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छत्तीसगढ़

कांप्लेक्स बने दशक बीता, अब तक नहीं खुली दुकानें

दंतेवाड़ा । नपा दंतेवाड़ा की अजब ही दास्तां है। शहर में स्वच्छता की अलख जगाने वाला नगर पालिका स्वयं के बनाए दुकानों को ही आज मूत्रालय में तब्दील होने से नहीं बचा पाया। शहर के साफ सफाई की जिम्मेदारी नगर पालिका प्रशासन की होती है। लेकिन जब पालिका के अधिकारी कर्मचारी ही अकर्मण्य हो जाएं तो भला सफाई व्यवस्था कैसे सुचारू रूप से संचालित हो सकता है। करीब एक दशक पूर्व सब्जी मार्केट काम्पलेक्स के नाम पर 10 पक्के स्थाई दुकान का निर्माण हुआ था। मगर दुर्भाग्य से इन दुकानों का शटर आज तक नहीं उठ पाया। ना ही कभी इस काम्पलेक्स परिसर की सफाई की गई। आलम यह कि लाखों खर्च कर बनाए गए दुकान आज मूत्रालय में तब्दील हो चुका है। वक्त के साथ सीएमओ बदलते रहे पर नहीं बदली सब्जी व्यापारियों की तकदीर। सब्जी मार्केट काम्पलेक्स होते हुए भी आज व्यापारी सड़कों पर या चौक चौराहों पर बैठकर सब्जी भाजी बेच रहे हैं।गौरतलब है कि वर्ष 2011-12 में नगर पालिका दंतेवाड़ा द्वारा बस स्टेंड परिसर के समीप ही पुराने नगर पंचायत कार्यालय के पीछे साईड लाखों खर्च कर सब्जी मार्केट को सुव्यवस्थित करने एक लंबे चौड़े काम्पलेक्स का निर्माण किया गया था जिसमें करीब 10 दुकानें बनाई गई थी। 03 दुकानें सामान्य, 03 दुकान अजजा, 01 दुकान अ.जा. 01 महिला के लिए तथा 02 दुकानें पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित था। काम्पलेक्स निर्माण के करीब दो साल बाद नगर पालिका को होश आया जिसके बाद दुकानों का वर्गवार आबंटन के लिए नीलामी निविदा वर्ष 2014 में निकाला गया। उस दौरान एक दुकान की ऑफसेट प्राईज करीब 1,76000 रूपए रखी गई थी। माहवारी किराया रखा गया था 1500 रूपए। दुकान नीलामी की प्रक्रिया का आगे क्या हुआ क्या नहीं यह तो पता नहीं चल पाया है। मगर इतना बताते चलें कि आम जनता के टैक्स के रूपयों से बनाए गए ये 10 लंबी चौड़ी पक्की दुकानों मेंं आज दशकों बाद भी शटर डाउन ही पड़ा हुआ है। आलम यह कि काम्प्लेक्स परिसर आज पूरी तरह से मूत्रालय में तब्दील हो चुका है। यात्रीगण व अन्य लोग बसों से उतरकर उसी काम्पलेक्स परिसर के पीछे जाकर मलमूत्र त्यागते हैं। आसपड़ोस के लोग भी कूडा करकट वहीं फेंकने लगे हैं। गंदगी, बदबू से पूरा काम्पलेक्स परिसर हरवक्त सराबोर रहता है। आसपास के रहवासी दुर्गध व बदबू के बीच रहने को मजबूर हैं। पालिका के कर्मचारी कभी उस तरफ ताकते हैं न झांकते हैं, न ही परिसर की कभी सफाई ही की जाती है। दुकानों का शटर भी अब आयल, ग्रीसिंग के अभाव में धीरे धीरे खराब होकर जाम होने लगा है। पालिका के रा0नि0जयहरि सिंह ने बताया कि बीते साल भर पहले दुकान आबंटन की प्रक्रिया फिर से शुरू किया गया है जिसमें अब तक 9 दुकानों को किराए पर अस्थाई तौर पर जरूरतमंदों को दिया जा चुका है। चलो देर आए दुरूस्त आए । 10 साल बाद ही सही दुकान का आबंटन हुआ तो। मगर सवाल अब भी वहीं का वहीं खड़ा है। आबंटन के साल भर बाद भी दुकानों का शटर आखिर अब तक क्यों नहीं खुला? तो बताते चलें कि जो व्यापारी दुकान लिए हैं उनका कहना है कि काम्पलेक्स में बिजली का मीटर भी नहीं लगाया गया है। काम्पलेक्स परिसर में जगह जगह गंदगी, मल-मूत्र व कूड़ा कचरा पसरा हुआ है। जिसकी सफाई भी अब तक पालिका ने नहीं करवाया है। लिहाजा गंदगी के बीच तथा बिना बिजली के दुकान का संचालन संभव नहीं है। कुल मिलाकर कहें तो केवल दिखावे के लिए पालिका ने जैसे तैसे दुकान का आबंटन तो कर दिया है मगर वहीं ढाक के तीन पात। दुकाने जब तक खुलेंगी नहीं, साफ सफाई होगी नहीं तो भला कोई भी व्यापारी कैसे वहां दुकान का संचालन कर सकता है। ग्राहक भी गंदी जगह पर जाकर सामान खरीदने से परहेज करेगा। कुल मिलाकर कहें तो पूरी गलती नगर पालिका परिषद विभाग की है। लापरवाही व ढुलमुल रवैये का ही नतीजा है कि लाखों खर्च कर बनाए गए 10 दुकान दशकों बाद भी नहीं खुल पाया है और ना ही आगे दुकानों के खुलने की कोई संभावना दिखाई पड़ रहा है।

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