छत्तीसगढ़

कचरे के ढेर में बचपन ढूंढ रहा दो वक्त की रोटी

पत्थलगांव । कचरे के ढेर में बचपन इन दिनों गुम होता दिखायी दे रहा है,दो वक्त की रोटी की तलाश में सुबह होते ही एक दर्जन से भी अधिक बच्चे कचरे के ढेर को खंगालते नजर आते है। शिक्षा विभाग के पास ऐसे घुमंतु बच्चों के लिए कोई ठोस कार्य योजना ना रहने के कारण घुमंतु बच्चो का भविष्य कचरे के ढेर तक ही सिमट कर रह गया है। पिछले कुछ वर्ष पूर्व शिक्षा विभाग ने घुमंतु बच्चो के लिए नाईट क्लास की शुरूवात की थी,परंतु योजना का क्रियान्वन एवं उसके फ्लाप होने मे ज्यादा समय नही लगा। इन दिनो शहर मे दर्जनो की तादाद मे छोटे बच्चे दुकान एवं घरो से फेके गये कचरे मे दो वक्त की रोटी की तलाश करते आसानी से देखे जा सकते है,ये हाथो मे लकडी का डंडा पकड़कर कचरे के ढेर को खंगालते हुये उसमें से लोहा या अन्य सामान निकालने की कोशिश करते है। इन बच्चो से जब शिक्षा के विषय मे जानकारी ली जाती है तो ये स्कूल का मुंह देखना भी नसीब नही हुआ ऐसा कह कर फर्राटे से दौड़ लगा देते है। सुबह के दौरान शहर के प्रमुख मार्गों में बसी दुकानों के सामने इन बच्चों को कचरे से लोहा या कबाड़ में ंबिकने वाले सामान बिनते आसानी से देखा जा सकता है,ये बच्चे कचरे से उन सामानो को निकालकर कबाडी की दुकान मे ले जाकर बेच आते है,ऐसा करने में कबाड़ का सामान खरीदने वाले व्य कामो से परहेज नही करते,इसके विपरीत शिक्षा विभाग पूरी तरह चुप्पी साधे बैठा है,घुमंतु बच्चो का चिन्हांकन ना होने के कारण उनकी दर्ज संख्या बढते जा रही है,जो आगे चलकर कानून के लिए भी खतरा बन सकती है।।
एक्सल प्लान में दर्ज नही होती संख्या- दरअसल प्रतिवर्ष शिक्षा विभाग द्वारा एक्सल प्लान तैयार किया जाता है,जिसमे शाला त्यागी या घुमंतु बच्चो की संख्या दर्ज कर उसे शिक्षा विभाग मे बैठे उच्च अधिकारीयों तक भेजा जाता है,जहा से इन बच्चो के लिए प्लान तैयार कर उन्हे स्कूल या अतिरिक्त समय में क्लास लगाकर शिक्षा देनी होती है,परंतु घुमंतु बच्चो पर शिक्षा विभाग की नजर ना पडने के कारण ऐसे बच्चो का एक्सल प्लान की लिस्ट में कभी नाम तक दर्ज नही हो पाता,इसे विभाग की लापरवाही या कार्यो के प्रति उदासीनता कहा जा सकता है। शिक्षा विभाग मे शाला त्यागी या घुमंतु बच्चो के लिए राजीव गांधी शिक्षा मिशन को भी जिम्मेदारी सौंपी गयी थी,परंतु यहा की लापरवाही भी घुमंतु बच्चो की शिक्षा के प्रति राह आसान नही कर पायी।।
संस्था का आभाव-:घुमंतू बच्चों के जीवन मे शिक्षा का उजाला फैलाने के लिए जितना गैर जिम्मेदार शिक्षा विभाग है,उतने ही जिम्मेदार ऐसे बच्चो के पालक भी है जो शिक्षा के क्षेत्र मे मिलने वाली तमाम सुविधाओ से अपने नौनिहालो को वंचित रख रहे है। विभाग से मिली जानकारी के अनुसार घुमंतु बच्चो को चिन्हाकिंत करने मे सबसे बडी परेशानी है उनके पालक है जो बच्चो को शिक्षा के क्षेत्र से जोडना ही नही चाहते। बताया जाता है कि कुछ घुमंतु बच्चो के पालक खाना बदोश भी है जो आज यहा तो कल वहा डेरा जमाकर अपने बच्चो से कचरा बिनवाने का काम करते है। मिली जानकारी के अनुसार घुमंतु बच्चो के लिए अलग से शिक्षा विभाग मे संस्था का भी आभाव है,जिसके कारण उन्हे एक व्यवस्थित जगह की कमी हमेंशा खलती है।।
ठ्ठ पूर्व मे घुमंतु या शाला त्यागी बच्चो को चिन्हाकिंत कर स्कूल मे दाखिला कराया गया था,यदि ऐसे बच्चे दोबारा मिलते है तो उन्हे शिक्षा के क्षेत्र मे जोडा जायेगा।
धनीराम भगत-ब्लाक शिक्षा अधिकारी-पत्थलगांव

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button