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छत्तीसगढ़

गुड़से ग्राम के सैकड़ों ग्रामीण सड़क, पानी, बिजली और स्कूल की मांग को लेकर पहुंचे कलेक्ट्रेट

दंतेवाड़ा । 21वीं सदी के आजाद भारत में अगर किसी राज्य के गांव में आज बिजली, पानी, सड़क, स्कूल आंगनबाड़ी व मजदूरी की मांग ग्रामीण कर रहे हैं तो समझा जा सकता है हम अभी कहां पर खड़े हैं। जी जां यह सौ फीसदी सच है कि आज भी छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के कई गांवों में न तो पीने का साफ पानी है, न बिजली है न ही सड़क ऐसे में हम अंतिम व्यक्ति तक विकास पहुंचाने का दंभ आखिर किस मुंह से करते हैं? यह बड़ा यक्ष सवाल आज शासन प्रशासन के सामने मुंह बाए खड़ा है जिसका जवाब जिम्मेदारों को देना होगा।
गांवों में मूलभूत सुविधाओं की कमी का एक ताजा मामला दंतेवाड़ा जिले के कटेकल्याण ब्लाक के गुड़से पंचायत से सामने आया है। इस पंचायत के सैकड़ों ग्रामीण बुधवार को पंचायत प्रमुखों को साथ लेकर कलेक्टर कार्यालय पहुंचे थे। हाथों में आवेदन लिए आदिवासी ग्रामीण साहब के कक्ष के बाहर नीचे पोर्च में कतारबद्ध पूरे अनुशासन के साथ शांत तरीके से बैठे हुए थे। नजर पडऩे पर पुछा तो बताया कि हम सभी लोग गुडसे पंचायत से आए हैं बता दें कि जिला मुख्यालय से करीबन 50 किमी की दूरी पर घने जंगलों के बीच स्थित है ग्राम पंचायत गुडसे। नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने से ग्रामीण बड़ी मुश्किल से घरों से निकलकर मुख्यालय तक पहुंच पाए हैं। ग्रामीणें ने बताया कि बीते साल भर से ज्यादा वक्त गुजर गया है पंचायत में कोई काम नहीं हुआ है जिससे ग्रामीणों को रोजगार नहीं मिल पा रहा है। रोजगार न मिलना तो एक समस्या है। दूसरी यह कि गुडसे पंचायत के पिछड़ापारा, उसकोपारा एवं राजापारा में आजपर्यत बिजली नहीं पहुंच पाई है। ग्रामीण अंधेरे में रहने को मजबूर हैं। इस पारे में पहुंच मार्ग का भी अभाव है। सड़क नहीं होने से आवागमन का साधन भी नहीं है। ग्रामीणों को बारिश के दिनों में आवागमन में भारी असुविधा का सामना करना पड़ता है। इन तीनों पारों में नलकूप अर्थात बोरिंग भी नहीं है जिससे पीने का साफ पानी तक लोगों को मयस्सर नहीं हो पा रहा है। ग्रामीण झरिया व चुआ का पानी पीने को मजबूर हैं। बच्चों के लिए आगनबाड़ी केंद्र भी नहीं बना है। रही बात स्कूल भवन की तो यहां पक्का सरकारी भवन तक नहीं है। बच्चों का स्कूल एक छोटी सी झोपडी में संचालित होता है। इन तमाम परेशानियों से जुझते हुए आखिरकार ग्रामीण मजबूर होकर जिले के सबसे बड़े अधिकारी कलेक्टर सर के पास अपनी समस्या लेकर पहुंचे थे। पंचायत की महिला सरपंच हेमलता कवासी ने बताया कि पहले भी जनपद सीईओ एवं जिले के बड़े अधिकारियों को समस्याओं के संबंध में अवगत कराते हुए आवेदन दिया गया था लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई है। इसलिए आज गांवों के तमाम ग्रामीणजन खुद ही चलकर कलेक्टर सर के समक्ष अपनी समस्याओं को बताने एवं समस्या का जल्द निदान करने की गुहार लगाने आए हैं। खैर, कलेक्टर सर ने ग्रामीणों से मिलकर उन्हें आश्वस्त तो कर दिया कि जल्द से जल्द समस्याओं का निवारण कर लिया जाएगा और देर सबेर समस्याओं का निवारण हो भी जाएगा । मगर सबसे बड़ा सवाल यह कि आजादी के 75वें वर्ष में हम प्रवेश करने की राह पर खड़े हैं। इतने वर्षो बाद भी अगर गांवों में आज लोगों को सड़क, पानी, बिजली, स्कूल, रोजगार जैसे मसलों पर सरकारी नुमाइंदों के दफतर पहुंचकर चक्कर काटने पर रहे हैं। अधिकारियों के सामने हाथ जोड़कर एक पंचायत प्रमुख को गिडगिड़ाना पड़ रहा है तो बताने की आवश्यकता नहीं कि हम कितने नीचे पायदान पर अब भी खड़े हैं। अधिकारी, जनप्रतिनिधि एवं नेताद्वय लाख कहें कि अंतिम व्यक्ति तक हम विकास पहुंचा रहे हैं पर सत्य हम सबके सामने हैं जिसे हमे देखना चाहिए। बहरहाल यह कोई छोटी मोटी समस्या नहीं बल्कि सिस्टम को सरकार को मुंह चिढ़ाता एक करारा तमाचा है उनके चेहरे पर जिसका आभास देर सबेर उन्हें अवश्य हो जाएगा। शर्म भी महसूस होता है कहते हुए कि हम 21वीं सदी के भारत में रह रहे हैं और हमारा देश आज दुनिया के शीर्ष पर पहुंचने की कतार में सबसे आगे खड़ा है।

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