3साल से लकड़ी से बनी झोपड़ी में रहने के लिए मजबूर है अधेड़
देवभोग । आवास ना होना किसी व्यक्ति के लिए कितनी परेशानी का सबब बन सकता है। इसका ताज़ा उदाहरण खुटगॉव पंचायत के आश्रित ग्राम टिकरापारा में देखने को मिल रहा है। टिकरापारा के रहने वाले श्रीहरि यादव आवास नहीं होने से पत्नी और बच्चे से दूर रहने को मजबूर है। दरअसल तीन साल पहले श्रीहरि का कच्चा मकान ढह गया। एक साल तक भाई के घर में आसरा लेकर रहने के बाद श्रीहरि ने अपने दामाद के सहयोग से एक लकड़ी का झोपड़ी तैयार किया। उसी में पिछले तीन साल से श्रीहरि रहने को मजबूर है। श्रीहरि बताता है कि आवास नहीं होने से पत्नी और बच्चे दोनों उससे दूर हो गए है। दोनों मजबूरीवश ओडि़सा के संधिकोलयारी में श्रीहरि के ससुराल में रहने को मजबूर है। श्रीहरि के मुताबिक पत्नी कभी कभार गॉव में आती है। सुबह से शाम तक रहती है और सूरज ढलने के पहले उसके माता पिता के घर निकल जाती है। श्रीहरि रुँधे गले से कहता है कि आज यदि मेरा भी आवास होता तो मेरे पत्नी और बच्चे मेरे साथ होते।
ठंड, बरसात में रातें काटनी है मुश्किल: श्रीहरि यादव बताता है कि गर्मी के दिनों में रात कट जाती है। वहीं बरसात और ठंड की रात बहुत ज्यादा पीड़ादायक होती है। बरसात में झिल्ली लगाने के बाद भी तेज बारिश होने पर झिल्ली भी काम नहीं आता। और कभी कभार बारिश में भीगना भी पड़ता है। वहीं ठंड के मौसम में ठंडी हवाओं से जीना मुश्किल हो जाता है। किसी तरह अलाव और कंबल के सहारे ही रात गुजरता है।
परिवार से दूर रहना ही सबसे बड़ी सजा : अपनी व्यथा बताते हुए श्रीहरि रो पड़ता है। वह कहता है कि कौन नहीं चाहता परिवार के साथ रहना। लेकिन आज आवास नहीं होने से मजबूरीवश उसके पत्नी और बच्चों को ओडि़सा में उसके ससुराल में आसरा लेकर रहना पड़ रहा है। श्रीहरि कहता है कि परिवार से दूर रहने की चिंता उसे बहुत परेशान कर रहा है। वह सीएम भूपेश बघेल से भी गुहार लगा रहा है कि मुझे आवास देकर मेरा परिवार दे दो, सीएम साहब। श्रीहरि यह भी कहता है कि तत्कालीन सरपंचों और अभी की सरपंच ने भी पंचायत की और से उन्हें कुछ आर्थिक मदद देकर सहायता दिया था।
वहीं जनपद सीईओ प्रतीक प्रधान ने कहा कि अगर हितग्राही के पास रहने के लिए आवास नहीं है। और यदि उसका नाम आवास की सूची में शामिल है, तो जरूरतमंद हितग्राही को प्राथमिकता के आधार पर आवास देने के लिए उच्च कार्यालय को पत्र लिखूंगा।