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छत्तीसगढ़

महानदी में कलिंदर की खेती बंद, खरीद कर खाने मजबूरी

राजिम । शहर के बाजार में इन दिनों कलिंदर बड़ी संख्या में आयात किए गए हैं और इन्हें कोई ठेले पर रखकर तो कोई जमीन पर रखकर तो कोई और कहीं पर बिक्री कर रहे हैं विक्रेता इन्हें उनकी साइज देखकर वजन के हिसाब से कीमत लगा रहे हैं क्योंकि गर्मी अब धीरे-धीरे बढ़ रही है इसलिए इनके धंधा भी अच्छी हो रही है थोक बाजारों में कलिंदर आते ही स्थानीय छोटे व्यापारी इन्हें मोलभाव कर खरीद लेते हैं और ठेले या फिर अन्य साधनों के हिसाब से रख कर इन्हें बेचते हैं। शहर के बस स्टैंड में रायपुर रोड से लेकर महासमुंद मार्ग, महामाया पसरा बाजार इत्यादि स्थल पर तरबूज रखे गए हैं। त्योहारी सीजन के कारण इनकी बिक्री कम हो रही है। बेच रही महिला विक्रेता ने बताया कि ग्राहकी बहुत कम है जिसके कारण जो मार्जिन मनी मिलना चाहिए वह नहीं मिल पाई है वैसे भी मैं पहले दिन दुकान लगाई हूं आगे इनका मार्केटिंग बढ़ेगा इसमें कोई दो मत नहीं है। इसी तरह से दूसरी महिला विक्रेता से चर्चा करने पर बताया कि बिक्री हुई है लेकिन जिस तरह से बिकना चाहिए वह नहीं बिकी है। अब तो पूरे घर में तक हमें इन्हीं का धंधा करना है इससे जो इनकम जनरेट होगा उससे परिवार का पालन पोषण होगा। बता देना जरूरी है कि नदी के किनारे दो शहर है जिसमें राजिम गरियाबंद जिला में आता है तो रायपुर जिला के अंतर्गत गोबरा नवापारा शहर है। दोनों जगह सब्जी मंडियां है। कोचिया इन्हीं मंडियों से कलिंदर खरीद कर ले आते हैं और पसरा बाजार में बेचते हैं।
महानदी की रेत पर होती रही कलिंदर की खेती
दो दशक पहले पैरी नदी, सोंढूर नदी एवं महानदी की रेत पर कलिंदर की खेती होती थी जैसे ही किसान नवंबर माह में खरीफ फसल की कटाई मिंजाई कर लेते थे उसके बाद 4 महीने खाली ना रहकर सीधे नदी में बाड़ी लगाने के लिए पैसा इक_ा करते थे और उन्हीं पैसे से पूरे नदी क्षेत्र में बाड़ी लगता था। कलिंदर, खरबूजा बड़ी संख्या में वही जाते थे तथा बाद में बरबटी, भिंडी, खीरा, ककड़ी कोचई इत्यादि लगाकर खेती करते थे। उस समय एक से बढ़कर एक कलिंदर उसकी खेती होती थी। टन के अनुसार इन्हें बेचा जाता था। रायपुर, दल्ली राजहरा, नागपुर, सतना, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, दिल्ली इत्यादि महानगरों में राजिम व आसपास के कलिंदर बिक्री के लिए रखे जाते थे। कुछ कलिंदर तो यहां के व्यापारियों से खरीद कर सीधे विदेश भी जाते रहे हैं। लेकिन महानगरों में तो बेचने वाले सीधे कहते थे यह राजिम का कलिंदर है भाई, रसदार तो है ही, मिठास खूब है इसमें। और खरीदने वाले इन्हें खरीद कर घर ले जाते थे और परिवार सहित खाते थे। एक किसान ने बताया कि उस समय सौ से दो सौ नाली में तरबूज की खेती करता था अब नदी में पानी नहीं रहता तथा जगह-जगह एनीकट बन जाने के कारण नदी में खेती योग्य जमीन नहीं रहे जिसके कारण बाड़ी लगाना मुश्किल हो गया है। बता देना जरूरी है कि चौबेबांधा से लेकर टीला तक चार -पांच एनीकट बन चुके हैं जिसके लिए सरकार ने लाखों करोड़ों रुपया खर्च किया। इत्तेफाक यह है अनिकेत तो बना दिए हैं गवर्नमेंट ने लेकिन कहां कहीं पर पानी नहीं है तो कहीं पर और कोई दिक्कत है जिसका लाभ क्षेत्रीय लोगों को नहीं मिल पा रहा है जो बड़ी विडंबना है।
तरबूज में 90प्रतिशत से ज्यादा पानी
जानकारी के मुताबिक तरबूज में 90त्न से ज्यादा पानी होता है यह मीठा, स्वादहीन और कड़वे तीनों रूप में पाया जाता है। आकार में बड़ा, छोटा दोनों प्रकार का होता है। गले को तर करने और गर्मी को दूर करने का कलिंदर एक अच्छा विकल्प हैं जो न सिर्फ प्यास बुझाता है बल्कि भूख को भी शांत करता है। इसमें कई पोषक तत्व पाया जाता है जिसके कारण शरीर से जुड़ी समस्याओं को भी दूर करने का काम करते हैं। तरबूज में फाइबर, पोटेशियम, आयरन और विटामिन ए, सी व बी भरपूर मात्रा में होता है इसमें लाइकोपीन नामक तत्व बनता है यह एंटीऑक्सीडेंट की तरह काम करता है और इसी से फल को गहरा लाल रंग मिलता है।

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