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छत्तीसगढ़

दो दशक बाद भी किरंदुल में फ्लाई ओव्हर ब्रिज निर्माण अधूरा

किरंदुल । देश की नवरत्न कंपनियों में शुमार एनएमडीसी यूं तो किसी पहचान की मोहताज नहीं। बड़े बड़े काम के वजह से आज एनएमडीसी की पहचान विश्व विख्यात है इसमें कोई दो राय व संदेह नहीं लेकिन बात स्थानीय स्तर पर वादे-दावे व ओव्हर ब्रिज निर्माण की हो तो यहां एनएमडीसी इस काम में फिसडडी साबित हुई है कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। जी हां यह शब्द एनएमडीसी के लिए बिलकुल सही उपयूक्त होगा। 22 वर्ष बाद भी किरंदुल में बन रहा ओव्हर ब्रिज पुल आधा भी नहीं बन पाया है एक लंबा अर्सा गुजरने के बाद भी लोग पुल के बनने के इंतजार में हैं। अब इसे एनएमडीसी की साख पर बट्टा लगना नहीं कहेंगे तो और क्या। हर प्रकार से सक्षम एक बेहद सशक्त कंपनी जब कोई काम समय पर पूरा नहीं कर पाए तो उस क्षेत्र की जनता के विश्वास पर गहरी चोट लगना लाजिमी है। पुल के आस में कईयों की जान भी चली गई मगर पुल का निर्मार्ण पूरा नहीं हो सका।
गौरतलब है कि कच्चे लोहे का परिवहन कर सालाना 3500 करोड़ से भी अधिक का मुनाफा कमाने वाली एनएमडीसी नवरत्न कंपनी अगर ओव्हर ब्रिज का निर्माण दो दशक बाद भी पूरा नहीं कर पाती ही है तो यह घोर लापरवाही को प्रदर्शित करती है। इस पर सवाल तो खड़े होंगे ही कि आखिर क्या वजह है कि हर प्रकार से सक्षम होने के बाद भी एनएमडीसी द्वारा निर्मित ओव्हर ब्रिज का निर्माण 22 वर्ष बाद 40 परसेंट तक ही पहूंच पाया है। कछुए गति से चल रही ब्रिज निर्माण पर अब स्थानीय जनता का सब्र भी टूटने लगा है। आमजन पूछ रहे हैं कि अगर ब्रिज का निर्माण करना ही नहीं था तो लौह नगरी की जनता को सपने क्यों दिखाए गए? बता दें कि आम जनता की सुविधा को ध्यान में रखते हुए आम जन की मांग पर ही आज से 22 वर्ष पूर्व लौह नगरी किरंदुल शहर में 500 मीटर लंबी एक फलाई ओव्हर ब्रिज बनाने की शुरूआत हुई थी। एनएमडीसी को ओव्हर ब्रिज का ठेका मिला था। ब्रिज का निर्माण फूटबाल ग्राउण्ड के सामने काली मंदिर से प्रारंभ होकर रेलवी पटरी उस पार तक करीब 500 मीटर लंबा बनना था। इन 22 वर्षो में ब्रिज का निर्माण मात्र 40 प्रतिशत ही पूर्ण हो पाया है। काली मंदिर से एनएमडीसी के केंद्रीय भण्डार गृह तक ही अभी मात्र ब्रिज का निर्माण हुआ है। शहरवासियों को पहले लगा था कि एनएमडीसी जैसी कंपनी जब ब्रिज बना रही है तो ज्यादा से ज्यादा 2 वर्षो तक ब्रिज का निर्माण हर हाल में पूरा हो ही जाएगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं। आखिर इतनी धीमी गति से ब्रिज का निर्माण क्यों किया जा रहा है यह तो एनएमडीसी के अधिकारी या ब्रिज बना रहे रहे लोग ही बता पाएंगे वहीं इतने लंबे अर्से बाद भी ब्रिज का निर्माण पूरा नहीं कई सवालों को जन्म देता है। बता दें कि किरंदुल निवासी कई लोग जिन्होने यह सपना देखा था कि ब्रिज बन जाने के बाद वे इस ब्रिज से होकर उस पार तक जा पाएंगे उनका सपना आज पर्यत पूरा नहीं हो पाया है। ब्रिज देखने की लालसा में न जाने अब तक कितनों की जान भी चली गई है पर ब्रिज नहीं बन सका। ब्रिज के अभाव में पटरियां पार करते न जाने अब तक कितनी जिंदगियां पटरियों की चपेट में आकर क्षत-विक्षत हो चुकी है। कई स्कूली बच्चे रोजाना पटरी पार कर अपनी जान जोखिम में डालकर बोगी पार कर स्कूल जाते हैं। वो तो भला हो एक अधिकारी का जिन्होने आज से 55 वर्ष पूर्व लोहे का जुगाड लगवाकर किसी तरह एक संकरा पुल पटरी के उपर बनवा दिया था जिसकी सहायता से लोग आज भी उसी पटरी को पार कर आवागमन करते रहे हैं। यह पुल भी अब जर्जर हो चुका है लोग आज भी इसी पुल से गुजरते हैं लेकिन हादसे की आशंका हमेशा बनी रहती है। इतने वर्षो बाद भी फलाई ओव्हर ब्रिज नहीं बना पाने के लिए गिनिज बुक आफ वल्र्ड रिर्काड में एनएमडीसी का नाम अवश्य दर्ज होना चाहिए। इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकता है कि जिस क्षेत्र से एनएमडीसी करोड़ों अरबों रूपए सालाना कमा रही है उस क्षेत्र में एक ब्रिज के निर्माण में 22 वर्ष गुजर जाने के बाद भी ब्रिज का काम 50 प्रतिशत भी पूरा नहीं कर पाती है तो इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है। बहरहाल ब्रिज का निर्माण कब तक पूरा हो पाएगा यह तो कार्य की गति देखकर अंदाज लगा पाना बेहद मुश्किल है लेकिन इतना अवश्य है कि इसका दूरगामी प्रभाव आगामी समय में सरकार पर पडऩा तय है।

फलाई ओव्हर ब्रिज 22 वर्ष बाद भी नहीं बन पाना एवं धीमी गति से कार्य चलने के लिए सीधे तौर पर एनएमडीसी व रेलवी बोर्ड जिम्मेदार है। नागरिकों को काफी असुविधाओं का सामना करना पड़ रहा है। रेलवे पुल से गुजरकर अब तक कई लोगों की मौत हो चुकी है। हमारी मांग है कि ब्रिज निर्माण के कार्य में गति लाते हुए शीघ्रअतिशीघ्र पूर्ण किया जाए जिससे आम नागरिकों को आवागमन की सुविधा हो सके।
अध्यक्ष
भाजपा जिला दंतेवाड़ा

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