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छत्तीसगढ़

धीरज, धरम, मित्र और नारी विपत्ति में परखे जाते है: राजेन्द्र शास्त्री

भाटापारा । परशुराम राम वार्ड मे सोनी परिवार द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत महापुराण ज्ञान यक्ष के आगे प्रवचन मे कथाव्यास पं. राजेन्द्र शास्त्री ने गजेन्द्र मोक्ष की कथा सुनाई। ग्राह के जल में गज को पकडऩे पर गज ने जिस प्रकार से प्रभु को पुकारा वैसी ही पुकार हमारी भी होनी चाहिए तो प्रभु आयेंगे। गज को जल में अकेला छोड़कर विपत्ति के समय एक-एक करके सभी चले गये। विपत्ति में भगवान ही साथ देते हैं। धीरज, धरम, मित्र अरु नारी। ये चार विपत्ति पर परखे जाते है।
सम्पूर्ण जगत् पर परमात्मा का ही शासन और अनुशासन हैं। ऐसा सोचकर गज ने भगवान को पुकारा और भगवान दौड़े चले आए। जीव जब अनन्य भाव से भगवान को भजता है तो भगवान उसे मिलते हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी जानते थे कि राम और कृष्ण एक ही हैं, पर अनन्यतावश ही उन्होंने राम की पूजा की और भगवान धनुषवाण लेकर उपस्थित हो गये थे। गज की रक्षा भगवान ने की परन्तु सामने नहीं आये। क्योंकि बिनु पग चले सुने बिनु काना। कर बिनु कर्म करे विधिनाना। गज ने शुष्क पुष्प लेकर भगवान को ढूंढा। भगवान की सुन्दर छवि दिखाई दी। गज ने चरणों में वन्दन किया। भगवान की स्तुति की और कहा कि मुझ जीव के लिए भी आप बैकुण्ठ से दौड़े चले आए। शुकदेव जी परीक्षित जी से कहते हैं कि जो भी अनन्य भाव से भगवान की प्रार्थना करता है, भगवान अपने आश्रित की रक्षा करने चले आते हैं। इस कथा आध्यात्मिक पक्ष प्रस्तुत करते हुए कथाव्यास ने कहा कि यह संसार सागर है, तृष्णा जल है, क्योंकि तृष्णा अनन्त है। तरंगे काम, लोभ, क्रोध हैं। पुत्र, नाविक है। पत्नी भँवर हैं पर अनुकूल पत्नी भव से पार भी करा देती है। पुत्र अनुकूल हुआ तो भवसागर पार करा देगा और यदि प्रतिकूल बना तो डूबो देगा। ‘भक्त जब पुकारे भगवन दौड़े चले आते हैं। इस भजन से पूरा सभागार भक्तिमय हो गया। कथाव्यास ने आज के कथा में मनु के पुत्र प्रियब्रत की कथा, भगवान ऋषभ देव की जन्म की कथा में कहा ऋषभ देव के जेष्ठय पुत्र भरत के नाम पर हमारे देश का नाम भारतवर्ष पड़ा इससे पहले इसे अजनाभ वर्ष कहा जाता था। जड़भरत की कथा, अजामिल की कथा का बहुत ही मनोहारी चित्रण जैसे पशु किया कथा को आगे बढ़ाते हुए कथाव्यास ने समुद्रमंथन की कथा सुनाई। देव और दैत्यों ने मिलकर मंदराचल पर्वत की मथनी बनाकर और वासुकि नाग की रस्सी बनाकर समुद्र मंथन किया। जब मंदराचल डूबने लगा तो भगवान कच्छप बनकर उसके नीचे बैठ गये। सबसे पहले विष प्रकट हुआ। जब व्यक्ति लक्ष्य की तरफ बढ़ता है तो सबसे पहले कठिनाइयां सामने आती हैं। विष को शिव जी ने कंठ में धारण किया और उनका कंठ नीला हो गया। इसलिए उन्हें लोग नीलकंठ महादेव कहते हैं। इसका आशय यह है कि माता, पिता, बड़े अगर कुछ रुष्ट होकर भी कुछ कहें तो उसको सहन करें। लक्ष्मी जी निकली और भगवान ने उन्हें धारण किया। भगवान को दरिद्रा मिली और उसने कहा कि मुझे भी संसार में रहने का स्थान दीजिए तो भगवान ने कहा कि जिसके कपड़े गन्दे हों, दांतों में गन्दगी हो, बहुत भोजन करने वाला हो, सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सोने वाला हो, जूठे बर्तन रातभर जहाँ रहें, तुम वही निवास करना। समुद्र मंथन से अमृत निकला तो दैत्य झपट पड़े। भगवान ने मोहिनी का रूप बनाकर अमृत देवताओं को पिलाया और विष दैत्यों को। दैत्यों को अमृत देना उचित नहीं था। कारण पय: पानम् भुजंगानाम् केवलम् विषवर्धनम्।
राजा बलि की कथा सुनाई गई। राजा बलि ने यज्ञ करने, गायों और अतिथियों की सेवा करने और ब्राह्मणों की सेवा करने के कारण शक्ति अर्जित किया। नर्मदा के तट पर सैकड़ों यज्ञ किये। प्रहलाद ने स्वर्ग से आकर विजय माला पहनाई। शक्ति अर्जित होने पर दैत्य सर्वत्र टूट पड़े। सर्वत्र बलि का एकाधिकार हो गया। अदिति के गर्भ से सर्वेश्वर भगवान का जन्म हुआ जिसे वामन अवतार कहते हैं। वामन ने बलि से तीन पग भूमि की याचना की। दो पग में सब कुछ नाप लिया तीसरे पग को उन्होंने बलि के मस्तक पर रख दिया। यह बलि पर भगवान की असीम कृपा थी। प्रहलाद के सिर पर कमलवत करों से स्पर्श किया था और बलि के मस्तक पर ही अपने चरण कमल रख दिये। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की कथा के अवसर पर नन्द के आनन्द भयो, जय कन्हैया लाल की। जय हो नन्दलाल की, जय यशोदा लाल की। । भजन से पूरा परिसर भक्तिमय हो गया।

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