरे पर लेना शुरू कर दिया है।
मामले में विभाग के एई यशवंत ध्रुव ने बताया कि उस गॉव की जानकारी हमारे पास भी है। लाइन की स्वीकृति के लिए उच्च कार्यालय को फाइल भेजा गया है। जैसे ही स्वीकृति मिल जायेगी काम शुरू कर दिया जायेगा।
टॉर्च और लकड़ी जलाकर करते हैं रौशनी
दरलीपारा के गोविन्द सोरी ने बताया कि ग्रामीणों को आज चार महीने से मिट्टी तेल नहीं मिल रहा है। मिट्टी तेल नहीं मिलने से परेशानी बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। ऐसे में रात के अँधेरे को दूर करने के लिए वे मोबाइल टॉर्च या फिर लकड़ी के लौ का सहारा लेते है। दुर्योधन की माने तो सबसे ज्यादा परेशानी बरसात के दिनों में होती है। उस दौरान गिली लकडिय़ां भी नहीं जलती और मोबाइल का बैटरी लो होने पर पारा से निकलना मुश्किल हो जाता है। गोविन्द ने बताया कि उन्हें मजबूरीवश मोबाइल चार्ज करने के लिए आधा किलोमीटर की दूरी तय कर बिसीपारा आना पड़ता है। यहां के लोग भी कई बार मोबाइल चार्ज करने के लिए मना कर देते है, जिसके बाद मजबूरीवश पंचायत मुख्यालय कुम्हड़ई खुर्द जाकर उन्हें मोबाइल चार्ज करना पड़ता है।

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