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खेल – मनोरंजन

गणतंत्र दिवस परेड में स्वर्ण विजेताओं को किया जाए शामिल

हमारे खिलाड़ी देश का नाम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कर रहे रौशन

मई 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सत्तारूढ़ होने के बाद विभिन्न मंत्रालयों में नई परंपरा की शुरुवात हुई है। जिसकी वजह से आलोचना करने वाले या फिर नकारात्मक सोच रखने वाले भी केंद्र में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन के नेतृत्व वाली सरकार के कुछ कामकाज, निर्णय पर चुप्पी साधे रखना ही उचित समझा है। विशेषकर प्रधानमंत्री के भारत में खेलनीति को लेकर उठाये गये कदम से राष्ट्रीय स्तर के राजनैतिक नेता, सामाजिक कार्यकर्ता, जागरूक स्तंभकार सभी स्तब्ध हैं। 2014 में अपने कार्यकाल के शुरुवाती दौर में जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत में खेलकूद के क्षेत्र में प्रतिभाओं की अपार संख्या का पूर्वानुमान लगाते हुए भारत को खेल विश्व गुरु बनाने की चर्चा शुरु तो अधिकांश लोग बगले झांकने लगे। मजेदार बात तो यह है कि नरेन्द्र मोदी जी की इस कल्पना को हल्के में लेने वालों को खेलकूद से न तो कोई दिलचस्पी थी ना ही वे खेलकूद के महत्व को वे जानते थे। विश्व स्तर पर आज जब आपके देश की कला, संस्कृति, व्यापार-व्यवसाय, कृषि, उद्योग, विज्ञान संबंधी उपलब्धि को विश्व स्तर की श्रेणी में रखा जाता है तो खेलकूद और उसके जुड़े तमाम प्रतिभाओं को क्यों नहीं रखा जा सकता? उल्लेखनीय तथ्य यह है कि प्रधानमंत्री की दूरदृष्टि को उनके कार्यकाल के आरंभिक दौर में लोग समझ नहीं पाये। उन्होंने देश के खेलकूद की बागडोर पहली बार राज्यवद्र्धन सिंह राठौर जैसे पदक विजेता ओलंपियन खिलाड़ी को सौंप दिया। यही से हमारे देश का खेलकूद में विश्व गुरु बनने का बीजोरोपण हो गया। पिछले करीब दस वर्षों में भारतीय खिलाडिय़ों की अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में सफलता का आकलन कर लिया जाए तो स्थिति साफ हो जायेगी। यह जरूर है आसमान में बादल छाये हुए हैं धुंधलका है लेकिन सूरज की रोशनी ने आकाश में आच्छादित अवरोध को भेदना शुरु कर दिया है। इसका श्रेय पूरी तरह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जाता है जिनकी सोच को जमीनी हकीकत में बदलने के लिए भारत के खेलमंत्री, खेल मंत्रालय के अधिकारी, भारतीय खेल प्राधिकरण के प्रशासनिक अधिकारियों, प्रशिक्षकों, सहयोगी सदस्यों ने जी जान लगा दिया। खेल में भाग लेने वाले खिलाडिय़ों के माता-पिता, अभिभावकों ने ऐसा करने के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके साथ समाज, परिवार के सदस्यों, मित्रगण, खेलप्रेमियों ने खेल प्रतिभाओं को आगे आने के लिए प्रोत्साहित किया। माता-पिता, अभिभावकों ने अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य को देखते हुए उन्हें अलग-अलग खेलों को प्रशिक्षकों, प्रशिक्षण संस्थानों में सौंप दिया। आखिरकार इन प्रतिभाशाली बच्चों, किशोरों, नौजवानों ने प्रशिक्षण के दौरान अपने-अपने खेल मैदान में पसीना बहाया और भारत के लिए ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों, एशियाई खेलों, राष्ट्रमण्डल खेलों, विभिन्न खेलों की विश्व, एशियाई स्पर्धाओं में 2014 के बाद से पहले से अधिक पदकों की कतार लगा दी। ऐसे जांबाज खिलाडिय़ों को राष्ट्रीय, राज्य स्तर पर इनाम मिल चुका। अब बारी है ऐसे पदक विजेता प्रतिभागियों को एक स्थान पर एकत्र करके उन्हें सार्वजनिक रूप से सर्वोच्च सम्मान देने का। इसके लिए सबसे उपयुक्त स्थल नई दिल्ली में प्रतिवर्ष होने वाली गणतंत्र दिवस परेड है। इनमें कम से कम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ओलंपिक खेलों में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीतने वाले विजेताओं को भी सम्मिलित किया जाना चाहिए। इसी तरह राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के मान्यता प्राप्त खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाले खिलाडिय़ों को राज्य के गणतंत्र दिवस परेड में शामिल करके सम्मानित किया जाना चाहिए। इससे न सिर्फ भारत में खेल भावना को बढ़ावा मिलेगा बल्कि हमारे देश में खेल संस्कृति की जड़ें मजबूत होंगी।

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