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छत्तीसगढ़

छुरा के जंगल को हजारों राजस्थानी भेड़-बकरी नुकसान पहुंचा रहे

फिंगेंश्वर (छुरा) । वन परिक्षेत्र छुरा के सिमटते जंगल से कौन वाकिफ नहीं है अवैध कटाई और वन भूमि पर अतिक्रमण कोई नई बात नही है पर बीते कई सालों से गरियाबंद वन मंडल के विभिन्न परीक्षेत्रों में राजस्थानी भेड़ बकरी ,ऊंट और घोड़े को अवैध रूप से चराई के लिए गरियाबंद वन मंडल द्वारा खुली छूट दे रखने के कारण जंगलों का धीरे धीरे पतन हो रहा है। इसी क्रम में इस बार फिर बारिश लग गई है और बरसात के मौसम के पहले हजारों की संख्या में राजस्थान के भेड़ बकरी ऊंट और घोड़ा लेकर चरवाहे जंगल में घुस गए हैं और जगह जगह परिवार समेत तंबू गाड़ कर अपना डेरा जमा रखे हैं ।पर हमेशा की तरह छुरा वन परिक्षेत्र के अधिकारी कर्मचारीयो को पता होने के बाद भी मीडिया के सामने अंजान होने का नाटक करते है इस वजह से आज तक कोई कार्यवाही नहीं की है और कर भी लेते हैं तो वह कार्रवाई केवल दिखावा साबित होता है विश्व पर्यावरण दिवस की बड़ी-बड़ी डींगे हांकने वाले वन विभाग और जंगल को बचाने के लिए हर साल झूठी शपथ खाते है ।जंगल में पनप रहे छोटे छोटे पौधे को बचाने में नाकाम साबित हो रहे हैं और वही हजारों पौधे और रोपण की बात करते हैं । पर जो जंगल में प्राकृतिक रूप से उग रहे पौधो को बचा ले तो ये जंगल हरे भरे हो जायेंगे ।पर ऐसा होता नहीं है ज्ञात हो कि बारिश में छोटे-छोटे पौधे पेड़ का रूप लेते हैं।किंतु हजारों की संख्या में भेड़ बकरी उसे चट कर जाते हैं बढऩे ही नहीं देते जानकर बताते है की जिस भी पौधे भेड़ बकरी चरते है वो दोबारा पनपने में बहुत समय लगता है।साथ ही जंगल में विभिन्न प्रकार के जीव जंतु भी इनसे भयभीत होकर इधर-उधर तितर-बितर होते है और बिदक जाते हैं और गांव की तरफ आते हैं ऐसे में अवैध शिकार भी होता है ।पर वन विभाग के जिम्मेदार रेंजर साहब डिप्टी रेंजर बिट गॉर्ड वा चौकीदार सहित जिले में बैठे डी एफ ओ साहब सब जानकर आंखे बंद किए हैं तथा इन पर कार्रवाई करने की जहमत उठा ही नहीं पा रहे हैं बता दें कि छुरा वन परिक्षेत्र के विभिन्न बिट चराई के लिए प्रतिबंधित है पर इसमें हजारों की संख्या में घुसे इन भेड़ बकरी से स्थानीय ग्रामीणों के पालतू मवेशियों को भी मौसमी बीमारी खुरहा चपका, मुंह पका जैसे बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। यह प्रक्रिया हर साल ऐसे ही चल रहा है पर आज तक इसके अवैध चराई के ऊपर कोई कार्यवाही नहीं की गई है जबकि इनके पास चराई के लिए कोई वैध दस्तावेज नहीं होता है यह विभाग को भी पता है जाने क्यों इसके बावजूद अवैध चराई धड़ल्ले से भारी मात्रा में चल रहा है । गांव-गांव में रखे पालतू पशुओं के लिए जंगलों में चारा की समस्या उत्पन्न हो रही है बता दें कि ये राजस्थान के भेड़ बकरी छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों में लगभग 500 की तादाद में फैले हुए हैं उसके खिलाफ सरकार भी कुछ नही कर पा रही है।और जिले में बैठे जिम्मेदार अधिकारी सहित वन विभाग की सबसे बड़ी जिम्मेदारी होती है।पर हमेशा की तरह अपने कर्तव्यों से पल्ला झाडऩे में माहिर वन विभाग के अधिकारी पेड़ पौधे और जंगली जीव जंतु को बचाने में अपनी खुर्सी से नही उठ पा रहे हैं । ऐसे में वन विभाग के कार्य प्रणाली पर सवाल उठना लाजिमी है ? ब्लॉक मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर यह राजस्थनी भेड़ बकरी चराई कर रहे हैं।संबंधित बिट गॉर्ड,और डिप्टी रेंजर को पता है ।और सब कुछ जानकर अंजान बने हुए हैं। और जब मीडिया कर्मी सवाल पूछते है तो उनसे ही लोकेशन पूछते है कहा पर है जबकि हर बिट की देखरेख के लिए बिट गॉर्ड तैनात है इस प्रकार इस अवैध चराई को पूरे 4 महीने छुरा के जंगलों में करते हैं। इसके बाद फिर वापस मैदानी जिलों में चराई करने चले जाते हैं। फिर जैसे बारिश लगती हैं फिर वापस आ जाते हैं यह सिलसिला लगभग कई सालों से अनवरत चलता रहे हैं पर इन अवैध चराई के प्रति आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है।जिससे यह प्रक्रिया पर लगाम लगाया जा सके।किंतु मुख दर्शक बने बैठे वन विभाग केवल इनके आने के इंतजार करते हैं। यही हाल रहा तो सिमटते जंगल के इन छोटे-छोटे पौधे कभी पेड नहीं बन पाएंगे और उगने से पहले उसे यह भेड़ बकरी चट कर जाएंगे और अपने खुरो में मसल देंगे ।जो प्राकृतिक की व्यवस्था के लिए खतरनाक साबित होगा समय रहते अगर इन पर रोक नहीं लगाई गई तो या जंगल नष्ट हो जाएगा और राजस्थान की तरह मैदान में तब्दील हो जाए।
वही इस बारे में प्रभारी रेंजर वन परीक्षेत्र छुरा आरके साहू से पूछे जाने पर बताया कि इन लोग वैध नहीं रहते और नदी के किनारे किनारे और रास्ते रास्ते ले जाएंगे करके बोलते हैं पर जंगल में घुसा देते हैं अगर ऐसा वहा होगा तो स्टॉप भेज कर पता लगाता हूं फिर आपको बता रहा हूं ।

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