मातृभूमि की जगह क्लब को महत्व नहीं देना चाहिए
2023 में खेले जा रहे एशियाई खेलों के पूर्व भारतीय फुटबाल को झटका
– जसवंत क्लाडियस,तरुण छत्तीसगढ़ संवाददाता
मनुष्य जब जन्म लेता है तो उसके साथ ही उसके लालन-पालन की जिम्मेदारी माता-पिता/अभिभावकों के उपर आ जाती है। भारतीय परिदृश्य में एक नौनिहाल शिशु के कम से कम 18 वर्ष की आयु तक उसकी देखभाल-शिक्षा की जिम्मेदारी घरवालों की मानी जाती है। उसके पश्चात एक भारतीय नौजवान को अपने जीवन यापन का साधन ढूंढना पड़ता है या कहें उसे अपने पैरों पर खड़े होने की बाध्यता आधुनिक भारतीय समाज की परंपरा अनुसार जरूरी होती है। अत: आज के संदर्भ में एक युवा चाहे वह युवक हो या युवती 21 वर्ष की आयु तक अपने कैरियर का निर्माण करने की कोशिश करता है। इसमें विद्यार्थी, खिलाड़ी आदि विभिन्न रुचि रखने वाले सभी वर्ग के युवा शामिल होते हैं। भारत में शैक्षणिक योग्यता के आधार पर अनेक नौकरी है लेकिन खेलकूद की क्षेत्र में 20वीं सदी तक संभावना सीमित थी। 21वीं सदी में खेलकूद को दृश्य श्रृव्य माध्यम से जिस तरह प्रचार प्रसार में जगह मिला तो फिर भारतीय युवाओं को खेलकूद के क्षेत्र में विभिन्न खेलों में से किसी भी खेल को कैरियर बनाने के लिए खुला आकाश मिल गया। भारत में गैर ओलंपिक खेल क्रिकेट व शतरंज ने युवा वर्ग में विशेष स्थान बनाया। बाकी ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में शामिल अन्य 28 खेलों में वर्तमान में हमारे देश के खिलाड़ी अपना कैरियर बनाने के लिए निकल पड़े हैं। इंडियन प्रीमियर लीग याने क्रिकेट की टी-20 प्रारूप में क्लब या फ्रेंचायसी टीम के रूप में स्पर्धा का आरंभ 18 अप्रैल 2008 से आरंभ हुआ। फुटबाल की इंडियन सुपर लीग (आईएसएल) की शुरुआत 12 अक्टूबर 2014 को हुई। कबड्डी की प्रो कबड्डी लीग की शुरुआत 2014 से हुई। इस तरह भारत में खेल को व्यावसायिक रूप दिया गया। भारतीय तथा विदेशी खिलाड़ी मिलकर इस तरह की चैंपियनशिप में भाग लेने लगे। अब तक बैडमिंटन, टेनिस, टेबल टेनिस आदि खेलों की क्लब आधारित या मिक्सड टीम आधारित प्रतियोगिता शुरू हो चुकी है। भविष्य में हैंडबाल, बास्केटबाल, रोलबाल आदि भी होगी। इसमें विभिन्न खिलाडिय़ों को कुछ औद्योगिक घराने या फिल्मी सितारे या प्रमुख व्यक्ति नीलामी के माध्यम से बोली लगाकर खरीदते हैं तथा जिससे उनकी अपनी टीम बनती है। चुने हुए खिलाडिय़ों को बड़ी राशि दी जाती है अत: यह निश्चित है कि उन खिलाडिय़ों का जीवन स्तर ऊंचा हो जाता है। भारत में खेलों को बढ़ावा देने की यह एक अच्छी कोशिश है। ऐसे व्यवसायिक टूर्नामेंट से खिलाडिय़ों, प्रशिक्षकों, आयोजकों, प्रसारकों को आर्थिक लाभ पहुंचता है। यह बहुत ही प्रशंसनीय है क्योंकि प्रत्येक माता-पिता, अभिभावक यही चाहते हैं कि उनकी संतान खेल के माध्यम से धन व प्रसिद्धि अर्जित करके अपने देश व अपने परिवार का नाम रौशन करे। यहां तक तो सब ठीक है लेकिन उसके आगे जो बात विगत दिनों सामने आई वह बेहद चिंतनीय है। इन दिनों 19वें एशियाई खेल चीन में जारी है। उसमें भारतीय फुटबाल टीम ने भी योग्यता हासिल की है। भारत की विश्व स्तरीय वरीयता फिलहाल विश्व के 207 देशों में 102 है जबकि एशिया के 46 देशों में 21 सितम्बर 2023 को भारत की 19वीं वरीयता है। इसी बीच 19वें एशियाड की शुरुआत 23 सितम्बर 2023 से हुई। जबकि भारत में खेली जाने वाली फुटबाल की इंडियर सुपर लीग की शुरुवात 21 सितम्बर 2023 से हुई। मुख्य बात यह है कि एशियाड के लिए चुनी गई फुटबाल टीम के खिलाडिय़ों में से कुछ प्रतिभाशाली खिलाडिय़ों को एशियाड में भारत का प्रतिनिधितव करने से आईएसएल के कुछ टीम के मालिकों ने रोक दिया। अब यहां पर प्रश्न उठता है कि देश बड़ा है या लीग के लिए चुनी गई टीम। जो भी हो फुटबाल के कर्णधारों ने भारतीय खेलकूद परिदृश्य में एक गलत परंपरा को जन्म दिया है। यह ठीक है कि लीग की टीम के लिए मालिकों ने करोड़ों रुपये खर्च किए लेकिन उन्हें चुने गये भारतीय खिलाडिय़ों को देश के प्रतिनिधित्व करने से नहीं रोकना चाहिए था। वैसे भी 19वें एशियाई खेलों की तिथि जब करीब एक वर्ष पूर्व घोषित हो चुकी थी तो किसी टकराव से बचने के लिए आईएसएल की आयोजन तिथि को आगे-पीछे कर देना चाहिए था। इस गलत निर्णय पर भारत सरकार के खेल मंत्रालय और भारतीय ओलंपिक संघ को ध्यान देकर देश के खिलाडिय़ों को एशियाड में भाग नहीं लेने से रोकने वालों पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।